-सिद्धार्थ शंकर-
सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग से आहत उच्चतम न्यायालय कोर्ट ने केंद्र सरकार को हलफनामे के जरिए यह बताने के लिए कहा है कि आखिर वह कब तक नियम बनाने जा रही है, जिससे फेसबुक और वाट्सएप आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म को आपत्तिजनक पोस्ट के बारे में जानकारी मांगने के लिए बाध्य किया जा सके। सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल से आहत सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने तो यहां तक कहा कि वह स्मार्टफोन का त्याग करने की सोच रहे हैं। जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि गाइडलाइंस या नियम बनाना सरकार का काम है न कि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का। पीठ ने कहा कि गाइडलाइंस बनाने में लोगों की निजता के साथ-साथ देश की संप्रभुता का ध्यान रखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा इस संबंध में पॉलिसी बनाने के बाद ही अदालत उस पर गौर कर सकती है कि वह कानून और संविधान के मुताबिक है या नहीं है। सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि फेसबुक और वाट्सएप आदि मध्यवर्ती सोशल मीडिया प्लेटफार्म के लिए गाइडलाइंस की अब जरूरत है।
सुनवाई के दौरान खंडपीठ में शामिल एक न्यायाधीश को यहां तक कहना पड़ा कि वह खुद स्मार्ट फोन त्यागने की सोच रहे हैं। हमें नेट के लिए चिंतित नहीं होना चाहिए बल्कि देश को लेकर चिंतित होना चाहिए। कोर्ट के मुताबिक आलम यह है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए लोग एके-47 भी खरीद सकते हैं। कोर्ट की यह टिप्पणी आज के दौर में बेहद महत्वपूर्ण है। खासकर भारत के संदर्भ में। पूरी दुनिया में सूचना और संचार क्रांति की अंधी दौड़ मची है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका इंटरनेट निभा रहा है। आज जिनके पास भी इंटरनेट है उनका अहम समय इस पर ही व्यतीत होता है, खासकर सोशल मीडिया पर। आज सोशल मीडिया ने हमें अपनी बात कहने का एक मंच अवश्य दिया है पर इसी साधन का लोगों द्वारा दुरुपयोग भी किया जा रहा है। आज सोशल मीडिया का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियों द्वारा भी जम कर किया जा रहा है पर इसका इस्तेमाल जिस तरह से हो रहा है वह वाकई चिंता का विषय है। राजनीतिक पार्टियों के साथ उनके समर्थक भी अक्सर शालीनता की सारी हदें पार कर लेते हैं। किसी के निजी जीवन के साथ उनके परिवार को भी इसमें घसीट लेना सोशल मीडिया का चलन बन गया है।
गलत अफवाह उड़ाना, अश्लील और भद्दी बातें करना, फोटो एडिट कर कुछ का कुछ और दिखा देना आज आम बात हो चुकी है। मगर जैसा भी हो हम इस स्थिति को किसी भी लिहाज से सही नहीं ठहरा सकते। समाज के लिए यह बेहद सोचनीय अवस्था है। आप अपनी भड़ास निकालने के लिए सारी मर्यादा का उल्लंघन तो करते ही हैं साथ ही आप इन मामलों में जिनका कोई लेना देना नहीं है उसे भी घसीट रहे होते हैं। शायद यह समाज को विचार शून्यता की ओर ले जाने का प्रतीक है। अगर हम देश की बात करें तो इंटरनेट के दुरुपयोग और इस समस्या से निपटने में अब तक कोई असरदार रणनीति निर्मित नहीं हुई है, हम इसकी भयावहता और समाज के गिरते स्तर का अंदाज ही नहीं लगा पा रहे हैं। भारत के साइबर कानून बेहद कमजोर हैं। हम कुछ भी कह कर, लिख कर आसानी से निकल जाते हैं, कोई उनकी गिरफ्त में आसानी से आ ही नहीं पाता है अगर आ भी गया, तो जमानत के द्वारा आसानी से छूट जाता है। हालांकि साइबर कानून को मजबूत करने के लिए 2008 के संसोधित कानून में कुछ संशोधन किये गए मगर यह भी नाकाफी थे। साइबर कानून में आज भी किसी प्रकार की सजा का प्रावधान नहीं है इससे अपराधी के मन में इस कानून के लिए व इससे मिलने वाली सजा के लिए कोई भय नजर नहीं आता। शायद यह भी एक बहुत बड़ा कारण है कि देश में इंटरनेट से सम्बन्धित अपराधों की अधिकता बढ़ती जा रही है। चाहे वह किसी पद के मान से जुड़ा हो या निजी हमले को लेकर।
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