रांची। झारखंड के चुनावी रण में सत्तारूढ़ भाजपा लगातार हार की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाला विपक्षी महागठबंधन इस भगवा किले पर फतह के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। करीब पांच साल तक सरकार चलाने के वाले मुख्यमंत्री रघुवर दास को चुनावी नतीजों में अपनों की नाराजगी भारी पड़ती दिख रही है। भाजपा काफी पीछे चल रही है। भाजपा के हार के पीछे कई कारण सामने हैं। भाजपा ने 2014 में हुए विधानसभा में अपनी सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। भाजपा को 37 और आजसू को पांच सीटें मिली थीं। इसबार के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी दल को नजरंदाज किया और अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। भाजपा का यह फैसला उस पर भारी पड़ गया। 2000 में झारखंड का गठन होने के बाद से दोनों दल साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन इसबार भाजपा ने नाता तोड़ लिया। यही नहीं भाजपा की एक अन्य सहयोगी पार्टी एलजेपी ने भी साथ मिलकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया लेकिन भाजपा ने उसे ठुकरा दिया था। बाद में एलजेपी को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा।
विपक्ष ने बनाया महागठबंधन
झारखंड में एक तरफ जहां भाजपा ने अपने सहयोगी दलों को नजरंदाज किया वहीं विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा और भाजपा के इस किले को ध्वस्त कर दिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन ने सीटों का बंटवारा कर चुनाव लड़ा और भाजपा के अकेले सरकार बनाने के मंसूबों पर पानी फेर दिया। चुनाव परिणामों में अब विपक्ष राज्य में पूर्ण बहुमत हासिल करता दिख रहा है। वर्ष 2014 के चुनाव में तीनों ही दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे लेकिन इस बार कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा से सबक सीखते हुए झामुमो और राजद के साथ महागठबंधन बनाया।
आदिवासी चेहरा न होना
झारखंड में 26.3 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है और 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। महागठबंधन ने झामुमो के आदिवासी नेता हेमंत सोरेन को सीएम पद का उम्मीदवार बनाया वहीं भाजपा की ओर से गैर आदिवासी समुदाय से आने वाले रघुवर दास दोबारा सीएम पद के उम्मीदवार रहे। झारखंड के आदिवासी समुदाय में रघुवर दास की नीतियों को लेकर आदिवासियों में काफी गुस्सा था। आदिवासियों का मानना था कि रघुवर दास ने अपने 5 साल के कार्यकाल के दौरान आदिवासी विरोधी नीतियां बनाईं, जो उनपर भारी पड़ी।
अपनों को किया किनारा
रघुवर दास ने अपनी ही पार्टी के कई दिग्गजों को किनारे लगा दिया। सरयू राय हो या विधानसभा में मुख्य सचेतक रहे राधाकृष्ण किशोर सहित कई को टिकट से वंचित कर दूसरे दलों से आये नेताओं को टिकट दिया जो उनपर भारी पड़ गया।
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