झारखंड : रुके-रुके से हैं प्रदेश कांग्रेस के सियासी कदम

रांची। झारखंड में विधानसभा चुनाव में अब बहुत ही कम दिन बचे हैं, सूबे की सभी सियासी दल चुनावी मोड में आ चुके हैं। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अभी भी चुनाव के मद्देनजर अपने संगठन को ही दुरुस्त करने में लगी है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने एक अध्यक्ष और पांच कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति कर पार्टी में जारी अंतर्कलह को रोकने की कवायद कर यह मान रही है कि इससे सत्ताधारी भाजपा को पटकनी दे देगी। कांग्रेस को भरोसा है कि विधानसभा चुनाव में सटीक सामाजिक समीकरण के बूते भाजपा के विकास के नारे को किनारे लगा देगी। नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने भी पार्टी के विभिन्न मोर्चा प्रभारियों और नेताओं को ताकीद की है वे कि हर बूथ पर खुद जाकर बूथ एजेंट से मिलकर चुनाव की तैयारी में लग जाएं। साथ ही यह सुनिश्चित करें कि बूथ के अन्तर्गत कौन-से लोग प्रभावी व्यक्ति हैं और पुराने कांग्रेसी हैं। उनकी सूची बनाकर अविलम्ब प्रदेश कांग्रेस कार्यालय को सौंपने का काम करें। सभी कांग्रेसजनों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम करें। कांग्रेस की जो कार्यशैली रही है उससे सभी लोगों को अवगत कराएं। वहीं, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा है कि संगठन को मजबूत करने का काम सिर्फ जिलाध्यक्षों का ही नहीं, मोर्चा संगठन के पदाधिकारियों एवं हम सबों का दायित्व है। उनका दावा है कि सरकार के प्रति लोगों में काफी आक्रोश है, उस आक्रोश को आवाज देने की जरूरत है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो इन सब के बावजूद पार्टी के विभिन्न संगठनों के भीतर ऊर्जा और उत्साह की घोर कमी है। सरकार की योजनाओं के खिलाफ पार्टी के पास कोई ठोस रणनीति नहीं है। न तो कांग्रेस का छात्र संगठन और न ही यूथ कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरकर संघर्ष करता दिखा है। जबकि भाजपा सरकार के खिलाफ कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं, जिससे जनता के बीच पार्टी पैठ बना सकती है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि ऐसा अक्सर देखा गया है कि चुनाव के वक्त सत्ताधारी दल डिफेंडिंग मोड में होते हैं, लेकिन झारखंड में स्थिति ठीक उलट है। भाजपा पूरी तरह से आक्रामक है पार्टी के सभी नेता और खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास भी कांग्रेस और झामुमो के खिलाफ हर रोज हमला बोल रहे हैं। उनके तेवर काफी सख्त हैं। इसके साथ ही भाजपा हर मोर्चे पर युद्ध स्तर पर काम कर रही है। पार्टी के रणनीतिकार हर इलाके को लेकर खास स्ट्रेटेजी के तहत अभियान चला रहे हैं। हर विधानसभा क्षेत्र के हरेक बूथ पर टीम तैयार की जा रही है। ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं पर नजर रखी जा रही है जो भाजपा की ओर रुख कर सकते हैं। विपक्षी दलों के विधायकों और बड़े नेताओं को कमजोर करने और उसका मजबूत विकल्प ढूंढने का काम बहुत पहले से ही जारी है। इन सब के बीच कांग्रेस में अभी गठबंधन को लेकर ही चर्चा हो रही है। बूथ स्तर से लेकर जिला स्तर पर पार्टी के नेता और पदाधिकारी कोई खास एक्टिव नहीं हैं। प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह और उमंग सिंघार की सक्रियता भी सत्ताधारी भाजपा के मुकाबले काफी कम है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता यह कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान जो चूक हुई थी उसे विधानसभा चुनाव से पहले ठीक कर लिया जाएगा। इसबार हर बूथ पर फोकस है। पुराने कांग्रेसियों को सम्मान के साथ पार्टी में जोड़ने का काम तेज कर दिया गया है। साथ ही वैसे लोग जो पार्टी की विचारधारा से प्रभावित हैं, उन्हें भी पार्टी के जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। इधर, झारखंड में विपक्षी गठबंधन बेपटरी होता नजर आ रहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस के बीच विधानसभा चुनाव में नेतृत्व को लेकर बात बनती नहीं दिख रही है। दोनों दल अलग-अलग राग अलाप रहे हैं। गठबंधन में झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) की भी भागीदारी सुनिश्चित नहीं है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की बात कोई सुन नहीं रहा है। प्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने कहा है कि सीटों के बंटवारे के बाद ही विपक्षी गठबंधन का नेता तय होगा। उरांव ने यह भी कहा है कि कांग्रेस जनाधार वाली बड़ी पार्टी है इसलिये उसे सम्मानजनक सीटें मिलनी चाहिये। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के इस ताजा बयान ने विपक्षी गठबंधन के गांठ को और उलझा दिया है। झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान ही कांग्रेस के आला नेताओं के समक्ष गठबंधन की शर्तें तय हो चुकी हैं, इसपर नए सिरे चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है। यह तय हो गया है कि विधानसभा चुनाव झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। महागठबंधन का विधानसभा चुनाव का मुख्य चेहरा हेमंत सोरेन ही होंगे।

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