-श्रीराम तिवारी-
(जिस किसी ने संस्कृत नीति कथा पुनर्मूषको-भवः नहीं पढ़ी होगी, उसे मेरी यह नव-उत्तरआधुनिक मच्छरकथा शायद ही रुचिकर लगेगी! किन्तु लोक कल्याण के लिए स्वच्छ भारत एवं स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए यह सद्यरचित स्वरचित मच्छरकथा-फेसबुक, ट्विटर, गूगल्र, वॉट्सएप समर्पयामि:!)
——अथ मच्छर कथा प्रारम्भ——-
यद्द्पि मैं कोई तीसमारखां नहीं हूं! फिर भी एक खास तुच्छ प्राणी को छोड़कर और किसी भी ग्यार-अज्ञात ताकत से मैं नहीं डरता। यद्द्पि मुझे अपनी इस मानव देह से बड़ा लगाव है, किन्तु फिर भी मैं मृत्यु से नहीं डरता। मैं कोई आदमखोर जल्लाद, हिंसक भेड़िया, बाघ, चीता या शेर नहीं हूं! मैं कोई देवीय अवतार, दुर्दांत दैत्य या दानव भी नहीं हूं। फिर भी मैं यमराज से नहीं डरता। यद्द्पि मैं जरा-व्याधि, नितांत मरणधर्मा और मेहनतकश इंसान हूं। मैं एक महज सीधा-सरल सा मानव मात्र हूं। फिर भी मैं किसी भी भूत-प्रेत-पिशाच से नहीं डरता। क्योंकि उसके लिए बाजार में हनुमान ताबीजऔर अल्लाह लाकेट उपलब्ध हैं। उसके लिए चर्च वालों के पास एक खास किस्म का जल और क्रास उपलब्ध है।मैं भूकम्प, सूखा, बाढ़ और सुनामी से नहीं डरता। क्योंकि उससे बचने के लिए मेरे भारत में तैतीस करोड़ देवता, चार धाम तीर्थ यात्रायें हैं। लाखों-मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे और चर्च हैं, सैकड़ों धर्म-मजहब और पंथ हैं।
मैं गरीबी, बेरोजगारी और मुफलिसी से नहीं डरता क्योंकि उनसे निजात दिलाने के लिए गरीबी हटाओ के नारे हैं, मन की बातें हैं मनरेगा है, साइंस हैं, टेक्नॉलॉजी है, जन संगठन हैं, हड़तालें हैं, पक्ष-विपक्ष के बेहतरीन नेता हैं। मैं चीन की विशाल सैन्य ताकत से नहीं डरता, पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और उसकी परमाणु बम्ब की धमकी से नहीं डरता, क्योकि उसके लिए हमारे पास अम्बानी हैं, अडानी हैं, टाटा हैं, बिड़ला हैं, बांगर है और मोदी जी हैं। मैं आईएसआईएस, अलकायदा, तालीवान, जमात-उड़-दावा और जेहादियों से नहीं डरता क्योंकि मैं मुसलमान नहीं हूं। जबकि आतंकी जेहादी इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, यमन और सूडान में चुनचुनकर केवल गैर सुन्नी मुसलमानों को ही मार रहे हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा पर अधिकांस मुसलमान ही मारे जा रहे हैं। यद्द्पि हिन्दुओं को भी वे नहीं छोड़ते किन्तु यह केवल अपवाद ही है।
मैं दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से नहीं डरता क्योंकि उसके लिए मेरे पास बाबा हैं साध्वियां हैं, कांवड़ यात्राएं हैं, दुर्गोत्सव हैं, गणेशोत्सव हैं, ईदोत्सव हैं, फागोत्सव हैं, वसंतोत्सव हैं, होली, दीवाली, दशहरा, और प्रकाशोत्सव हैं। वृत-उपवास और कथा-कीर्तन हैं। मैं सरकारी संरक्षण में पलने वाले भृष्टाचार से नहीं डरता क्योंकि उसके लिए डॉ आनन्दराय और गुप्ता जैसे व्हिस्लब्लोबर हैं। मैं ट्रांसफर माफिया से नहीं डरता क्योंकि मैं अब सेवा निवृत हो चुका हूं। मैं दारू माफिया, रेत खनन माफिया, खाद्यन्न-मिलावट माफिया, ठेका माफिया, जिंस-जमाखोर माफिया, व्यापम माफिया, भू माफिया, बिल्डर माफिया, ड्रग माफिया से भी मैं नहीं डरता, क्योंकि इन सबसे निपटने के लिए लोकायुक्त हैं, न्याय पालिका है, मीडिया है, जनता है, विपक्ष के नेता हैं और बार-बार होने वाले चुनाव हैं। और वैसे भी ये सबके सब महापापी खुद ही अपनी मौत भी तो मरते रहते हैं। इनसे क्या डरना ? इनसे तो वही डरता है जो इनसे चंदा लेकर चुनाव लड़ता है और विधायक, सांसद, मंत्री बनता है। मेरे जैसे एक आम आदमी को इनसे क्यों डरना चाहिए?
