-प्रो. प्रेम कुमार धूमल-
कुछ दिनों से नागरिकता कानून में किए गए संशोधन के बाद लगातार यह मुद्दा केवल बहस का मुद्दा न रह कर बहुत विवादित मुद्दा बन गया है। देश का राजनीतिक वायुमंडल दुर्भाग्यवश इतना प्रदूषित हो गया है कि राष्ट्रहित में उठाए गए कदमों को भी दलगत और व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखकर राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग करने का प्रयास रहता है। नए संशोधन के बाद एक प्रावधान किया गया है कि हमारे पड़ोस में जो तीन मुस्लिम राष्ट्र हैं वहां पर हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी अल्पसंख्यक भी रहते हैं। इन देशों में उनका उनके धर्म के आधार पर उत्पीड़न होता है, कई बार तो उसका विवरण जानकर हर इनसान की आत्मा कांप उठती है। हाल ही में पाकिस्तान के सिंध में एम.बी, बी.एस कर रही हिंदू सिंधी लड़की को अगवा करके उसका सामूहिक बलात्कार और हत्या दिल दहला देने वाली घटना थी। पहले तो उसे आत्महत्या कहकर लीपापोती करने का प्रयास किया गया किंतु बाद में सारे अत्याचार की रिपोर्ट सामने आई। इसी प्रकार नानकाना साहिब गुरुद्वारा के धार्मिक पदाधिकारी की बेटी का अपहरण और किसी मुस्लिम के साथ जबरदस्ती निकाह करने के प्रयास ने सब को झकझोर दिया। ऐसी घटनाएं इन तीनों मुस्लिम देशों में लगातार होती रही हैं, इसमें महिलाओं का यौनशोषण, उत्पीड़न, बच्चों का जबरदस्ती धर्म परिर्वतन आदि होता रहता है। तीनों ही देशों में अल्पसंख्यकों की संख्या लगातार गिरती जा रही है। नागरिकता कानून में संशोधन यह किया गया है कि पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान में जो अल्पसंख्यक हैं यदि वे धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए हैं और शर्तों को पूरा करते हैं तो उन्हें भारत की नागरिकता दे दी जाए। कुछ लोग इस बात को समझे बगैर और बहुत सारे लोग राजनीतिक कारणों से जानबूझकर इसका विरोध कर रहे हैं और इसे मुस्लिम विरोधी कहा जा रहा है। यहां यह स्पष्ट रहे कि भारत में जो पहले ही इस देश का नागरिक है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का है, उसका इसके साथ कोई संबंध नहीं है। उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। तीनों पड़ोसी देश मुस्लिम राष्ट्र हैं वहां मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं, वहां पर तो केवल हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी अल्पसंख्यक हैं और समस्या भी उनकी है और उसी समस्या का समाधान करने के लिए यह संशोधन किया गया है। छात्रों को भी गुमराह किया जा रहा है, इसलिए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध का कोई वैज्ञानिक औचित्य नहीं है। इसके विरोध में किया जा रहा आंदोलन आधारहीन है क्योंकि इसका किसी वर्ग को नुकसान नहीं होगा, इसे केवल राजनीतिक कारणों से हवा दी जा रही है।
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