-देवेन्द्रराज सुथार-
भूमंडलीकरण के इस दौर में हमारी जीवनशैली में द्रुतगामी परिवर्तन हुए हैं। इसने हमारे आचार-विचार से लेकर बोलचाल व खानपान तक को प्रभावित किया है। दुनिया भर में स्वाद और सेहत के लिहाज से मांसाहार आज शक्ति और शान का प्रतीक माना जाने लगा है। आर्थिक विकास और औद्योगीकरण ने मांसाहार को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही कारण है कि शहर हो या गांव आजकल सर्वत्र खुलेआम मांस की मंडी सज रही है। दुनिया की एक बड़ी आबादी केवल और केवल बेजुबान पशुओं व पक्षियों के मांस पर निर्भर है। मांसाहार का बढ़ता चलन निरंतर हमारे मन और मस्तिष्क पर कई दुष्परिणाम छोड़ रहा है। फिर भी मांसाहार आज अधिकतर लोगों के भोजन का अहम हिस्सा बना हुआ है। शरीर का विकास हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले भोजन पर आधारित है। इसलिए कहा भी जाता है कि जैसा खाये अन्न, वैसा बने मन। प्रतिवर्ष 25 नवंबर को निरीह पशु-पक्षियों के प्रति हिंसा के बर्ताव को रोकने और शाकाहार के प्रति लोगों को प्रेरित करने (जिससे एक सभ्य और बेहतर समाज का निर्माण हो सके) आदि उद्देश्यों को लेकर विश्व मांसाहार निषेध दिवस मनाया जाता है। विश्व इतिहास से लेकर आज तक हमेशा से अहिंसा जैसे विचार की पूजा होती रही है और इस विचारधारा पर चलने वाले महापुरुषों को बड़े ही सम्मान की नजर से समाज देखता है। महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने जहां अहिंसा के जरिए विश्व में अपनी पहचान बनाई। वहीं उन्होंने अहिंसा के प्रति लोगों को जागरूक करते हुए उसे बेहतर मार्ग बताकर उस पर चलने के लिए प्रेरित किया। विज्ञान भी यह कहता है कि शाकाहार सबसे बेहतर भोजन है जिससे तमाम प्रकार की बीमारियों से बचा जा सकता है वहीं मांसाहारी भोजन ग्रहण करने से मानसिक विकार का शिकार मनुष्य आसानी से हो जाता है। सारी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा शाकाहारी लोग रहते हैं। इसकी एक वजह हमारे शास्त्र द्वारा मांसाहार की इजाजत न देना है। हिंदू धर्मग्रंथ के अनुसार मांस खाना इंसान के शरीर के लिए नुकसानदेय है। वहीं कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं जो बताते हैं कि शरीर के लिए मांसाहार कितना बुरा है। विज्ञान के अनुसार शाकाहारी लोग मांसाहार करने वालों की तुलना में डिप्रेशन का शिकार कम बनते हैं। श्रीमद् भगवत गीता के अनुसार मांसाहार खाना राक्षसी गुण है। मांस और शराब का सेवन करना तामसिक भोजन कहलाता है। इस तरह का भोजन करने वाले लोग पापी, कुकर्मी, दुखी, आलसी और रोगी हैं। महाभारत में कहा गया है कि कोई शख्स अगर 100 अश्वमेध यज्ञ करता है और वहीं दूसरा शख्स पूरी जिंदगी मांस को हाथ नहीं लगाता है, तो दोनों में से बिना मांस खाने वाले शख्स को सबसे ज्यादा पुण्य मिलता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मांस खाने वाले ज्यादातर लोगों के अंदर चिड़चिड़ापन और ज्यादा गुस्सा होने के लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से बहुत ज्यादा उग्र होते हैं। मांसाहार खाने वाले लोग शाकाहारी की तुलना में गंभीर बीमारियों की चपेट में ज्यादा आते हैं। इन बीमारियों में हाई ब्लड प्रशेर, डायबिटिज, दिल की बीमारी, कैंसर, गुर्दे का रोग, गठिया और अल्सर शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार मांसाहार का सेवन करना हमारे