पीढ़ियों के लिए प्रेरणा रहेंगे अमिताभ

-रमेश ठाकुर-

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार इससे पहले भी कई महान कलाकारों को दिया गया। लेकिन इस बार अमिताभ बच्चन के नाम पर केंद्र सरकार ने सहमति दी है। सरकार के इस फैसले की सराहना हर कोई कर रहा है। दरअसल, पूरा देश सदी के महानायक कहे जाने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन को ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ का असल हकदार मानता है। सिनेमा को दिए उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। बीते मंगलवार की शाम सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जैसे ही अपने निजी ट्वीटर हैंडल के जरिए अवार्ड के संबंध में सूचना देशवासियों से साझा की, सोशल मीडिया पर अमिताभ बच्चन को बधाईयां मिलने लगी। उनकी लोकप्रियता का ही असर है कि अवार्ड घोषणा के बाद मुंबई स्थित उनके आवास पर लोगों का जमावड़ा लग लगा। विदेश से भी उनके फैंस ने बधाई और शुभकामनाएं दी। बाद में बिग-बी (प्यार से लोग अमिताभ को इस नाम से भी पुकारते हैं।) ने सभी का आभार जताया। 

अमिताभ बच्चन को दर्शक उनकी अलहदा अदाकारी के तौर पर जानते हैं। अभिनय विधा में उन्होंने जो लकीर खींची है उसके आसपास भी कोई दूसरा कलाकार नहीं टिकता। अमिताभ ने किसी एक्टिंग स्कूल से कलाकारी का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है। बावजूद इसके उन्होंने अदाकारी में बड़ी लकीर खींच रखी है। उनकी कलाकारी में दर्शकों को खांटी देशीपन और अपनापन दिखता है। यही वजह है कि पाकिस्तान में भी उनके चाहने वाले करोड़ों की संख्या में हैं। उनके भीतर अव्वल दर्जें का ज्ञान भरा हुआ है। इसी कारण उनको समकालीन समय में ‘स्टार ऑफ द मिलेनियम’ भी कहा जाता है। इतने हुनरदार व्यक्त्वि को दादा फाल्के अवार्ड देने का मतलब है कि सम्मान का भी सम्मान बढ़ाना। समूची दुनिया पर उनकी अदाकारी की चमक फैली हुई है। बात एक या दो दशक की नहीं, बल्कि पिछले पांच दशकों से दुनिया पर अमिताभ की दमदार अदाकारी राज कर रही है।

क्या आम, क्या खास? सभी अमिताभ के मुरीद हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अमिताभ बच्चन की अदाकारी के दीवाने हैं। अमिताभ बच्चन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। भयंकर विसंगतियों और असफलताओं में उनका जरा भी भय न खाना उनके अदम्य साहस का परिचय है। आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए अमिताभ की कही कुछ लाइनें ‘जिस दिन से चला हूं, मेरी मंजिल पर नजर है।’ ‘इन आंखों ने कभी मील के पत्थर नहीं देखे’। उनके मुंह से निकला एक-एक शब्द लोगों को प्रेरणा देता है। जाहिर है ऐसी विभूति ही दादा साहेब फाल्के अवार्ड की असल हकदार होती है। केंद्र सरकार के फैसले की दाद देनी चाहिए।

अमिताभ बच्चन के भीतर एक और हुनर है, जो उन्हें सबसे अलग रखता है। दरअसल, फिल्मी पर्दे पर दिखने से पहले देश के लोगों ने उनकी दमदार आवाज सुनी थी। अपनी पहली फिल्म में वॉयस ओवर के लिए अमिताभ को मात्र तीन सौ का मेहनताना मिला था। सिनेमा से पहली कमाई की उनकी शुरूआत तीन सौ रुपये से ही हुई थी। यह बात अमिताभ बच्चन खुद स्वीकारते हैं कि सिनेमाई दुनिया में स्थापित करने में उनकी आवाज ने बड़ा योगदान दिया। अमिताभ इस वक्त सबसे प्रचलित टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ होस्ट कर रहे हैं। प्रोग्राम की टीआरपी उनकी मौजूदगी से ही शिखर पर है। हिंदुस्तान के अलावा करीब सौ से ज्यादा देशों में यह कार्यक्रम सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। अमिताभ ने कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा। उन्होंने अपनी पहली नौकरी कोलकाता में शुरू की थी। वहां उन्हें तनख्वाह के रूप में मात्र पांच सौ रुपये मिलते थे। वॉयस-ओवर के लिए भी कमोवेश, पचास या साठ रुपये ही मिलते थे।

अमिताभ ने हर कठिन दौर को आत्मविश्वास से पार किया। कई नाकामियां उनके हिस्से में आईं। फिल्मफेयर में भी नकारे गए। फिल्मों में लगातार असफलताएं हाथ लगी। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। निरंतर आगे बढ़ते गए। उनका मानना है कि संघर्ष से ही कामयाबी की सीढ़ी चढ़ी जाती है। इस बात का वह बखूबी उदाहरण हर मंचों पर देते रहते हैं। अमिताभ बच्चन पर दुआओं का बहुत असर है। फिल्म ‘काला पत्थर’ में खदान धंसकने का सीन उनकी निजी जिंदगी से लिया गया है। शूटिंग के दौरान ‘कुली’ फिल्म के सेट पर वह गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। तब देश के लोगों ने उनके सलामती के लिए हवन तक किए। तीन साल बाद जब ठीक हुए तो उस फिल्म को पूरा किया। अमिताभ का निजी जीवन और फिल्मी करियर देखें तो संघर्षों से भरा रहा है। एक वक्त ऐसा आया जब वह कर्ज के दलदल में फंस गए थे। लेकिन आज वह वक्त है जब देश के कई किसानों का कर्ज अपनी मेहनत से कमाई पूंजी से अदा कर रहे हैं। फाल्के अवार्ड के लिए अमिताभ बच्चन  को ढेरों बधाई।

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