तूफान फेनी का चुनावी गतिविधियों पर भारी पड़ने के निहितार्थ

-डॉ. हिदायत अहमद खान-

जब तक पर्यावरण और प्रकृति आपका साथ दे रहे हैं तभी तक आप अपने सिद्धांतों, नियमों और कानून-कायदों की बात कर सकते हैं, उस पर कायम रह सकते हैं और दूसरों से उसके पालन के लिए भी कह सकते हैं, लेकिन जैसे ही यह प्रकृति विपरीत दिशा में जाकर आपके सम्मुख किसी ललकारने वाले योद्धा की तरह खड़ी हो जाती है, वैसे ही आप सब कुछ भूल सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाने की फिराक में लग जाते हैं। यह है हमारे पर्यावरण और प्रकृति की ताकत जो चाहे तो आपके जीवन को आसान बना दे और चाहे तो पल-पल जीना भी दुश्वार कर दे। इसे धर्म के मानने वाले ईश्वर की मर्जी मान अपने पापों की सजा करार दे सकते हैं, जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण इसके पीछे छुपे कारणों को तथ्यों के आधार पर उजागर करने का प्रयास करते दिख जाते हैं, लेकिन यह हकीकत है कि समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएं मानव समाज को सचेत करती है और जतलाने का प्रयास करती हैं कि मानव का अस्तित्व उसके बिना कुछ नहीं है। इसलिए वही किया जाए जिससे प्रकृति को अपना संतुलन बनाने की आवश्यकता महसूस न होने पाए। दरअसल यह सबक देती है कि प्रकृति प्रदत्त सुविधाओं का अनावश्यक दोहन मानवजाति के लिए विनाश का कारण भी बन सकता है। इसलिए जरुरी हो जाता है कि सभ्य समाज में प्रकृतिस्थ होने की भी शिक्षा प्रभावी ढंग से दी जाए। इस समय दुनियाभर में हो यह रहा है कि हरे-भरे जंगलों को काटकर कंक्रीट के जंगल तैयार किए जा रहे हैं। इससे प्रकृति को संतुलन बनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। पहाड़ काटकर नदियों को मिलाने और ज्यादा से ज्यादा जल एक जगह एकत्र करने की भी बहुतायत में कोशिशें हो रही हैं। इससे भी प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। बढ़ती जनसंख्या और कल-कारखानों समेत वाहनों व अन्य भौतिक सुखों के लिए उपयोग में लिए जाने वाले संसाधनों से पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है, जो कि ग्लोवल वार्मिंग का सबब बनता दिख रहा है। इसके चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे समुद्रों का जलस्तर भी लगातार बढ़ रहा है। इससे समुद्र तटीय क्षेत्रों में संकट के बादल मंडराने लग गए हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि मनुष्य आंखे खोले और प्रकृतिस्थ होने की दिशा में आगे बढ़े। यदि इस पर यकीन नहीं आता तो फिर लोकतंत्र के लिए सबसे जरुरी माने जाने वाले इस चुनावी दौर को प्राकृतिक आपदा किस तरह से प्रभावित करती है इसे देख लें। दरअसल यह समय देश के तमाम जिम्मेदार नागरिकों के लिए अपनी अगली सरकार चुनने का है। इसलिए देश में चारों ओर राजनीतिक गतिविधियां अपने चरम पर हैं। इसी बीच खबर आती है कि समुद्र तटीय क्षेत्रों में तेज हवाएं चल रही हैं और भारी बारिश हो रही है, जिससे चुनावी गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हो गई हैं। यह सब प्रचंड चक्रवाती तूफान फेनी के कारण हुआ है। इसी के साथ बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी चुनावी रैलियों को दो दिन के लिए रद्द कर दिया और प्रभावित क्षेत्रों का उन्होंने रुख किया है, ताकि जान-माल की समय रहते रक्षा की जा सके और प्रभावितों को उचित मदद दी जा सके। वैसे तो करीब एक सप्ताह पहले ही फेनी के आने की सूचना दी जा चुकी थी, जिसके चलते अलर्ट भी जारी किया जा चुका था। इस कारण नुक्सान ज्यादा नहीं होने की संभावना भी व्यक्त की गई है। यहां ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने चुनाव आयोग से तटीय जिलों से आदर्श आचार संहिता हटाने का आग्रह किया और पटकुरा विधानसभा चुनाव की तारीख भी बढ़ाने की मांग की। यहां तूफान फेनी के वीभत्स असरात को देखते हुए ही चुनाव आयोग ने भी 11 जिलों से चुनाव आचार संहिता उठाने का फैसला लिया, ताकि प्रभावित इलाकों की सहायता में किसी प्रकार का कोई अवरोध न आने पाए। कुल मिलाकर चक्रवाती तूफान फेनी के कारण समुद्र तटीय इलाकों में कोई बड़े अनिष्ट की आशंका के चलते सभी ने बचाव और मदद करने की दिशा में काम शुरु किया हुआ है। इस कारण राजनीतिक गतिविधियों पर भी खासा असर पड़ता दिखा है। मौसम विज्ञानियों ने आगाह करते हुए बताया कि चक्रवाती तूफान फेनी ओडिशा के तट पर पहुंचा और फिर बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ गया। इस तूफान के कारण समुद्र के तटीय इलाकों में करीब 175 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलीं, जिससे अनेक स्थानों पर पेड़ जड़ समेत उखड़ गए। झोपड़ियां तबाह हो गईं। मूसलाधार तेज भारी बारिश होने के कारण भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। समुद्र के किनारे बसे मंदिर शहर पुरी इलाके समेत अन्य क्षेत्र जलमग्न हो गए। तूफान फेनी की भयावहता को देखते हुए रेलवे ने समुद्र तटीय इलाकों में जाने वाली 100 से ज्यादा ट्रेनों को स्थगित कर दिया, कई एयरलाइंस ने उड़ानें रद्द कर दीं। कुल मिलाकर सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता हुआ दिखा और अब तो तूफान में मरने वालों की भी खबरें आना शुरु हो गई हैं। इस कारण समुद्र तटीय क्षेत्रों में चुनाव प्रभावित होना आश्चर्य की बात नहीं है। दरअसल इससे सबक लेने और प्रकृति व पर्यावरण को बचाने की खातिर हर संभव कोशिशें करना आज की आवश्यकता हो गई है। सबसे पहले धरती को हरियाली से आच्छादित करने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। इसमें शक नहीं कि पेड़-पौधे प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध होते हैं। इनकी वजह से धरती में जल की उपलब्धता बनी रहती है, वायु प्रदूषण कम किया जा सकता है, तेज हवाओं और अति वर्षा के कारण होने वाले भूमिक्षरण और नदियों के कटाव से भी निजात मिल जाता है। यही नहीं बल्कि मानव जीवन के लिए जितनी भी मूलभूत आवश्कताएं हैं उनकी पूर्ति भी इनके द्वारा आसानी से कर दी जाती है। ऐसे में पेड़-पौधों का रख-रखाव करते हुए प्रकृतिस्थ होने की आवश्यकता है, क्योंकि लोकतंत्र के लिए जैसे चुनाव आवश्यक हैं वैसे ही मानव जीवन के लिए पेड़-पौधे भी अतिआवश्यक हैं।

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