चित्र नहीं चरित्र की पूजा करते है हिन्दू

-नरेन्द्र सिंह राणा-

चित्र भी उसीका पूज्यनीय होता है जिसका चरित्र पूज्यनीय हो। हम हिन्दू चित्र की पूजा नहीं सत्य की पूजा करते है। मंदिर में जिस भी भगवान की पूजा हम करने जाते है उसका परम पवित्र परोपकारी चरित्र भी हम पढते, जानते अथवा सुनते है। उदाहरण के लिए परमात्मा श्री राम का चरित्र ही मर्यादा, त्याग, आज्ञा, दया, क्षमा, कृपा व प्रेम आदि सद्गुणों से भरा पडा है। श्रीरामचरित्रमानस ग्रंथ सम्पूर्ण विश्व में राम की लीलाओं को जानने समझने व उन्हें जीने के लिए उपलब्ध है। पूज्य गुरूदेव भगवान गौस्वामी तुलसीदास जी महाराज श्रीराम की लीलाओं का वर्णन करते हुए मानस में स्पष्ट लिखते है ‘‘कहा रघुपति के चरित्र आपारा-कहां मति मोरी निरत संसारा- अर्थात भगवान श्री हरि जिन्होने श्रीराम बनकर अवतार लिया है उनके चरित्र अथाह है उनकी कोई थाह नहीं पा सका है तब मेरी संसार में रत् बुद्धि उसका पूरा-पूरा वर्णन कैसे कर सकती है। आगे गुरूदेव लिखते है कि भगवान शिवशंकर ने सर्वप्रथम परमात्मा राम की लीलाओं को अपने हृदय में धारण किया। चैपाई सुअवसर पाई सिवा सन भाषा यानि मां पार्वती को इसका अधिकारी जानकर उनको प्रभु राम की लीलाओं को सुनाया। भगवान भोलेनाथ राम चरित्र के पहले वक्ता है और माता पार्वती प्रथम श्रोता है। राम की लीलाओं की यह पवित्र कथा कैलाश से प्रारम्भ हुई आगे भगवान भोलेनाथ ने अपने प्रिय काकभूसण्डी को रामचरित्र का अधिकारी पाकर उन्हें सुनाया। दूसरे श्रोता काकभूसण्डी बने। उन्होंने यह रामकथा ऋषि याज्ञवल्य को सुनाई इसप्रकार रामकथा के तीसरे श्रोता ऋषि याज्ञवल्य बने। फिर ऋषि याज्ञवल्य ने प्रयागराज में ऋषि भारद्वाज के आग्रह पर उनको श्री रामकथा सुनाई वहीं से यह रामलीला तुलसीदास के गुरू को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तब गुरू जी ने तुलसीदास केा यह कथा बार-बार सुनाई। इनसबके अतिरिक्त भी वेद-वेदान्त आदि का 80 वर्ष अध्ययन करने के बाद 2 साल 7 माह 21 दिन में गोस्वामी जी ने श्रीराम की लीलाओं को रामचरित्रमानस रूपी ग्रंथ में लिख दिया। रामलीलाओं को रामजन्म से राम राज्यभिषेक तक ही गुरूदेव ने लिखा है। आगे प्रभु की लीलाओं का वर्णन गुरूदेव ने नहीं लिखा है। तुलसीदास जी स्पष्ट लिखते है श्रीराम के चरित्र अथाह व अगाध है उनको पूरा-पूरा लिखना किसी के वश की बात नहीं है। ‘‘चैपाई हरि अनंत हरि कथा अनंता-कही सुनहि बहुविधि सब संता‘‘ अर्थात भगवान की लीलाए अनंत है स्वयं श्री हरि भी अनंत है अतः संतगण अनेको प्रकार से अपनी-अपनी मति के अनुसार अनेकोप्रकार से वर्णन करते है। ‘‘चैपाई शारद शेष महेश विधि-आगम निगम पुराण═नेति नेति कह जासु गुण करहिं निरन्तर गान अर्थात, ज्ञानकी देवी मां शारदा, हजारों मुखों वाले शेष जी, भगवान शिव व ब्रहमा तथा वेद पुराण शास्त्र भी राम लीलाओं का वर्णन करते हुए कहते है कि यह हरि चरित्र अभी पूरा-पूरा नहीं है अभी और है और है यह कहते व लिखते हुए विराम लेते है। चैपाई सब जानत प्रभु प्रभुता सोई-फिर भी कहे बिन रहा न कोई तहां वेद अस कारण राखा-भजन प्रभाव बहुविधि भाषा अर्थात सभी प्रभु की इस प्रभुता को भलिभांति जानते हुए भी उसका थोड़ा थोड़ा ही वर्णन कर पाये है। वेद कहते है यद्यपि प्रभु के चरित्र अथाह है अपार है अगाद्य है फिर भी जिससे जितना बन पडे परमात्मा का भजन-कथा-नाम लेना ही चाहिए उसके बहुत लाभ है। चैपाई ‘‘निज गिरा पावन करनकारण रामजस तुलसी कहो-रघुपति चरित आपारा बारिधि पार कौन कवि लहों यानि अपनी वाणी को पवित्र करने के लिए मैंने रामचरित का