-सिद्घार्थ शंकर-
निगाहें हालांकि हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव पर है, मगर इसी दौरान 18 राज्यों की 63 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के नतीजे कई राज्यों में सियासत की नई पटकथा लिखेंगे। मसलन कर्नाटक में विधानसभा उपचुनाव सीएम बीएस येदियुरप्पा के लिए करो या मरो का सवाल है तो यूपी और बिहार में सीएम योगी आदित्यनाथ व नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा का सवाल। राजस्थान और मध्यप्रदेश के नतीजे बताएंगे कि वहां की सियासत में जारी शह और मात के खेल में भाजपा और कांग्रेस में किसका पलड़ा भारी है। जबकि केरल के नतीजे तय करेंगे कि वाम दलों की देश की सियासत में आखिरी उम्मीद भी बचेगी या नहीं। उपचुनाव की दृष्टि से कर्नाटक सबसे अहम है जहां 15 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। ये वह सीटें हैं जो कांग्रेस और जदएस के विधायक के इस्तीफे से खाली हुई है और बहुमत हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा को हर हाल में 8 सीटें जीतनी होगी। ऐसा नहीं होने पर येदियुरप्पा और भाजपा सरकार मुश्किलों में घिर सकती है। येदियुरप्पा की चुनौती इसलिए भी बड़ी है कि जिन इलाकों की ये सीटें हैं उन्हें कांग्रेस-जदएस का गढ़ माना जाता है। इस समय कुल 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 105 विधायक हैं जो बहुमत से 8 कम हैं। उत्तरप्रदेश का उपचुनाव भाजपा ही नहीं सपा-बसपा की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा हुआ है। सीएम योगी के सामने जहां भाजपा की 11 में से 9 सीटें बचाने की चुनौती है, वहीं नतीजे यह साबित करेंगे कि सपा और बसपा में से कौन सही मायने में भाजपा को टक्कर दे रहा है। सपा और बसपा दोनों को पता है कि उपचुनाव के नतीजे में विपक्ष का वोट जिस दल की ओर ज्यादा झुकेगा उस दल के पक्ष में भविष्य में भाजपा के विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण भी होगा। यही कारण है कि सपा और बसपा ने उपचुनाव के लिए सारी ताकत झोंक दी है। केरल वाम दलों की आखिरी उम्मीद है, जिसे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हिला कर रख दिया था। इस राज्य की पांच सीटों पर चुनाव होने हैं। नतीजे तय करेंगे कि क्या मतदाताओं ने वाम राजनीति के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का फैसला कर लिया है। मध्यप्रदेश-राजस्थान से भी बड़े संकेत मिलने की उम्मीद है। इन दोनों राज्यों में पिछले साल कांग्रेस ने बमुश्किल से सरकार बनाई थी। हालांकि, लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। अब मध्यप्रदेश की एक और राजस्थान की जिन दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वह सीटें भाजपा और उसके सहयोगी की थी। जाहिर तौर पर अगर कांग्रेस ये सीटें छीनने में कामयाब रही तो उसका मनोबल बढ़ेगा, दूसरी स्थिति में भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल होगा। बिहार में ऐसे समय में विधानसाभा की पांच सीटों और लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं जब भाजपा और जदयू में तनातनी चल रही है। विधानसभा की चार सीटों पर जदयू तो लोकसभा की एक सीट पर लोजपा का कब्जा था। नीतीश अगर अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहे तो उनका कद बढ़ेगा, मगर तब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राजद की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। यह चुनाव भले ही राज्यों तक सीमित हों, भले ही समीकरण स्थानीय हों, मगर परिणाम की झलक दूर तक दिखाई देगी। लोकसभा चुनाव में भाजपा की बंपर जीत और विपक्ष की हार के बाद यह चुनाव कई दलों की प्रतिष्ठा को नए सिरे सेे आंकने का काम करेगा। अगर भाजपा का प्रदर्शन फीका रहा तो संदेश केंद्र के खिलाफ भी जाएगा और विपक्ष फिर पस्त हुआ तो भाजपा का बढ़ता जनाधार और भी मजबूत होगा। अत: इस चुनाव को भाजपा से कहीं ज्यादा विपक्ष को गंभीरता से लेना होगा। वरना तो भाजपा ने जीत हासिल करने की तैयारी कर ली है। अब क्या होगा, यह 24 अक्टूबर को सामने आएगा।
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