नई दिल्ली । केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने संस्कृत को वैज्ञानिक भाषा बताते हुए कहा कि ज्ञान-विज्ञान सहित सभी क्षेत्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के विकास से भारत और भारतीयों का विकास होगा।
निशंक ने शनिवार को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के छठे दीक्षांत समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कहा कि ज्ञान-विज्ञान सहित सभी क्षेत्रों में संस्कृत का बहुत महत्व है। ज्ञान को विज्ञान के साथ जोड़कर उसे दुनिया के समक्ष साबित करने की चुनौती हमारे सामने है। संस्कृत भारत की आत्मा तथा भारतीय विवेक की भाषा है। संस्कृत के विकास से भारत और भारतीयों का विकास होगा।
इस अवसर पर मंत्री ने सभी विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा पूर्ण करने पर बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं। निशंक ने समारोह में कहा कि भारत उत्सवों का देश है, यह दीक्षांत समारोह ज्ञान लेने के बाद का उत्सव है। यह दीक्षा एक पड़ाव है, आपको इससे कहीं आगे जाकर दुनिया में भारत का नाम रोशन करना है।
विद्यार्थियों और युवाओं से निशंक ने कहा कि हमारा जन्म केवल भारत के लिए नहीं हुआ, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए हुआ है। आर्य भट्ट, वेद व्यास जैसे अनेकों महान मनीषी भारत भूमि के हैं, जिन्होंने विश्व में भारत के ज्ञान को पहुंचाया था। उन्होंने कहा कि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है, जो बोली जाती है, वही लिखी जाती है। संस्कृत की इतनी महत्ता जानते हुए केवल भारत के लिए नहीं, अपितु सर्वकल्याण के लिए कार्य करना है और निश्चय ही आप जीवन में बहुत सफल होंगे।
निशंक ने कहा आज भारत विश्व का सबसे युवा देश है और भारत के युवा अपनी प्रतिभा का परचम पूरी दुनिया में फहरा रहे हैं। किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति और समर्पण का होना जरूरी है, इनके माध्यम से हम बड़ी से बड़ी चुनौतियों का डटकर सामना कर सकते हैं। युवाओं के मन में बहुत अपेक्षा-आशाएं है।
संस्थान की महत्ता बताते हुए उन्होंने कहा कि इस संस्थान की स्थापना 1970 में हुई थी। उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि यह संस्थान अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सकारात्मक कार्य कर रहा है।
समारोह में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रमेश चंद्र लाहोटी ने कहा कि शिक्षा बोध करा देती है कि क्या करना है और क्या नहीं करना। शिक्षा विवेक को जागृत कर देती है। लाहोटी ने कहा कि संस्कृत भाषा के ज्ञान मात्र से इसके कोष में संचित असीम सम्पदा से साक्षात्कार होने लगता हैं। विविधता को एकता के सूत्र में पिरोने का काम भी संस्कृत करती है।
समारोह में साहित्य शास्त्र के विद्वान आचार्य पंडित गोविंद चंद्र मिश्र को मंत्री, जो कि संस्थान के कुलाधिपति भी है, ने मानद उपाधि प्रदान की। आचार्य परमेश्वर नारायण शास्त्री ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संस्थान के छात्र और शिक्षकगण उपस्थित रहे।
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