नौवीं क्लास में आने के बाद मुझे आने वाले बोर्ड एग्जाम के बारे में सोचकर बहुत डर लगता था। इसके पहले सभी क्लास में अच्छे नंबरों से पास हुई थी। अभी तक मैं साइंस की एक किताब ही पढ़ती थी, लेकिन अब तीन किताबें पढ़नी थीं। सामाजिक विज्ञान की तो चार किताबें थीं। मैं पढ़ने बैठती तो मुझे रुलाई आ जाती। मुझे गणित से चिढ़ होने लगी। मैं हर समय दुखी रहती थी। एक दिन मेरे अंकल-आंटी, जो कि मुझसे बहुत प्यार करते हैं, मेरे घर आए। उन्होंने मेरे दुखी रहने का कारण पूछा, तो मैं रोने लगी। मैंने चाची को अपनी पढ़ाई के प्रेशर के बारे में बताया। चाचा-चाची मुझे बाहर ले गए और मेरे साथ बैडमिंटन खेलने लगे। खेल में भी मेरा मन नहीं लग रहा था और मैं हार रही थी। पर अचानक देखा कि चाचा हार रहे हैं तो मेरे मन में भी जीत की उमंग बढ़ गई। शायद चाचा जानबूझ कर मुझसे हार रहे थे। मैं उनको हारते देख हंसने लगी।
इसके बाद चाची ने मुझे समझाया कि कभी भी पढ़ाई को बोझ मत समझो, जैसे तुमने खुश होकर खेलने पर चाचा को हरा दिया, वैसे ही पढ़ाई भी खुशी से करो। पढ़ाई या परीक्षा का डर परेशान करता है, तो इसे अपने ऊपर हावी न होने दो। सबके पास दिमाग एक जैसा ही होता है।
मेहनत करो, मन लगाकर पढ़ो। फिर क्या था, इतना सुनने के बाद मेरे अंदर उत्साह का संचार होने लगा। मैं नियमित समय से पढ़ने, सोने और जागने लगी। मैं हमेशा कुछ नया सीखने की चाह लेकर पढ़ने बैठती थी। इसकी वजह से सभी परीक्षाओं में मेरे अच्छे नंबर आने लगे। मेरे अंदर परिवर्तन पाकर सब खुश थे और मैं अपनी आंटी का शुक्रिया कर रही थी, जिनकी वजह से मैंने अपने डर पर जीत पा ली थी।
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