आसान नहीं होगी विधानसभा में हेमंत की डगर

रांची । झारखंड में पूर्ण बहुमत के साथ जनता ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली गठबंधन को सत्ता की चाबी सौंप दी है। पांच साल के बाद हेमंत अपने विधायकों के साथ सत्ता की तरफ बैठेंगे तो वहीं भाजपा विपक्ष में। इस बार विपक्ष की तरफ कुछ ऐसे दिग्गज विधायक चुन कर आए हैं, जो सत्ता को इतनी आसानी से सारी चीजे नहीं करने देंगे। हेमंत के लिए डगर मुश्किल करने वालों में सात दिग्गज हैं।

वो दिग्गज हैं-

झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के हीरो रहे सरयू राय ने कह दिया है कि वे हेमंत सरकार में शामिल नहीं होंगे। वह जनता का काम करेंगे। सरकार में सरयू के शामिल नहीं होने से वो सदन की कार्यवाही के तहत खुद-ब-खुद विपक्ष के होंगे। सरयू राय विपक्ष में किस तरह का रोल निभा सकते हैं। उन्होंने सत्ता में रहते हुए ही यह दिखा दिया है। ऐसे में हेमंत सरकार के लिए सरयू राय एक परेशानी का सबब बन सकते हैं।

झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी धनवार से विधायक चुने गए हैं। बाबूलाल मरांडी झारखंड के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से हैं। बाबूलाल मरांडी को सीएम, सांसद और विधायक सभी पद का तजुर्बा है। दिग्गज नेता होने के साथ-साथ बाबूलाल मरांडी एक प्रखर वक्ता भी हैं। झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन में वो इस बार शामिल नहीं हैं। लिहाजा वह विपक्ष की ही तरफ होंगे। ऐसे में हेमंत सरकार सदन के अंदर और बाहर दोनों के लिए फील्डिंग सेट करके रखने की जरूरत है।

झाविमो के पोड़ैयाहाट विधानसभा क्षेत्र के विधायक प्रदीप यादव का अंदाज किसी से छिपा नहीं है। जब भाजपा सत्ता में थी तो वो अकेले ही विपक्ष का काम कर देते थे। भाजपा को कई बार सदन के अंदर प्रदीप यादव ने पानी पिलाने का काम किया है।

झाविमो विधायक बंधु तिर्की को आदिवासी विधायकों में एक प्रखर वक्ता के रूप में माना जाता है। इस बार जनता ने इन्हें विधानसभा भेज दिया है। बंधु तिर्की को सदन में रहते हुए कई बार सत्ता को घेरते इससे पहले देखा जा चुका है। आदिवासी मामलों के जानकार तिर्की को रोकने के लिए हेमंत को एक स्पेशल प्लान तैयार करना होगा।

लेफ्ट के फायर ब्रांड नेता विनोद सिंह भले ही सदन से पांच साल दूर रहे लेकिन उनके चर्चे हमेशा होते रहे। दिग्गज होने के साथ-साथ विनोद सिंह एक प्रखर वक्ता भी हैं। निश्चित तौर पर हेमंत सरकार के लिए परेशानी का सबब बनने वाले हैं।

दो बार विधायक का चुनाव हार जाने वाले आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो इस बार विधानसभा पहुंच चुके हैं। हालांकि इनकी पार्टी ने इस चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। सुदेश के अलावा गोमिया से लंबोदर महतो को जीत मिली है। एक पार्टी का मुखिया जब विधानसभा में होता है, तो उसकी और ही बात होती है। खास कर सुदेश की पार्टी पहली बार विपक्ष की भूमिका में होगी। ऐसे में वो हेमंत सरकार को घेरने की भरसक कोशिश करेंगे।

पांचवीं बार विधायक चुन कर विधानसभा में आने वाले नीलकंठ सिंह मुंडा रघुवर सरकार में मंत्री रह चुके हैं। रघुवर दास के बाद पूर्व सरकार में वो दूसरे नंबर के नेता माने जाते रहे हैं। वरिष्ठ होने के साथ-साथ उन्हें पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ रहने का तजुर्बा है। भाजपा की तरफ से जाहिर तौर पर वो हेमंत सरकार के लिए सिरदर्द होंगे।

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