अवैध कॉलोनियों पर दिल्ली में सियासत

-योगेश कुमार सोनी-

केंद्र सरकार ने दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को मंजूरी देकर राजधानी की सत्ता में एंट्री करने का रास्ता बना लिया है। कॉलोनियों को नियमित करने की खुशखबरी उपराज्यपाल अनिल बैजल ने अपने ऑफिशियल अकाउंट से ट्वीट करके दी है। इसके लिए प्रस्ताव तैयार किये जा रहे हैं। इसके तहत अब तक अवैध कॉलोनियों रह रहे लोगों को उनकी जमीन का मालिकाना हक मिल जाएगा। सड़क, सीवर सहित विकास के काम हो सकेंगे। इसके अलावा धारा 81 के तहत जिन लोगों पर मुकदमें दर्ज हैं वो भी वापस ले लिए जाएंगे। दिल्ली सरकार के मुताबिक राजधानी में अवैध कॉलोनियों की संख्या 1797 है। साथ ही करीब अस्सी गावों के शहरीकरण होने का जिक्र भी किया गया है। दिल्ली में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने का मुद्दा काफी पुराना रहा है। विधानसभा चुनावों के दौरान इसे लेकर राजनीतिक दल सियासत करते रहे हैं। दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति का तो यह केंद्र ही रहा है। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में तो कांग्रेस अवैध कॉलोनियों का लॉलीपाप दिखाकर दिल्ली की सत्ता हथियाते रही है। बाद में आम आदमी पार्टी भी इसी का सहारा लेकर सत्ता की दहलीज पर पहुंची। लेकिन अवैध कॉलोनियों के वाशिंदे हमेशा ठगे जाते रहे। अब निकट भविष्य में दिल्ली विधानसभा के चुनाव फिर होनेवाले हैं। इसलिए केंद्र सरकार ने दिल्ली की अवैध कॉलोनियों को मंजूरी देकर बाजी मार ली है। इसीलिए सियासी सुरमा (कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लोग) केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। यहां की अवैध कॉलोनियों का नियमितीकरण केंद्र सरकार की पहल और दखल के बिना संभव नहीं है। केंद्र में भाजपा की अगुवाई में राजग की सरकार वर्ष 2014 से काबिज है। अगर केंद्र सरकार की नीयत साफ होती तो यह काम पहले भी हो सकता था। जाहिर है, चुनावी साल में अवैध कॉलोनियों का नियमितीकरण कर केंद्र सरकार ने चुनावी लाभ लेने की कोशिश की है। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। इससे दिल्ली के लाखों परिवारों को लाभ होगा। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली की इन 1797 अवैध कॉलोनियों में करीब चालीस लाख लोग रहते हैं। निश्चित ही दिल्ली की सरकार बनाने में इनके मत निर्णायक होंगे। दिल्ली में लंबे समय से सत्ता से वंचित भारतीय जनता पार्टी एंट्री करने के लिए अथक प्रयास कर रही है। दूसरी ओर अवैध कॉलोनियों को अपना गढ़ समझने वाली कांग्रेस भी अपने वजूद का कायम करने के लिए कमबैक करना चाहती है। अब यदि तीसरे नजरिये पर गौर करें तो आम आदमी पार्टी कोई भी ऐसा दांव नहीं छोड़ रही जहां उनका मामला हल्का पड़े और सत्ता गंवानी पड़े। बीते लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन आम आदमी पार्टी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। हालांकि 2014 के विधानसभा चुनावों में घोर मोदी लहर में भी आम आदमी पार्टी ने रिकार्ड तोड़ जीत हासिल की थी। राजनीतिक विश्लेषक उस घटना को आज भी एक मैजिक के रुप में देखते हैं। तब कांग्रेस का गढ़ रही दिल्ली में उसका खाता भी नहीं खुला था और जब पूरा देश मोदीमय था तब आम आदमी पार्टी ने कुल 70 में से 67 सीटें जीतकर पूरे देश को चौंका दिया था। बीजेपी 70 सीटों में से मात्र तीन सीटों पर ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाई थी। इसलिए इस बार त्रिकोणीय मुकाबले से घिरी दिल्ली के दिल पर कौन राज करेगा, यह वक्त बताएगा। इतना तय है कि जनता को लुभाने में कोई दल पीछे नहीं रहना चाहता। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर तो फिर से रिपीट कर गई लेकिन राजनीतिक उठा-पटक और तेजी से बदलते समीकरणों को कोई भी दल हल्के में लेता दिखाई नहीं दे रहा है। कांग्रेस को शीला दीक्षित के जमाने में किये काम पर भरोसा है तो बीजेपी केंद्र में सरकार होने का फायदा उठाएगी। आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त इलाज, महिलाओं की मुफ्त बस यात्रा और बुजुर्गों की मुफ्त तीर्थ यात्रा का ढिंढोरा पीटकर सत्ता में तिबारा वापसी का प्रयास कर रही है। हालांकि केंद्र सरकार ने इसी समय दिल्ली में गंदे पानी की आपूर्ति पर सवाल उठाकर मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर दबाव बढ़ा दिया है। बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा कि दिल्ली में किसका पानी बढ़िया है। यह मामला अदालत की दहलीज पर पहुंच चुका है। इस समय दिल्ली में 1,43,27,458 मतदाता हैं। इसमें 64.42 लाख महिला, 11 हजार सर्विस वोटर और 669 थर्ड जेंडर वोटर शामिल हैं। ऐसे में अवैध कॉलोनियों में रहने वाले करीब 40 लाख मतदाता यदि एक ही धारा में बह गए तो निश्चित तौर पर उस पार्टी की सरकार बन जाएगी।

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