-डॉ. हिदायत अहमद खान-
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का समय जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बयानों, क्रियाकलापों और फैसलों से देश ही नहीं बल्कि दुनिया को भी चौंकाने का काम करते नजर आ रहे हैं। फिर चाहे वह चीन से ट्रेडवार का मामला हो, ईरान पर चढ़ाई की बात हो या फिर उत्तर कोरिया में अपना पहला ऐतिहासिक कदम रखने जैसा अहम मामला ही क्यों न हो। पिछले कुछ सालों में जिस तरह के हालात बनते चले गए हैं, उससे तो यही संदेश जाता रहा कि कभी भी तृतीय विश्वयुद्ध का आगाज हो सकता है। दरअसल उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच सालों की तल्खी किसी से छुपी नहीं है। बावजूद इसके अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया की सरजमीन पर पहुंच प्रमुख नेता किम जोंग-उन से मुलाकात कर दुनिया को यह संदेश दिया कि सब कुछ खत्म नहीं हुआ है, बल्कि अब भी बहुत कुछ सुधारा जा सकता है। इससे पहले तक नेताद्वय एक-दूसरे के खिलाफ सख्त लहजे में बयान देते देख व सुने जाते रहे हैं। परमाणु परीक्षणों को लेकर तो अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर सीधे सैन्य कार्रवाई करने तक का मन बना लिया था, इसी बीच उत्तर कोरिया के प्रमुख नेता किम जोंग-उन ने दक्षिण कोरिया की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और सभी को हैरान-परेशान करते हुए सालों की दुश्मनी को दरकिनार कर दोनों गले मिल लिए। इस मेल ने अमेरिका को सोचने पर मजबूर किया कि आखिर अब सैन्य कार्रवाई कैसे की जा सकती है, जबकि उसका सैन्य अड्डा कहा जाने वाला दक्षिण कोरिया भी उत्तर कोरिया से हाथ मिला चुका है। यही नहीं बल्कि अमेरिका के तीखे तेवरों को देखते हुए ही किम जोंग-उन ने चीन यात्रा भी की थी, जिसके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले। कुल मिलाकर अमेरिका कोई बड़ा फैसला लेता और निर्णायक कदम उठाता उससे पहले ही उत्तर कोरिया ने एक तरह से सैन्य बंदिशें करने का काम पूरा कर लिया। संभवत: यही वजह थी कि ट्रंप ने उत्तर कोरिया से ध्यान हटाते हुए ईरान पर शिकंजा कसना बेहतर समझा। पहले तो ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से खुद को अलग किया, उसके बाद तरह-तरह की पाबंदियां आयद कीं और अंतत: ईरान से तेल आयात करने वाले आठ देशों को भी तेल नहीं खरीदने का हुक्म दे दिया। अमेरिका ने साफ कहा कि ईरान से तेल खरीदना बंद करना होगा, अन्यथा ईरान की ही तरह अंजाम भुगतने को तैयार रहना होगा। ईरान से तेल आयातक इन आठ देशों में भारत और चीन के अलावा जापान, इटली, यूनान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की शामिल हैं। अब चूंकि इन देशों में अधिकांश देश अमेरिकी खेमे के ही हैं, इसलिए पाबंदी लगाने में कोई परेशानी भी नहीं हुई। पूरी दुनिया इसे लेकर असमंजस की स्थिति में रही कि आखिर अमेरिका अब ईरान के साथ क्या करने वाला है, क्योंकि ईरान ने भी ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली बात कर दी है। कुल मिलाकर दुनिया इसी झमेले में उलझी रही वहां अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने एक नया इतिहास रचने जैसा काम कर दिखाया। दरअसल अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने उत्तर कोरिया की धरती पर मुलाकात कर संदेश दिया है कि हर समस्या का हल युद्ध नहीं हो सकता, बल्कि बातचीत से भी बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। इसी के साथ उत्तर कोरिया पहुंचने वाले ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हो गए हैं। कहने के लिए तो दोनों नेताओं के बीच यह तीसरी मुलाकात हुई है, लेकिन कोरियाई प्रायद्वीप को विभाजित करने वाले असैन्यकृत क्षेत्र में नेताद्वय का हाथ मिलाना बहुत कुछ कह गया है। इस मुलाकात पर संपूर्ण विश्व की नजरें टिकी रही हैं। कहा जा रहा है कि परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में यह मुलाकात मील का पत्थर साबित होने वाली है। वैसे याद दिला दें कि इससे पहले ट्रंप और किम की दूसरी मुलाकात हनोई में हुई थी, लेकिन वह बेनतीजा रही। इससे पहले भारी तनाव के बीच ट्रंप और किम पहली बार सिंगापुर में मुलाकात कर चुके थे। इन मुलाकातों के बीच ट्रंप कहते रहे हैं कि उत्तर कोरिया का समाधान तलाशना उनकी प्राथमिकता में शामिल है। चूंकि उत्तर कोरिया लाख पाबंदियों के बावजूद झुकने को तैयार नहीं था और उसने सीधे धमकी देते हुए कह दिया था कि यदि हालात बिगड़े तो वह परमाणु परीक्षण और बढ़ा देगा और दुश्मन देशों को सबक सिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगा। अब चूंकि अमेरिका जान चुका था कि यदि उत्तर कोरिया पर सैन्य कार्रवाई की गई तो चीन भी चुप नहीं बैठेगा, अत: उसने चीन को खामोश करने और ईरान पर सख्त से सख्त कार्रवाई करने का रास्ता खोलने की दृष्टि से ही यह दो कदम पीछे जाने वाली चाल चल दी है। दरअसल शतरंज के खिलाड़ी अच्छी तरह से जानते हैं कि जब कोई मंजा हुआ खिलाड़ी अपने मोहरों को दो कदम पीछे ले जाता है तो उसका मकसद अगली चाल में सामने वाले खिलाड़ी को मात देना होता है। किसी शतरंज के खिलाड़ी की ही तरह यहां ट्रंप ने भी उत्तर कोरिया में पहुंचकर किम से हाथ मिलाकर यह संदेश दे दिया है कि अब वो जो करेंगे उसे देखकर दुनिया दांतों तले उंगली दवा लेगी। इसलिए उत्तर कोरिया के साथ ही साथ ईरान को भी फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाना होगा, वर्ना नतीजा बहुत भयानक भी हो सकता है।
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