जमशेदपुर पूर्वी सीट पर झारखंड ही नहीं पूरे देश की नजर

रांची । झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सूबे की राजनीति एकदम से गरमा गई। पहले महागठबंधन के दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर उठापटक शुरू हुई। लंबे जद्दोजहद के बाद फॉर्मूला तय हुआ। इसके बाद उम्मीदवारों की घोषणा शुरू हुई।

सबसे दिलचस्प खींचतान तो एनडीए के दोनों दलों भाजपा-आजसू के बीच हुई जो आखिरकार तलाक पर ही खत्म हुई। 19 सालों का याराना एक झटके में टूट गया। भाजपा अपने सहयोगी आजसू की अदावत से उबरने की कोशिश कर ही रही थी कि इसी बीच रघुवर सरकार में मंत्री रहे और भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले सरयू राय ने अपना टिकट होल्ड पर रखे जाने के कारण बगावती तेवर अपना लिया और मुख्यमंत्री को खुली चुनौती दे डाली। सरयू राय ने अपनी जमशेदपुर पश्चिमी सीट छोड़कर मुख्यमंत्री के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ने का ऐलान कर भाजपा को सकते में डाल दिया।

बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में जमशेदपुर पूर्वी सीट पर झारखंड ही नहीं पूरे देश की नजर है। यह सीट राज्य का सबसे हॉट सीट बन गया है। इस सीट पर भाजपा के दो दिग्गजों का आमना-सामना हो रहा है। एक राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं तो दूसरा भाजपा के वरिष्ठ और कद्दावर नेता सरयू राय। यह देखना दिलचस्प होगा कि जीत का स्वाद कौन चखता है। वैसे, इस जमशेदपुर पूर्वी में कांग्रेस पार्टी के गौरव वल्लभ और झाविमो के अभय सिंह भी चुनाव मैदान में हैं पर यहां मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री रघुवर दास और सरयू राय के बीच है।

बता दें कि इससे पहले मुख्यमंत्री रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी और सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ते आए हैं। पिछले दिनों हालात कुछ ऐसे पैदा हुए हैं कि दोनों इसबार आमने-सामने हो गये हैं। जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ते रहे सरयू राय का टिकट भाजपा ने इसबार ऐसा लटकाया कि उनके सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने न सिर्फ मंत्री पद त्याग दिया बल्कि विधायकी से भी इस्तीफा दे दिया। जमशेदपुर पश्चिमी से अपना टिकट कटने की प्रमुख वजह वे रघुवर दास को मानते हैं। यही कारण है कि उन्होंने रघुवर दास से दो-दो हाथ करने की ठान ली है। जमशेदपुर पश्चिमी का अपना क्षेत्र छोड़कर उन्होंने जमशेदपुर पूर्वी से नामांकन दाखिल कर दिया है। मैदान में उतरते ही वह रघुवर दास के खिलाफ जिस तरह मोर्चा खोल रहे हैं, उससे यह साफ हो गया है कि अब रघुवर दास भी चुप नहीं बैठेंगे। हालांकि, उन्होंने इस पूरे प्रकरण में अभीतक खुलकर कुछ नहीं कहा है।

सरयू राय की खासियत ये है कि वे अपनी शर्तों पर राजनीति करते हैं और इसी वजह से वह बिहार-झारखंड में कई सियासी दिग्गजों के खिलाफ अभियान चला चुके हैं। लालू प्रसाद यादव जैसे कद्दावर नेता को भी उन्होंने परेशानी में डाला था। एक ही खेमे के दो योद्धाओं के बीच छिड़ी जंग की आंच में हाथ सेंकने का यह बेहतरीन मौका विपक्ष अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। यही कारण है कि झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन इस मुद्दे को हवा देने में जुट गये हैं। इस पूरे मामले में भाजपा की सहयोगी रही आजसू के सुप्रीमो सुदेश महतो भी रुचि ले रहे हैं। झामुमो ने कहा है कि सभी दलों को सरयू राय का समर्थन करना चाहिए, वहीं आजसू ने बयान दिया है कि सरयू राय गंभीर नेता हैं और सदन की गंभीरता के लिए वह जरूरी हैं। सरयू के इस ऐलान का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी खुला समर्थन मिल रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो यहां तक कह दिया है कि वह अपना उम्मीदवार न उतार कर सरयू राय के पक्ष में चुनाव सभा करेंगे।

राजनीति जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास और सरयू के बीच यूं ही खटास पैदा नहीं हुई है, बल्कि सरकार में मनमुताबिक मंत्री पद नहीं मिलने से सरयू राय नाराज चल रहे थे। इस नाराजगी के कारण रघुवर दास के फैसलों पर वे अकसर सवाल उठाते रहे। सबसे ताजा मामला जब भाजपा द्वारा घर-घर रघुवर का कैंपेन चलाया जा रह था तो इसका सरयू राय ने खुलकर विरोध किया था। वे घर-घर कमल अभियान चलाने जाने की वकालत करते रहे। जबतक घर-घर रघुवर अभियान बंद नहीं हुआ वे चैन से नहीं बैठे। हालांकि रघुवर दास ने सरयू राय के इन बयानों पर खुलकर तो कुछ नहीं कहा, पर अंदर से वे उनसे काफी नाराज थे। इसके बाद राज्य में जब टिकट बंटवारे की बारी आयी तो उसमें चौथी सूची में भी सरयू राय का नाम नहीं था। अंतत: जब उन्हें टिकट नहीं मिला और भाजपा जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार ने जमशेदपुर पश्चिम से देवेंद्र सिंह को पार्टी का उम्ममीदवार घोषित कर दिया तो सरयू राय के सब्र का पैमाना छलक गया। इसके बाद रघुवर के खिलाफ आरपार की लड़ाई का उन्होंने ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि जमशेदपुर पूर्वी से भय, भ्रष्टाचार और मालिकाना हक को लेकर जनता को ठगने वालों के खिलाफ लड़ूंगा। मैं चुप बैठनेवालों में से नहीं हूं।

यह तो अब लगभग तय हो गया है कि दोनों नेताओं के बीच घमासान रोकने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने कोई कदम नहीं उठाया तो दोनों के बीच जंग होकर रहेगी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि रघुवर और सरयू की जंग में जमशेदपुर पूर्वी सीट राज्य की सबसे प्रतिष्ठा की सीट बन चुकी है। इस लड़ाई से दोनों के राजनीतिक कैरियर पर भी असर पड़ेगा। लड़ाई का जो भी परिणाम आयेगा, भाजपा के लिहाज से वह सकारात्मक नहीं रहेगा। जाहिर है इस लड़ाई में जो मुद्दे सरयू राय उठायेंगे, उनकी काट हर हाल में रघुवर दास और सत्तारूढ़ भाजपा के नेता ढूंढ़ना चाहेंगे। विपक्ष इस पूरे प्रकरण में सरयू राय के साथ जाकर भाजापा पर प्रहार का मौका तलाशेगा।

This post has already been read 5601 times!

Sharing this

Related posts