इमरान का आत्मसमर्पण

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में बोलने से पहले ही आत्मसमर्पण क्यों करना पड़ा? क्योंकि कोई भी विकसित देश पाकिस्तान के साथ नहीं खड़ा है और न ही इस्लामी देशों ने उसे समर्थन दिया है। अब संयुक्त राष्ट्र आम सभा में इमरान खान जो भी संबोधन करें, लेकिन खुद उन्होंने अपनी नाकामी कबूल कर ली है। पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर भी इसी आशय के विमर्श जारी हैं। पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम ने कहा है कि भारत पर हमला करने की हैसियत उनके मुल्क की नहीं है। अलबत्ता वह इसे अब भी एकमात्र विकल्प मानने को तैयार नहीं हैं। इमरान का यह कथन पूरी तरह यू-टर्न है, क्योंकि वह और उनके कुछ वजीर परमाणु जंग की रट लगाए हुए थे। पाक प्रधानमंत्री ने अब यह भी कबूल किया है कि भारत बहुत बड़ा देश है। उसकी आबादी 137 करोड़ के करीब है और अर्थव्यवस्था भी 3 ट्रिलियन डालर तक पहुंच चुकी है। भारत दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में एक है, लिहाजा कोई भी देश उसके खिलाफ  बोलने को तैयार नहीं है। दुनिया में करीब 125 करोड़ मुसलमान भी हैं, जो सब कुछ देख रहे हैं। आर्थिक वजहों से मुस्लिम देश भी हमारा समर्थन नहीं कर पाए, लेकिन आप फिक्र न करें। शायद इमरान खान मीडिया के जरिए पाकिस्तान के अवाम को भी संबोधित कर रहे थे। उन्होंने यहां तक कहा कि यदि वे भी अमरीकी या यहूदी होते, तो दुनिया साथ खड़ी होती, लेकिन हम मुसलमान हैं, लिहाजा कोई भी साथ नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक देश के प्रधानमंत्री की निराशा, हताशा, कुंठा और बेचैनी इससे ज्यादा क्या हो सकती है? प्रधानमंत्री इमरान खान को यह सफाई भी देनी पड़ी कि उन्होंने अमरीका तो क्या, किसी भी देश से ‘भीख’ नहीं मांगी है। पत्रकार पाकिस्तान का ही था और उसने ‘मेट’ शब्द का प्रयोग किया था, लेकिन इमरान ने समझा-बेग (भीख मांगना)। बहरहाल सऊदी अरब सरकार के विमान से न्यूयार्क पहुंचने की व्याख्या इमरान कैसे और क्या करेंगे, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री का अपना स्वतंत्र विमान होता है। नाकामी और निराशा के इस दौर में पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम ने सार्वजनिक तौर पर यह भी कबूल कर लिया कि उनके देश की फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अलकायदा के जेहादियों को टे्रनिंग दी थी। उन्होंने आतंकी संगठनों को भी टे्रनिंग देकर जेहादियों को अफगानिस्तान भेजा था। इस तरह इमरान खान ने पाकिस्तान को आतंकवाद के टे्रनिंग सेंटर के तौर पर कबूल कर लिया है। इमरान खान ने बुनियादी तौर पर आतंकवाद को स्वीकार किया है, तो अब संयुक्त राष्ट्र आम सभा को कोई फैसला लेना चाहिए। बहरहाल पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय फोरम से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। इमरान का मुस्लिम कार्ड, हिंदुत्व पर निशाना, अंतरराष्ट्रीय समर्थन, भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार, अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप से गुहार आदि सभी प्रयास नाकाम साबित हुए हैं। कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर छेड़ी मुहिम भी नाकाम रही है। क्या अब भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र आम सभा के मंच से कश्मीर का प्रलाप करेंगे? दरअसल पाकिस्तान कश्मीर में मानवाधिकार हनन के आरोप लगाता रहा है, लेकिन हकीकत अब सामने आई है कि 1948 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की जिस घोषणा पर पाकिस्तान को भी दस्तखत करने थे, उस पर उसने कहा था कि यह शरिया कानून के मुताबिक होना चाहिए, लिहाजा पाकिस्तान ने उस घोषणा-पत्र के दस्तावेज पर हस्ताक्षर ही नहीं किए। तो फिर पाकिस्तान मानवाधिकार के नाम पर चिल्लाता क्यों रहता है? गनीमत यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने इमरान खान को भी ‘ग्रेट लीडर’ करार दिया है। यह कूटनीति का बुनियादी शिष्टाचार है, लेकिन भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों से बातचीत के जरिए कश्मीर का मुद्दा सुलझाने का आग्रह नहीं किया गया, बल्कि टं्रप ने विश्वास जताया कि इस्लामी आतंकवाद से निपटने की क्षमता अकेले भारतीय प्रधानमंत्री मोदी में है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बहुत दावे करके संयुक्त राष्ट्र में आए थे, लेकिन अब खाली हाथ, पिटे-पिटाए लौटेंगे, तो वहां के अवाम को जरूर पूछना चाहिए कि वजीर-ए-आजम अब क्या करेंगे? नरेंद्र मोदी की छवि तो विश्व नेता की बन गई, स्वच्छता के लिए बिल गेट्स फाउंडेशन ने उन्हें सम्मानित भी किया, यूएन मुख्यालय में महात्मा गांधी के नाम पर सौर पार्क का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री मोदी ने किया, अमरीका के साथ 60 अरब डालर के व्यापारिक करार भी तय हो गए। पाकिस्तान के हिस्से क्या आया? इस सवाल का जवाब पाकिस्तान की जनता को जरूर पूछना चाहिए।

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