Ajab-Gajab : डेंगू का नाश करने के लिए आ गए अच्छे मच्छर…

नई दिल्ली। डेंगू फैलाने वाले मच्छरों को समाप्त करने का तरीका वैज्ञानिकों ने ढूंढ़ लिया है। इंडोनेशियाई शोधकर्ताओं ने लैब में एक ऐसा मच्छर विकसित किया है जिससे डेंगू फैलाने वाले मच्छरों का अंत हो जाएगा। शोधकर्ता इसे ‘अच्छा मच्छर’ करार दे रहे हैं, जिसके काटने से लोगों को डेंगू नहीं होगा। इस मच्छर को लैब में तैयार करने के लिए कीट की एक प्रजाति की मदद ली गई जिसमें डेंगू वायरस रोधी बैक्टीरिया पाया जाता है।

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करीब 60 फीसदी कीटों में पाए जाने वाले इस बैक्टीरिया का नाम वोलबाचिया है। लैब में प्रजनन कराकर जिन ‘अच्छे मच्छरों’ का तैयार किया गया है उनमें ये बैक्टीरिया पहले से मौजूद रहते हैं। इस बैक्टीरिया से लैस मच्छरों के शरीर में डेंगू वायरस नहीं घुस पाता। वर्ल्ड मॉसक्विटो प्रोग्राम (डब्ल्यूएमपी) के तहत कराए गए अध्ययन में पता चला कि डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छरों में यह बैक्टीरिया नहीं पाया जाता। इस तथ्य को ध्यान में रखकर वैज्ञानिक वर्ष 2017 से डूंगे से निपटने का तरीका ढूंढ़ने के लिए शोध कर रहे थे।

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डब्ल्यूएमपी के तहत ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी और इंडोनेशिया की गादजाह मादा यूनिवर्सिटी ने संयुक्त रूप से यह शोध किया। डल्यूएमपी की अग्रणी शोधकर्ता और इंडोनेशिया के डेंगू उन्मूलन कार्यक्रम में वर्ष 2011 से कार्यरत आदि उतरिनी ने कहा कि यह तकनीक डेंगू से गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में बहुत कारगर होगी। डब्ल्यूएमपी की सदस्य पुरवंती ने कहा कि नवविकसित मच्छर इस मायने में ‘अच्छा मच्छर’ है कि यह डेंगू वायरस को फैलने नहीं देगा। डेंगू के वाहक एडीज एजिप्टी मच्छर जब इन ‘अच्छे मच्छर’ से मिलकर प्रजनन करेंगे तो उनसे उत्पन्न नए मच्छर भी वोलबाचिया बैक्टीरिया से लैस होंगे यानी ‘अच्छे मच्छर’ होंगे।

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इन मच्छर के काटने से डेंगू नहीं फैलेगा, जबकि दूसरी तरफ डेंगू फैलाने वाले मच्छर जीव चक्र पूरा करके कुछ दिनों में अपने आप नष्ट हो जाएंगे। इस तरह डेंगू बीमारी फैलाने वाले मच्छरों का अंत होगा। इंडोनेशिया के योग्याकार्ता शहर में डेंगू के कारण रेड जोन घोषित क्षेत्र में जब लैब में विकसित वोलबाचिया बैक्टीरिया से लैस मच्छरों को छोड़ा गया तो डेंगू के मरीज करीब 77 फीसदी तक कम हो गए। इसके अलावा डेंगू के कारण अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में 86 फीसदी तक कम हो गई। ट्रायल के इस परिणाम से संबंधित शोध रिपोर्ट को न्यू इंग्लैंड जर्नल में प्रकाशित किया जा चुका है।

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