महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना को पछाड़कर सत्ता का ताज कब्जाया

-बाल मुकुंद ओझा-

महाराष्ट्र की सियासत ने सबको हैरत में डाल दिया है। हालांकि देश की सियासत में पहले भी ऐसे चैंकाने वाली घटनाएं सामने आयी है जिसने सबको हैरान कर दिया था। अपने ससुर एन टी रामाराव को दामाद चंद्र बाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश में सत्ता से बेदखल किया हो या भजन लाल ने हरियाणा में समूची केबिनेट के साथ कांग्रेस में प्रवेश किया हो। ऐसी अनेक घटनाएं हमारे सियासी इतिहास में दर्ज है। मराठा सियासत में सत्ता के दांवपेंच कोई नई बात नहीं है। मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में सत्ता का ऐसा खेल कई बार खेला गया मगर इस बार दो भतीजों ने जो सियासी खेल खेला वह आजाद भारत में इससे पूर्व कभी देखा और सुना नहीं गया। मराठा क्षत्रप शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने गोपीनाथ मूंडे के भतीजे धनञ्जय मूंडे के साथ मिलकर जो पाशा फेंका उससे मराठा चाणक्य चारोंखाने चित हो गए। इसी के साथ महाराष्ट्र में करीब एक माह से चल रहा सियासी ड्रामा आखिरकार समाप्त हो गया। भाजपा और एनसीपी के अजीत पवार ने मिलकर महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन कर लिया। महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा राजनीतिक उलटफेर हो गया। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सीएम बनने के अरमानों पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने पानी फेर दिया। अजित पवार ने एनसीपी को तोड़कर नया सियासी गेम बनाया है। देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर सीएम बने हैं और अजित पवार ने डिप्टी सीएम के पद की शपथ ली है। कल तक सरकार बनाने के लिए उतावली शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस से गठजोड़ कर अपना सीएम बनाने के सपने देख रही थी उसे भाजपा ने एक ही धोबी पछाड़ दांव से चित कर दिया। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी के नेता और शरद पवार के भतीजे अजीत को तोड़ कर सत्ता पर रातोंरात कब्जा कर लिया और इसकी किसी को कानोंकान भनक तक नहीं लगी। जब तक लोग सवेरे सो कर उठे तब तक फडणवीस मुख्यमंत्री और अजीत उप मुख्यमंत्री के पद की शपथ ले चुके थे। इस तिलिस्मी घटनाक्रम से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के छक्के छूट गए। महाराष्ट्र के इस सियासी ड्रामें में कई मिथक टूट गए। सरकार बनाने के लिए नए गठजोड़ हुए। मीडिया खबरों के अनुसार भाजपा के रणनीतिकारों की कई दिनों से अजीत पवार पर पर नजर थी। पवार कई हजार के सहकारी घोटाले में फंसे थे। आरोप है इसी से निकलने के लिए पवार ने भाजपा से समझौता कर लिया। महाराष्ट्र के सियासी इतिहास पर नजर दौड़ाये तो पाएंगे शरद पवार ने 1980 में बसंत दादा पाटिल को सत्ता से बेदखल कर सियासत पर अपना कब्जा जमाया था। आज उसी के परिवार के उनके भतीजे ने पवार को दिन में तारे दिखाकर उनकी चाणक्य की छवि को धराशाही कर दिया। हालाँकि कुछ लोग इसे चाचा भतीजे का षड़यंत्र बताने से नहीं चूक रहे है। शरद पवार शुरू में अपने पत्ते नहीं खोल रहे थे। हर बार मीडिया को यही कह रहे थे की जनता ने उन्हें विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है और फिर आखिर में उद्धव ठाकरे को सीएम बनाने पर अपनी सहमति दी। मगर तब तक इतने देर हो गई की भाजपा ने अजीत को तोड़ कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। इस सम्पूर्ण घटना चक्र से कांग्रेस के भी होश उड़ गए। गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटों के नतीजे 24 अक्टूबर को आए थे। नतीजों से साफ था कि महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना को साफ बहुमत मिला था मगर अपना सीएम बनाने की शिव सेना की हठधर्मी ने इस गठजोड़ को तोड़ दिया। भाजपा और शिवसेना का काफी पुराना और परंपरागत गठबंनध खत्म हो गया। शिवसेना ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। शिवसेना ने अपने हिंदुत्व के एजेंडे को छोड़कर अपने धूर विरोधी कांग्रेस से हाथ मिलाना मंजूर किया। महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने के लिए मंथन कर रही थी। सरकार बनाने का फॉर्मूला भी तीनों के बीच लगभग तय हो गया था कांग्रेस ने सियासी चक्कर में कई दिन लगा दिए और भाजपा ने इस दौरान एनसीपी में सेंध लगा कर सत्ता को उनके हाथों से छीन लिया। इसी बीच एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा अजीत का यह निजी फैसला है,इसमें एनसीपी की सहमति नहीं है। हम उनके फैसले को समर्थन नहीं देते हैं। मगर एनसीपी टूट गई इसमें कोई दो राय नहीं है। कांग्रेस और शिव सेना भी अपने विधायकों को टूट से बचाने के लिए एक बार फिर बाड़ाबंदी में जूट गयी है। यहाँ यह कहना समीचीन होगा की सभी राजनीतिक दल अपने अपने सिद्धांतों को छोड़कर सियासी शह और मात के खेल में जूट गए और अंततोगत्वा भाजपा को इसमें सफलता मिली।

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