सफदर हाशमी, नरेंद्र दावोल्कर, गोविन्द पानसरे व कलीबुरगी को मारने वाले हिंस्र-अंधविश्वासी हत्यारों से भी मैं नहीं डरता। क्योंकि इन अमर शहीदों के जैसा महान क्रांतिकारी और समाजसुधारक तो मैं कदापि नहीं हूं। नास्तिक दर्शन पर विश्वास रखते हुए मैं सभी धर्मों की अच्छी बातों और स्थापित मानवीय मूल्यों की कद्र करता हूं। श्रीकृष्ण के इस सिद्धांत को मानता हूं की न बुद्धिभेदम जनयेदज्ञानाम, कर्मसङ्गिनाम, जोषयेत् सर्व कर्माणि विद्वान युक्त समाचरन-अर्थात।
विज्ञानवादी-प्रगतिशील भौतिकवादि विद्वानों को चाहिए कि धर्म-मजहब का ज्यादा उपहास न करें, लोगों को धर्मविरुद्ध ज्यादा ज्ञान न बघारें। उनकी गलत मान्यताओं, कुरीतियों और अंधविश्वाशों पर चोट तो करें किन्तु यह सब करने से पहले खुद को आदर्श रूप में ढालें, फिर दूसरों को पथ प्रदर्शन करें।
चूंकि मैं सच्चे मन से धर्म-मजहब को फॉलो करने वालों की इज्जत करता हूं साथ ही उनको आगाह भी करता हूं कि फतवा वाद, संकीर्णता, पाखंडवाद और ढोंगी मठाधीशों से बचकर रहें। इसीलिये सच्चे आस्तिक भी मेरे मित्र हैं। मैं अतल-वितल-सुतल-तलातल-तल-पाताल और भूलोक इत्यादि सातों लोकों के थलचर, जलचर, नभचर व नाना प्रकार के ज्ञात-अज्ञात भयानक आदमखोर जीव-जंतुओं से नहीं डरता। मैं कोबरा, करैत या विशालकाय ड्रेगन से नहीं डरता। मैं चील-बाज-गिद्ध या गरुड़ से नहीं डरता। मैं कोकोडायल, व्हेल या सार्क से भी मैं नहीं डरता। किन्तु मैं एक अदने से उस जीव से अवश्य डरता हूं जो दुनिया भर के किसी भी हिंस्र आतंकि से भी नहीं डरता। जो प्राणी साहित्यकारों-व्याकरणवेत्ताओं के लिए महज एक तुच्छतर उपमान है। उस तुच्छ जीव का काटा हुआ व्यक्ति पानी नहीं मांगता। इस तुच्छ कीट के काटने से मात्र से किसी को डेंगू, किसी को मलेरिया किसी को चिकनगुनिया और किसी को परलोक की प्राप्ति भी हुआ करती है। मैं इस अति सूक्ष्म किन्तु भयावह जीव से भलीभांति सताया जा चुका हूं। इस के दंश को याद कर सिहिर उठता हूं। अब तो डर के मारे उसका उल्लेख भी नहीं करता।बल्कि सभी सज्जनों से इस कथा को वांचने की याचना करता हूं। अथ श्री मच्छर कथायाम समाप्त!
प्रस्तुत कथा को जो नर-नारी नहां-धोकर, साफ सुथरी जगह पर बैठकर नित्य-नियम से सपरिवार पढ़ेंगे, सुनेंगे और गुनेंगे वे असमय ही परमपद को प्राप्त नहीं होंगे। बल्कि इस धरा पर शतायु होंगे। एवमस्तु!
This post has already been read 8908 times!