दूसरी पार्टियां भी मांगें तो हम स्वयंसेवक देने को तैयार : मोहन भागवत

रांची। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि राजनीति में जाने वाले स्वयंसेवक ऐसा काम करें, जिससे समाज भी लाभान्वित हो। हम समाज के साथ हैं और समाज में भाजपा भी है। अन्य पार्टियों के लोगों में भी यह सोच विकसित हो रही है कि संघ से सलाह लेकर काम करें, लेकिन उनकी राजनीतिक मजबूरी है इसलिए वे संघ का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर दूसरी पार्टियां भी मांगेंंगी तो हम अपने स्वयंसेवक देने को तैयार हैं।

डॉ. भागवत मंगलवार रात रांची के हरमू स्थित विभाग संघचालक विवेक भसीन के आवास पर रांची महानगर के पदाधिकारियों और स्वयंसेवकों की बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक के दौरान उन्होंने संगठन की मजबूती पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि संघ की शाखाओं का विस्तार करें। शाखा में मित्रता, आत्मीयता और गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना है। बिना जाति और वर्ण का स्मरण किए संघ समाज को जोड़ता है। मैं हिंदू समाज का हूं, इसी भाव से लोग संघ में आते हैं। स्वयंसेवकों में राम और भरत की तरह प्रेम होना चाहिए। हालांकि ऐसा कहना आसान है, लेकिन ऐसा भाव बनाने के लिए काफी परिश्रम करना होगा। 

बैठक में क्षेत्र संघचालक झारखंड-बिहार सिद्धिनाथ सिंह, क्षेत्र प्रचारक रामदत्त चक्रधर, प्रांत प्रचारक रविशंकर सिंह बिशेन, सह प्रांत प्रचारक दिलीप कुमार, सह प्रांत संघचालक अशोक श्रीवास्तव, सह विभाग संघचालक विवेक भसीन, रांची महानगर संघचालक पवन मंत्री, प्रांत कार्यवाह संजय, सह प्रांत कार्यवाह राकेश लाल, महानगर कार्यवाह धनंजय सिंह, प्रांत संपर्क प्रमुख राजीव कमल बिट्टू समेत संघ के कई पदाधिकारी मौजूद थे। डॉ. भागवत बुधवार को सिमडेगा के रामरेखाधाम में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने के बाद रांची में रात्रि विश्राम करेंगे।

सरसंघचालक ने कहा कि हमेशा बातचीत के मुद्दे तय नहीं होते। कभी-कभी अनौपचारिक बातचीत भी करनी चाहिए। यह समय की बर्बादी नहीं। इससे आत्मीयता बढ़ती है और रचनात्मकता का विकास होता है। साथ ही संगठन का काम भी बढ़ता है। हमेशा राष्ट्र निर्माण और समाज निर्माण का ध्येय लेकर चलें। इसलिए संघ के पदाधिकारियों के साथ खुलकर बिना किसी पूर्वाग्रह के बात करें।

बैठक के दौरान संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों को नसीहत भी दी। उन्होंने कहा कि सेवा और समर्पण का भाव लेकर चलें। स्वयंसेवक देने वाला होता है, लेने वाला नहीं। वह बिना अपेक्षा के संघ में आता है। अपेक्षा लेकर आने वालों के लिए यहां जगह नहीं होती। वृत्ति से संघ के स्वयंसेवक संत होते हैं। यह एक साधना है, लेकिन जरूरत पड़ने पर योद्धा संत की भूमिका में आ जाते हैं और युद्ध के लिए भी तैयार रहते हैं।

सरसंघचालक डॉ. भागवत ने स्वयंसेवकों को सलाह देते हुए कहा कि स्वयंसेवक आत्मप्रचार से बचें। प्रचार की भूख रहने से व्यक्ति में अहंकार बढ़ता है और इससे समाज के प्रति सरलता घटती है। स्वयंसेवकों को अखबारों के साथ ही सोशल मीडिया- फेसबुक और वाट्सएप पर भी अनावश्यक प्रचार से बचने की जरूरत है। स्वयंसेवकों का मूल्यांकन सामूहिक सहमति के आधार पर करें। इससे गलती होने की आशंका कम होती है। कोई भी दायित्व देने के पहले उनके आचार, विचार, व्यवहार और पृष्ठभूमि को पूरी तरह जांच लें। 

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