Rudraprayag : केदारनाथ आपदा को आज पूरे आठ साल का समय हो चुका है और इन आठ सालों में केदारनाथ की तस्वीर भी काफी बदल चुकी है। धाम में पुनर्निर्माण का कार्य आज भी जारी है। केदारनाथ पुनर्निर्माण में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान का अहम योगदान रहा है। आपदा के बाद संस्थान ने धाम के लिए गौरीकुण्ड से केदारनाथ पैदल मार्ग को तैयार किया। आपदा से ध्वस्त हो चुके 18 किमी का पैदल मार्ग बनाया, जो अब काफी सुगम है और यात्रियों के लिए राहत भरा भी है।
इस पैदल मार्ग पर छानी कैंप, रुद्रा प्वाइंट, लिनचैली, बड़ी लिनचैली बनाई गई है, जहां पर आपदा के बाद से तीर्थ यात्रियों के लिए रहने की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा केदारनाथ धाम में आपदा के बाद हैलीपेड निर्माण, मंदिर परिसर, आस्था पथ, मंदाकिनी पुल निर्माण, पांच तीर्थ पुरोहित भवनों के साथ ही मंदाकिनी व सरस्वती नदी किनारे सुरक्षा निर्माण का कार्य पूर्ण हो चुका है, जबकि अभी भी धाम में शंकराचार्य समाधि स्थल, तीर्थ पुरोहित भवन, अस्पताल, पुलिस भवन के साथ ही अन्य कार्य होने बाकी हैं, जिनका कार्य चल रहा है। लेकिन धाम में मौसम खराब होने से कार्य समय पर नहीं हो पाते हैं।
इन दिनों धाम में वुड स्टोन कंपनी शंकराचार्य समाधि स्थल व डीडीएमए की ओर से अस्पताल भवन, पुलिस चौकी का कार्य किया जा रहा है। यहां प्रशासनिक अधिकारियों के लिए रहने के लिए भवन भी बनाये जा रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाय तो आपदा के बाद केदारनाथ में बहुत तेजी से कार्य हुए हैं, लेकिन केदारनाथ यात्रा के अहम पड़ाव गौरीकुण्ड में आपदा के बाद सिर्फ सुरक्षा निर्माण कार्य के अलावा कुछ नहीं हो सका। यहां पर गर्म कुंड का निर्माण आज तक नहीं हो पाया है। ऐसे में यहां के लोगों में सरकार और शासन के प्रति आक्रोश बना हुआ है।
केदारनाथ आपदा में हजारों लोगों ने गंवाई जान
केदारनाथ से आई वह प्रलयकारी आपदा में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई तो लाखों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा। प्रलयकारी आपदा ने केदारनाथ से लेकर रुद्रप्रयाग तक भारी तांडव मचाया। आपदा में मरने वालों का आंकड़ा 4400 बताया गया है, लेकिन लोगों की माने तो दस हजार से ज्यादा लोग इस आपदा में कालकलवित हो गए। केदारघाटी के साठ प्रतिशत लोग केदारनाथ यात्रा पर ही निर्भर रहते हैं। यात्रा के दौरान घोड़ा-खच्चर, डंडी-कंडी, होटल, ढाबा चलाकर सालभर की आमदनी कमाते थे। इस आपदा में केदारघाटी के कई गांवों के सैकड़ों लोग मरे थे, जिनकी याद में आज भी उनके परिजनों के आंखों में आंसू देखे जा सकते हैं।
और पढ़ें : स्मार्टफोन एप बनाओ, भविष्य चमकाओ
केदारनाथ आपदा को आठ साल का समय हो चुका है और लोग उस भयानक मंजर को भूलाकर अपने काम-काज में लगे हुए हैं। केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्य भी जोरों से चल रहे हैं। अब केदारपुरी आपदा की दृष्टि से काफी सुरक्षित हो गई है। धाम के चारों ओर आपदा के बाद थ्री लियर प्रोटेक्शन दीवार का निर्माण किया गया है। आपदा के आठ वर्ष बाद केदारनाथ धाम पूरी तरह बदल चुका है। धाम में पहले के मुकाबले अब काफी बेहत्तर सुविधाएं सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हैं। हालांकि कोरोना काल में यात्रियों के दर्शन पर रोक लगी हुई है लेकिन कोरोना से पहले केदारनाथ यात्रा ने नई ऊंचाईयों को छुआ है।
आपदा के बाद शुरुआत के दो वर्षों में जरूर यात्रियों की संख्या कमी रही, लेकिन इसके बाद यात्रा ने सभी नए व पुराने रिकार्ड तोड़ दिए। पहली बार वर्ष 2019 में दस लाख से अधिक यात्री दर्शनों को आए। यात्रा से जुड़े हजारों व्यापारियों ने अच्छी आमदनी कर अपनी आजीविका चलाई। प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत होने वाले कार्य भी अब अंतिम चरण में हैं।
