-डा. अजय खेमरिया- वे देश के इतिहास, संस्कृति, कला, साहित्य, पत्रकारिता और अन्य सभी बौद्धिक क्षेत्रों में एकाधिकार के स्वामी थे। सरकारी सुविधाओं पर टिके ये वामपंथी बुद्धिजीवी वर्ष 2014 के बाद से छटपटा रहे है। बहुलतावाद, विविधता और साझा विरासत के नाम पर जो विकृत इतिहास इन बुद्धिजीवियों ने हमारे मन मस्तिष्क में भरा उसे आज का नया भारत खारिज करना सीख गया है। इस पुण्यभूमि के सनातन मान बिंदुओं को कमतर और अपमानित करके जिस अल्पसंख्यकवाद को इन विचारकों ने भारतीय शासन और राजनीति में स्थापित किया था…
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राज्यों में भाजपा स्वीकार नहीं
भाजपा झारखंड में भी चुनाव हार गई। एक और महत्त्वपूर्ण राज्य उसकी मुट्ठी से फिसल गया, जिसका गठन 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने किया था। राज्य के इन 19 सालों में से करीब 17 साल भाजपा ने सरकार चलाई है। फिर भी जनता ने करारी पराजय के साथ उसे नकार दिया। ऐसे जनादेश अब चौंकाते नहीं हैं। लोकसभा का जनादेश मई, 2019 में मिला था और 303 सीटों के प्रचंड जनादेश के साथ मोदी सरकार दोबारा आई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की…
Read Moreकैसी डेमोक्रेसी है, घर का ईच आदमी परदेसी है
-अवधेश व्यास- क्या भाय, आया पावर हाथ में तो दम देने का हर बात में! तुम तो बोल रएले थे, बोले तो सब रहेंगा साथ में, पन कोई कू नागरिकता खैरात में और कोई कू बोल दिया, बोले तो रेहने का औकात में!! कुच करने कू नई पड़ा खर्चा और अक्खा वर्ल्ड में होने कू लग गएला अपुन के मुलुक का चर्चा। अंदर होए कित्ता बी झोल, पन हर तरफ बजने कू लग गएला है मजहबी रागमस्ती का ढोल और बन गएला है माहौल। कबी सोचने कू बी नई हुआ…
Read Moreभाषा की मर्यादा
-सिद्धार्थ शंकर- राजनीतिक पार्टियों का एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और व्यंग्य बाण चलाना नई बात नहीं है। लोकतंत्र में असहमति बड़ा गुण माना जाता है, पर कई बार जब राजनेता दुर्भावनावश या घृणाभाव से अपने प्रतिपक्षी के प्रति अशोभन भाषा का इस्तेमाल करते हैं, तो स्वाभाविक ही उनके आचरण पर अंगुलियां उठने लगती हैं। चुनाव के वक्त राजनेताओं की भाषा अक्सर तल्ख हो उठती है, मगर पिछले कुछ सालों से इसमें जिस तरह की तल्खी देखी जा रही है, वह लोकतंत्र के लिए कतई अच्छी नहीं कही जा सकती। सार्वजनिक जीवन…
Read Moreनागरिकता विधेयक पर सियासत
-डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री- भारत की नागरिकता को लेकर विवाद 1947 से ही शुरू हो गया था। उससे पहले वर्तमान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश (उस समय पूर्वी पाकिस्तान) के सब लोग भारतीय नागरिक ही थे, लेकिन जुलाई 1947 में इंग्लैंड की संसद ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 पारित किया जिसमें भारत के कुछ हिस्से को काट कर उसे पाकिस्तान का नाम दे दिया गया। दुर्भाग्य से नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने ब्रिटिश संसद द्वारा पारित इस विधेयक को स्वीकार कर लिया। इस विधेयक के पारित होने से केवल पाकिस्तान…
Read Moreअब जनमत संग्रह की मांग
विडंबना है कि बीते पांच दिनों से देश के तमाम मुद्दे नेपथ्य में डाल दिए गए हैं। सिर्फ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के खिलाफ हिंसक और आक्रोशी प्रदर्शन ही सुर्खियों में हैं। चूंकि वही देश का प्रमुख घटनाक्रम है, लिहाजा उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। देश की कई समस्याएं दबी पड़ी हैं, कुछ विश्वविद्यालयों को परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी हैं, सड़कों पर सिर्फ उद्वेलित जनसैलाब है, इंटरनेट, मोबाइल सेवाएं बंद हैं, मानो आदमी गूंगा-बहरा और दिव्यांग हो गया है! इस आग में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी…
Read Moreट्रंप का महाभियोग और भारत की भूमिका
-डॉ. रमेश ठाकुर- अमेरिकी राजनीति में दो बार महाभियोग प्रस्ताव लाए गए, दोनों में सत्तापक्ष की हार हुई और विपक्ष अपने मकसद में कामयाब हुआ। अब, तीसरा महाभियोग मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर लाया गया है। यह बात सच है कि राजनीति चाहें देशी हो या विदेशी उसमें तय किए गए औहदे स्थाई नहीं होते? सियासी तूफान जब आता है तो अपने साथ बहा ले जाता है। दुनिया के प्रचंड शक्तिशाली मुल्क अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है, ऐसा अंदेशा है। उनपर…
Read Moreविभाजित व्यक्तित्व की परीक्षा
-प्रो. एनके सिंह- क्या भारत हिंदू देश है या क्या यह मुस्लिम अनुकूल पूर्वाग्रह के साथ धर्मनिरपेक्ष है? यह देश की हर जगह का सवाल है। कोई भी इस परिप्रेक्ष्य में इसे परिभाषित नहीं करता है। भारत का इतिहास हमें सता रहा है और हम नहीं जानते कि हम भूतकाल के भूतों से कैसे जूझ सकते हैं। भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया था और जिस तरह से उन्होंने अपनी जीत हासिल की थी, वह बहुत यातनापूर्ण थी। हमलावर बंदी महिलाओं और बच्चों के साथ निर्मम थे। उनके…
Read Moreमुद्दा गरम, भय या भरम
-सज्जाद हैदर- वाह रे राजनीति तेरे रूप अनेक, यह एक ऐसी पहेली है जिसे समझने के लिए किसी भी प्रकार का सूत्र नहीं है जिसके माध्यम से समझा,परखा एवं मापा जा सके। राजनीति एक ऐसी प्रयोगशाला है जिसके सभी सूत्र अलिखित एवं अघोषित होते हैं। बस इंतेज़ार होता है समीकरण का जब जहाँ भी जिसे भी मात्र वोट बैंक साधने का अवसर प्राप्त हो जाता है वह बिना समय गँवाए तत्काल अपने समीकरण के अनुसार चाल चलनी आरंभ कर देता है। राजनीति के सूत्र की यही वास्तविकता एवं सत्यता है।…
Read Moreसार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना विरोध का तरीका नहीं
-योगेश कुमार सोनी- सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को अब बख्शा नहीं जाएगा। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश में कई जगहों पर हिंसक घटनाओं के बाद गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी करके हिंसा और सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान को रोकने के लिए कहा है। यह भी आदेश दिए हैं कि हिंसा भड़काने पर सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों व अफवाहों के खिलाफ राज्य सरकारें कार्रवाई करें। अपने देश में आए दिन हर छोटी-बड़ी घटना को लेकर कहीं न कहीं विरोध प्रदर्शन होता रहता…
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