नई दिल्ली। कर्नाटक के अयोग्य करार दिए गए विधायकों के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट से कहा है कि वो राज्य में उपचुनाव को लेकर कोई आदेश जारी ना करे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट को निलंबित करने के खिलाफ याचिका पर आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। इस मामले पर आज मुकुल रोहतगी, सीए सुंदरम और केवी विश्वनाथन ने अपनी दलीलें रखीं। मामले की सुनवाई कल यानि 24 अक्टूबर को भी जारी रहेंगी। अयोग्य करार दिए गए विधायकों की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम स्पीकर के फैसले की न्यायिक समीक्षा की मांग करते हैं। किसी भी विधायक को इस्तीफा देने का अधिकार है। अगर उसे धमकाने का सबूत मिले तभी उसके इस्तीफे को सही नहीं माना जा सकता है। स्पीकर ने मनमाने तरीके से अयोग्य करार देने का फैसला दिया। यहां तक कि स्पीकर सात दिनों के अंदर जवाब दाखिल करने के नियम का भी उल्लंघन किया। अगर अयोग्य करार देने का फैसला सही भी माना जाए तो वह चुनाव के समय खत्म हो जाता है। वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने कहा कि अयोग्य करार दिए गए और इस्तीफा दिए विधायकों में मौलिक फर्क है। उन्होंने कर्नाटक विधानसभा के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि स्पीकर इस्तीफे पर फैसला लेने में तभी देरी कर सकता है अगर वह इसकी जांच करे कि स्वेच्छा से इस्तीफा दिया गया है कि नहीं। सुंदरम ने कहा कि इस्तीफे के बाद की घटनाओं पर गौर नहीं किया जाना चाहिए। विधायकों का पेशा राजनीति है। स्पीकर का फैसला महज अयोग्य करार देना ही नहीं है बल्कि ये एक सजा भी है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने कोर्ट से संवैधानिक सवालों पर दलीलें रखने की मांग की जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया। पिछले 22 अक्टूबर को कोर्ट ने उपचुनाव की तारीख आगे बढ़ाने की अधिसूचना के खिलाफ कांग्रेस के हाईकोर्ट जाने पर नाखुशी जताई थी। पिछले 26 सितम्बर को निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उसने राज्य की 15 सीटों को 21 अक्टूबर को होने वाला उपचुनाव टाल दिया है। निर्वाचन आयोग ने कहा था कि अयोग्य विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव होगा। विधायकों का कहना है कि स्पीकर ने दुर्भावना से विधानसभा के पूरे कार्यकाल के लिए अयोग्य ठहरा दिया, जिसकी वजह से वे चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।
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