अहं की दृष्टि भगवान को नहीं पहचान पाती

सत्य को देखने व पहचानने के लिए पूर्ण होश, पूर्ण जागरूकता, पूर्ण चैतन्य जरूरी है। भगवान श्री कृष्ण दुर्योधन की राजसभा में दूत के रूप में पहुंचकर हठी दुर्योधन को युद्ध की विभीषिका व उससे उत्पन्न परिणामों की भयावहता के बारे में आगाह करते हुए पाण्डवों को केवल पांच गांव देने की बात कहते हैं कि पाण्डव इनसे ही संतुष्ट होकर अपना निर्वाह कर लेंगे। लेकिन अहंकार से भरा दुराग्रही दुर्योधन उलटे श्री कृष्ण को दुर्वचन कहता हुआ अपने सैनिकों द्वारा उन्हें बंदी बना लेने को उद्यत हो गया। भगवान श्री कृष्ण तब अपना विराट स्वरूप दिखाते हैं, भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण आदि अत्यंत हर्षित होकर स्वयं को धन्य मानकर अहोभाव से उस दिव्य स्वरूप को प्रणाम कर रहे हैंय कि हमने जीवन के परम सत्य को देख लियाय हमारा तरण हो गया। लेकिन अहमन्य, दुर्बुद्धि दुर्योधन उस परम सत्य को नहीं देख पाया। उसे अनंत ब्रहमांडों के नियंता श्री कृष्ण में चमत्कार, जादू, धोखा, मदारी दिख रहा था। वह तुरंत कह उठा कि यह तो दृष्टि-भ्रम है, धोखा है। यह यशोदा का पुत्र (श्री कृष्ण) जो कल तक ग्वाला था, गौवें चराता था, कब से भगवान बन गया!

दुर्योधन को श्री कृष्ण में परमात्मा की जगह मदारी व चरवाहा इसलिए दिखाई दिया क्योंकि वह मद, अहंकार से बेहोश था, उसकी आंखें मुर्छित थीं। इसलिए वह सामने खड़े भगवान को नहीं पहचान पाया और उन्हें ग्वाला ही समझता रहा

यदि कोई महापुरुष कल तक किसी के पास कहीं कोई काम करते हों तो वह जन कभी यह स्वीकार ही नहीं कर पायेगा कि यह संत हैं, महापुरुष हैं। उसकी अधूरी-अपूर्ण चेतना उसे कल तक का साधारण काम करने वाला व्यक्ति ही समझती रहेगी। अरे, यह तो कल तक मेरे पास नौकर था, यह संत-महापुरुष कब से बन गया! वह कल तक तुम्हारे साथ कीचड़ में था, ऊपर उठा और आज कमल बन गया। जो नीचे ही रहा, नीचे गिरा, वह कीचड़ ही रहा। लेकिन जो ऊपर उठ गया वह कमल बन गया।

महापुरुष, दिव्य विभूतियां साधारण धरातल से ऊपर उठकर कमल बन कर खिल जाती हैं, अपने दिव्य सुकर्मों के सौंदर्य व सुगंध से जगत को सुंदर बनाती व महकाती हैं। उनकी चेतना, उनकी दृष्टि ऊर्ध्वमुखी हो जाती है। परंतु कीचड़ कभी स्वीकार नहीं कर पाता, कमल को अपने से श्रेष्ठ नहीं समझ पाता। इसी प्रकार दुर्योधन की दृष्टि नहीं पहचान पाई श्री कृष्ण को। तो अहं की दृष्टि सत्य को, भगवान को नहीं पहचान-जान पाती। सामने सत्य होगा, भगवान होंगे, लेकिन वह नहीं देख-स्वीकार कर पायेगी। उनको गलत कह देगीय मिथ्या दोषारोपण कर देगी।

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