16 व 17 जून वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा की तबाही का मंजर काफी खौफनाक था। उस समय हुई तबाही को देख कर उम्मीद कर पाना मुश्किल था कि अब कभी निकट भविष्य में केदार बाबा की यात्रा शुरू भी हो पाएगी या नहीं, लेकिन पिछले आठ वर्षों में केदारनाथ यात्रा ने जो नए रिकॉर्ड बनाए हैं, उससे केदारनाथ यात्रा को नया मुकाम मिला है। आपदा से अब केदारपुरी पूरी तरह उबर चुकी है और आपदा से पहले के मुकाबले यहां पर यात्रियों को बेहत्तर सुविधाएं मिलत रही हैं, चाहे वह स्वास्थ्य से संबंधित हो या फिर अन्य। कम समय में ही केदारनाथ के पुनर्निर्माण कार्यों को विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद पूरा करना सरकारी तंत्र की धाम के प्रति जवाबदेही के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लगातार पुर्ननिर्माण कार्यों की मानेटरिंग करना मुख्य कारण रहा है।
वीडियो देखें : दिल की ये चार बीमारियां बहुत तेजी से ले रही है लोगों की जान
केदारनाथ आपदा के बाद मंदिर के ठीक पीछे से मंदाकिनी व सरस्वती नदी रूख मंदिर की ओर मुड़ गई। जिससे तबाही काफी अधिक हो गई। अब सरकार ने मंदिर के ठीक पीछे मंदकिनी व सरस्वती नदी पर 390 मीटर लंबी 18 फीट ऊंची व दो फीट चौड़ी कंक्रीट की थ्री लियर दीवार बनाई है। जिसके चलते आपदा की दृष्टि से केदारनाथ धाम काफी सुरक्षित हो गया है। मंदाकिनी नदी व सरस्वती नदी पर भी सुरक्षा दीवार बनाई गई है, जिससे नदी का कटाव को रोक दिया गया है। इससे भी धाम काफी सुरक्षित हो गया है।
आपदा के समय गौरीकुंड हाइवे रुद्रप्रयाग से लेकर गौरीकुंड तक कई स्थानों पर पूरी तरह बह गया था, अब इस हाइवे को आलवेदर रोड के तहत बनाया जा रहा है। जिसमें कटिंग का कार्य पूरा हो चुका है। यहां पर यात्रियों के रहने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं जुटाई गई हैं। सात हजार यात्री यहां पर रह सकते हैं। सरकार ने तीर्थपुरोहितों के लिए भवनों का निर्माण केदारनाथ में कराया है। इतना ही नहीं यात्रियों के रहने के लिए शानदार कॉटेज का निर्माण किया गया है। आपदा के बाद भीमबली से केदारनाथ तक 10 किमी नया रास्ता तैयार किया गया। जिसमें छोटी लिनचोली, लिनचोली, रुद्रा प्वाइंट समेत कई छोटे बाजार बन चुके हैं। केदारनाथ पैदल मार्ग भी पहले के मुकाबले काफी अच्छा व सुरक्षित हो गया है। पूरे मार्ग पर रेलिंग लगाई गई है जबकि मार्ग भी तीन से चार मीटर तक चौड़ा किया गया है। लिनचोली, छोटी लिनचोली, रुद्रा प्वाइंट समेत कई पड़ाव विकसित कर यहां यात्रियों के रहने के लिए व्यवस्थाएं की गई हैं। सरकार द्वारा जुटाई गई व्यवस्थाओं का नतीजा ही है कि अब केदारनाथ में रिकॉर्ड यात्री इस बार उमड़ रहे हैं। आपदा से पहले भी इतनी बड़ी संख्या में केदारनाथ यात्री नहीं आते थे जितनी संख्या में गत वर्ष यात्री केदारनाथ धाम पहुंचे। केदारनाथ धाम में यात्रा सीजन में सात हजार से अधिक यात्रियों के रहने की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाती है।
केदारनाथ आपदा के बाद से धाम में पुनर्निर्माण कार्य कर रहे वुड स्टोन कंपनी के प्रबंधक मनोज सेमवाल ने बताया कि धाम में आपदा के बाद नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने कार्य किया और आपदा के दो से तीन सालों के भीतर केदारनाथ में तेजी से कार्य करते हुए यात्रियों के लिए व्यवस्थाएं जुटाई गई। अब धाम में वुड स्टोन कंपनी, डीडीएमए विभाग कार्य कर रहा है।
प्रभारी मंत्री डाॅ धन सिंह रावत ने कहा कि केदारनाथ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत कार्य हो रहे हैं। धाम में निर्माण कार्यों की मॉनिटरिंग की जा रही है।
हालांकि आपदा के आठ साल गुजर जाने के बाद भी केदारनाथ यात्रा के अहम पड़ाव गौरीकुण्ड में एक भी विकास कार्य नहीं हुए हैं। यहां पर ना ही समुचित पार्किंग का निर्माण हो सका है और ना ही तप्त कुंड एव गर्म कुंड का निर्माण हो सका है। ऐसे में गौरीकुण्ड की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर रही है।
This post has already been read 6517 times!