शरीर के लिए उतना ही नुकसानदायक होता है, जितना कि धूम्रपान असर करता है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पका हुआ मांस खाने से कैंसर का खतरा बना रहता है। मांसाहार की तुलना में शाकाहारी भोजन सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। शाकाहारी भोजन करने से इंसान स्वस्थ, दीर्घायु, निरोग और तंदुरुस्त बनता है। बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू आदि बीमारियां मुर्गे और सुअरों के जरिए इंसानों तक पहुंचती है। यह बीमारी हमारे शरीर तक तभी पहुंचती है जब हम इस बीमारी से ग्रस्त जीव को खाते हैं। हर साल इसकी वजह से लाखों लोग मौत की चपेट में आ जाते हैं। दुनिया के एक चौथाई प्रदूषण का कारण मांस है। अगर दुनिया के लोग मांस खाना छोड़ दें तो 70 प्रतिशत तक प्रदूषण कम हो जाएगा। मांस खाने से इंसान की उम्र भी कम होती है। मांस खाना छोड़ने से काफी पैसों की बचत हो जाएगी जिसका इस्तेमाल किसी और काम में कर सकते हैं। मांसाहारी भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए गरम मसालों को डाला जाता है। इसे पचाने के लिए शरीर के अंगों पर ज्यादा दबाव पड़ता है। इन सब हानिकारक पहलुओं को जानने के बाद भी मानव यदि नकल या आधुनिकता की होड में मांसाहार करके अपना सर्वनाश करे तो यह उसका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। हमें समझना होगा कि अपने शरीर के समान दूसरों को भी उनका शरीर प्रिय होता है। केवल जीभ के स्वाद के लिए मांस भक्षण करना हिंसा ही नहीं, अपितु परपीड़न की पराकाष्ठा भी है। विश्व इतिहास पर दृष्टि डालने से पता चलता हैं कि संसार के सभी प्रसिद्ध महापुरुष चिंतक, वैज्ञानिक, कलाकार, कवि, लेखक जैसे पाइथागोरस, टॉर्क प्लॉटिनस, सर आइजक न्यूटन, महान चित्रकार लियोनार्डो डा विंची, डॉक्टर एनी बेसेंट, अल्बर्ट आइंस्टीन, जार्ज बर्नार्ड शा, कवि मिल्टन, पोप, शैले, सुकरात व यूनानी दार्शनिक अरस्तु सभी शाकाहारी थे। शाकाहार ने ही उन्हें सहिष्णुता, दयालुता, अहिंसा आदि सद्गुणों से विभूषित किया। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहते थे कि शाकाहार का हमारी प्रकृति पर गहरा प्रभाव पड़ता है, यदि दुनिया शाकाहार को अपना ले, तो इंसान का भाग्य पलट सकता है। लियोनार्डो डा विंची तो पिंजरों में कैद पक्षियों को खरीदकर पिंजरे खोलकर उन्हें उड़ा दिया करते थे। वे कहते थे यदि मनुष्य स्वतंत्रता चाहता है तो पशु-पक्षियों को कैद क्यों करें। सेंट मैब्यू, सेंट पाल मांसाहार को धार्मिक पतन का सूचक मानते थे। मैथोडिस्ट और सकेथ डे एडवेण्टिएस्ट मांस खाने और शराब पीने की सख्त मनाही करते हैं। टालस्टाय और दुखोबोर (रुस के मोमिन ईसाई) भी मांसाहार को ईसाई धर्म के विरुद्ध मानते थे। हमें समझना होगा कि मांसाहार भारत जैसे अहिंसा के उपासक देश में न केवल शर्मनाक है, अपितु हमारी संस्कृति और मानवीय धर्म के भी खिलाफ है। नि:संदेह हम सभी को मांसाहार मुक्त देश के निर्माण के लिए आगे आना चाहिए। अतः प्रत्येक अहिंसा प्रेमी का यह दायित्व है कि मांसाहार यानी हिंसा से प्राप्त भोजन के सेवन की कुप्रथा की रोक के लिए अपने सद्कर्मों की आहुति प्रदत्त करें। मुख सुख के लिए पशुओं की हत्या के प्रति जनमानस में जागरूकता लाकर अपने जिम्मेदार एवं विवेकवान नागरिक बोध को सिद्ध करें।
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