वर्णन किया है। प्रभु श्रीराम के चरित्र अपार समुद्र की भांति है उनका मैं क्या कोई भी कवि पार नहीं पा पाया है न ही पा सकता है। श्रीराम का ना आदि है न ही अंत है वह सदा एकरस अनंत है। अब प्रभु के परम प्रिय सेवक श्री हनुमान जी के बारे में गरूदेव लिखते है चैपाई ‘‘पूण्य पंुज तुम पवन कुमारा-सेवों जाई कृपा अगारा-असकहि कपि चलते तुरन्ता अंगद कहा सुनो हनुमन्ता-दण्डवत् कहना मेरी प्रभु से तोहि विनय कहुं कर जोरि-बार बार प्रभु को सुमिरिन कराते रहना मोरी-अर्थात जब सुग्रीव व अंगद, जामवंत तथा विभिषण अयोध्या जी से प्रभु के आदेश पर अपने अपने नगरों को लौटते है तब उनको अयोध्या की सीमा तक श्री हनुमान जी विदा करने आते है विदाई के समय वानरराज सुग्रीव हनुमान जी से कहते है विनय करते कि हे हनुमान तुम पूण्यों के पंूज हो, भण्डार हो जाओं प्रभु की सेवा करों उसी समय अंगद भी हनुमान जी से हाथ जोड़कर प्रार्थना करते है कि हे हनुमान प्रभु को समय-समय पर हमारी याद कराते रहना उनको हमारी दण्डवत् कहना। श्रीराम भगत हनुमान जी के चरित्र भी प्रभु की भांति अपार है। बालसमय रवि भक्ष लियो तब तिनों लोक भयों अंधियारा═देवन आन करी विनति तब छाड दियों रवि कष्ट निवारों‘‘ बचपन में ही सूर्य को फल समझ कर खा लिया सारे जगत में हाहाकार मच गया- देवताओं ने प्रार्थना की तब सूर्य को छोड़ा। रावण की लंका को खेल ही खेल में जला डाला। खेल ही खेल में समुद्र लांद्य गए। लक्ष्मण मूर्छा के समय बुटी की जगह पूरा पहाड़ ही उठा लाये आदि-आदि पवनकुमार के चरित्र अथाह है। मनोजवम्-मारूती तुल्यवेगम-जितेद्रियम-बुद्धिमतावरिष्ठ-वानंरानामघिशम-रघुपतिप्रियभगतं वातजात्म नमामि‘‘ हे हनुमान जी आप की गति मन की गति से भी अधिक है, आपका वेग वायु से भी ज्यादा है आप परम जितेन्द्रिय है, बुद्धिमानों में वरिष्ठ है, हे पवन पुत्र परम राम भगत तुमको बारम्बार हमारा प्रणाम। परनव पवनकुमार हनुमाना-राम जासु जस अप बखाना═हे पवनकुमार हम आपको प्रणाम करते है आपकी शरण ग्रहण करते है स्वयं प्रभु श्रीराम ने अपनी वाणी से आपका सुयश कहां है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से हम सभी भलि भांति परिचित है। अभी हमने जन्माष्टमी उत्सव मनाया है। श्रीमद्भागवत् व गीता जी में प्रभु की लीलाओं का सुन्दर वर्णन है। भगवान भोलेनाथ का चरित्र शिव महापुराण में उल्लेखित है। गणपति बप्पा मोरया का उत्सव मनाया जा रहा है। गणेश जी की लीलाओं को विशेषरूप से माहराष्ट्र सहित पूरे देश में 15 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि पूजा भी वर्ष में दो बार सम्पूर्ण देश में हर्षोउल्लास से मनाते है। रामनवमी, जन्माष्टमी, शिवरात्रि को महारात्रि के रूप में हिन्दू वर्ष में एक बार मनाते है। हर त्यौहार संदेशप्रद है। बुराई पर अच्छाई की जीत पर हम दशहरा व दीपावली मनाते है। कंस जैसे अत्याचरी का बध करने प्रभु प्रगटते है हम जन्माष्टिमी मनाते है। हर चित्र का अपना प्रेरणादायी, उल्लेखनीय चरित्र है। हम चरित्र के उपासक है चित्र तो प्रतीक मात्र है। हमारे यहां किसी ग्रंथ को अन्तिम नहीं माना है क्योंकि हमारी यात्रा सिद्धता से निरन्तर शुद्धता की और जाती है। कोई पूर्ण विराम नहीं है। जड़ से चैतन्य की यात्रा है। जहां ठहराव है उसे जड़ जहां प्रवाह है उसे साधारण भाषा में चैतन्य कह सकते है। अतः हमें बुत पूजक कहने वाली काफिर बताने वाली सोच को सही दिशा दीजिए गलत नहीं हम सभी धर्मों का सम्मान करते है इसका अर्थ यह नहीं की कोई हमारे धर्म का अपमान करे।

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