कैसी डेमोक्रेसी है, घर का ईच आदमी परदेसी है

-अवधेश व्यास-

क्या भाय, आया पावर हाथ में तो दम देने का हर बात में! तुम तो बोल रएले थे, बोले तो सब रहेंगा साथ में, पन कोई कू नागरिकता खैरात में और कोई कू बोल दिया, बोले तो रेहने का औकात में!! कुच करने कू नई पड़ा खर्चा और अक्खा वर्ल्ड में होने कू लग गएला अपुन के मुलुक का चर्चा। अंदर होए कित्ता बी झोल, पन हर तरफ बजने कू लग गएला है मजहबी रागमस्ती का ढोल और बन गएला है माहौल। कबी सोचने कू बी नई हुआ होएंगा, बोले तो टाइम ऐसा बी होएंगा तंगदिल, हालात ऐसे बी होएंगे तब्दील, बोले तो कोई का तुटेंगा दिल, कोई होएंगा जलील, बोले तो ऐसा हाल में जीना, ऐ दिल है मुश्किल। अबी उदर देखे ना भाय, बोले तो कैंपस में हालात कैसा हो गए हैं डेंजरस, पुलिस निकाल रएली है खुन्नस। और बावा, हॉस्टल में घुस कर छोकरा छोकरी लोक पे डंडा चलाने वाले ये वोइच दिल्ली पुलिस के लोक हैं ना, जो वकील लोक का साथ राडा होने का बाद बोल रएले थे, बोले तो, ‘घर से निकलते हैं, तो बेटी बोलती है, पापा, वर्दी में बाहर नई जाने का, कोई मारेंगा…।’ क्या है ना भाय, बोले तो देख देख के सब सीख गएले हैं ड्रामेबाजी, बोले तो कोई भारी गिरने कू लगे तो शोशेबाजी और बच्चा लोक का सामने अकड़बाजी! अपुन का यार सलीम पानी भाप का इंजन का माफिक भभकने कू लगा है, ‘अमेरिका अक्खे वर्ल्ड का भाई है भाय, बोले तो कोई कू दे सकता है दानापानी, कोई का बंद करने कू सकता है हुक्कापानी, पन पएला वो देखता है अपुन की इकोनॉमी। वो चीना लोक बी है, जो अक्खे वर्ल्ड में जमा रएले हैं अपुन का धंदा पानी और वो अपुन का बाजू का बांग्लादेश! उदर बी अबी जिंदगी जीने में हो रएली है आसानी, कायकू बोले तो तरक्की हो रएली है सुहानी, जिसकू देख के अच्छे अच्छों को होने कू लगी है हैरानी। एक अपुन ईच है, जिदर हर बात पे है खींचातानी, बेकार बेरोजगार है जवानी, मजहब का नाम पे दूसरों कू देते हैं खर्चापानी, बिंदास चल रएली है ‘थ्री नॉट थ्री’ के पावर की फायरिंग, बोले तो मनमानी, झेलने कू पड़ती है सियासत की कारस्तानी, बोले तो जिंदगी दर रोज मांगती है कुर्बानी। ‘भिड़ू, वो लोक बोलता है, बोले तो अपुन इदर सिरिप सरकार चलाने कू नई आया है, मुलुक की सब प्रोब्लेम कू ठीक करने कू आया है। अपुन क्या बोलता है, बोले तो भाई, सिरिप सरकार चलाएंगा ना, तो ईच पब्लिक का तफलीक ठीक हो जाएंगा। अबी होता क्या है ना भिड़ू, बोले तो मुंबई में तीन दिन पएला डोंबिवली से तेईस बरस की एक लड़की ऑफिस जाने का वास्ते घर से निकलती है, लोकल पकड़ती है, भोत गर्दी होती है गाड़ी में और थोड़ी देर का बाद वो लोकल से गिर जाती है और मर जाती है। इसका जिम्मेदार कौन है, भिडू बता!’ पानी फुल फ्लो में है, ‘बाइक पे एक छोकरे की गाड़ी खड्डे में फिसलती है, छोकरा गिरता है, पीछू से एक लॉरी आती है, उसके उप्पर से निकल जाती है। ये दर रोज की बात है। अबी वो सरकारी अस्पताल में छह महीने का बच्चा ईसीजी की मशीन से जल जाता है, पएला उसका हाथ काटने कू पड़ता है, बाद में वो मर ईच जाता है। कौन है इसका जिम्मेदार बता! रोड पे खड्डे हैं, जिंदगी में खड्डे हैं। खड्डे किदर नई हैं, पन गवरमेंट किदर बी जिम्मेदार नई है। काम पे जाने वाले कू काम की जगा पे टाइम पे होना मांगता है, मुंबई में तो पब्लिक रोज जान पे खेल के काम पे जाती है, पन गवरमेंट का सिस्टम कोई पे नई करता रहम। बाहर का मुलुक में पब्लिक का वास्ते काम करता है अक्खा सिस्टम, पन अपुन के इदर ऊंचा लोक का वास्ते काम करता है सिस्टम, पब्लिक कू जो मिलता है, भीक का माफिक मिलता है। पानी बोलता है, ‘पएला तो जो लोक मुलुक में हैं, सिस्टम कू उनका वास्ते काम करना मांगता है, फिर सबकू मिल के रहना मांगता है, कायकू बोले तो कबी तुट गया ना ये मेलजोल, तबी काम नई आएंगा कोई बी फेविकोल। फिर ये कैसी डेमोक्रेसी है, जिदर घर का आदमी ईच परदेसी है। दुरुस्त करने का नाम पे हिस्ट्री, नई बिगाड़ना मांगता है मुलुक की केमिस्ट्री…।’

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