मदनी-भागवत की टेबल टॉक से बढ़ी हलचल, जन्मे कई सवाल

-तौसीफ़ क़ुरैशी-

दो अलग-अलग विचारधारा के टेबल टॉक को लेकर खासी हलचल देखी जा रही है जिसमें एक विचारधारा के संगठन जमीअत उलेमा-ए-हिन्द का गठन 1919 में हुआ यानी 100 साल हो गए बने हुए तो दूसरे संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गठन 1925 में किया गया जिसको 2025 में 100 साल होगे लेकिन दोनों संगठनों की विचारधारा बिलकुल अलग है जमीअत की विचारधारा अमन शान्ति से पूरे भारत को एक रखना तथा भारत के सेकुलर ढाँचे को बरक़रार रखना है वही आरएसएस की विचारधारा कट्टरता के साथ भारत को हिन्दुराष्ट्र बनाना है जिसमें वह किसी हद तक फिलहाल कामयाब भी लगती है लेकिन जिस तरह से आज के नए भारत का निर्माण की कल्पना की जा रही है उससे भारत को संयुक्त रखना कठिन समझा जा रहा है क्योंकि आजादी से पूर्व भारत में अलग-अलग धर्मों के मानने वाले लोग रहते आए है कट्टरता किसी भी तरफ़ से अपनायी जाए उससे संयुक्त भारत को बचाएँ रखना मुश्किल हो जाएगा यही सब जटिलता है जिससे भारत पर एक ख़ास विचारधारा नही थोपी जा सकती है इस एक ख़ास विचारधारा का जबसे भारत में बोलबाला हुआ है तभी से भारत में एक बहुत बड़े तबके के दिलो दिमाग में अपने भविष्य के सुरक्षित नही रहने की भावना घर कर रही है क्या ये संयुक्त भारत के लिए ठीक है। जमीअत की विचारधारा संयुक्त भारत के लिए बेहतर है और आरएसएस की विचारधारा संयुक्त भारत के लिए ठीक नही है ऐसा इस देश को पहचानने वाले मानते है। क्या जमीअत के सदर से आरएसएस चीफ का मिलना इस बात का संकेत है कि आरएसएस इस बात को मान चुका है कि जिस रास्ते पर आरएसएस भारत को ले जा चुकी है उसमें भारत का भविष्य सुरक्षित नही है। आरएसएस चीफ मोहन भागवत और मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी के बीच आरएसएस दिल्ली के मुख्यालय में हुई मुलाक़ात उनके लिए गलत है जो साम्प्रदायिकता का चोला पहन माहौल ख़राब करने का प्रयास करते रहते है उनके लिए ये मुलाक़ात निराशाजनक बतायी जा रही है और जो इस मुल्क में अमन चयन चाहते है उनके लिए ये मुलाक़ात अच्छी पहल मानी जा सकती है यह मुलाक़ात तक़रीबन एक घंटा तीस मिनट चली लेकिन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई ये बात बाहर नही आई है जिससे दोनों विचारधारा के मानने वाले काफ़ी पशोपेश में है कि आख़िरकार दोनों ने क्या बातचीत कि किन मुद्दों पर बात की क्या कश्मीर के हालात पर विचार हुआ या मॉबलिनचिंग रहा मुद्दा या हिन्दु-मुस्लिमों के बीच नफ़रत की खाई जो बनती जा रही है उसपर हुई चर्चा यही अनेकों सवाल है जो लोगों के दिमाग में घूम रहे है। दोनो ही ओर से बातचीत सार्वजनिक नही करना सवालों के घेरे में है हमने काफ़ी प्रयास किए बातचीत में क्या मुद्दे रहे लेकिन कोई कुछ बोलने को तैयार नही है कुछ लोग गलत मान रहे तो कुछ सही इन्हीं सब बहस के बीच लोगो का सवाल करना ज़ायज भी लगता है और नही भी क्योंकि बात हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी की है उनका अभी तक का मिल्लत के सामने कोई ऐसा अमल नही है जिससे उनपर शक किया जा सके लेकिन इंसान की फ़ितरत में ये शामिल है खुदा को छोड़कर शक अपने आप पर भी करना चाहिए। हमारे सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मुलाक़ात का समय मात्र तीस मिनट का था लेकिन मुलाक़ात आरएसएस के बदल रहे नज़रिये के मुताबिक और जमीअत के हमेशा के नज़रिये हिन्दु-मुस्लिम एकता के मुताबिक ख़ुशगवार माहौल में चलती रही जिसके बाद यह मुलाक़ात लंबी होती चली गई इस महत्वपूर्ण चर्चा में मात्र तीन लोग शामिल रहे आरएसएस चीफ मोहन भागवत, जमीअत चीफ हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी और इस मुलाक़ात के सूत्रधार भाजपा के ट्रेनिंग कैंप के प्रभारी सुनील पाण्डेय।भागवत से मुलाक़ात कर बाहर निकल रहे मौलाना से भाजपा नेता रामलाल की मुलाक़ात हुई इस मुलाक़ात में रामलाल का कोई वास्ता नही रहा। मुल्क के हालात पर गंभीर रूप से चर्चा हुई इस मुलाक़ात के बाद इस्लामिक हल्के में बहुत हलचल दिखी जा रही है क्योंकि जमीअत उलेमा-ए-हिन्द मुसलमानों का आजादी से पहले ही नेतृत्व करता चला आ रहा है जमीअत की स्थापना से लेकर आज तक जमीअत मुल्क की एकता के लिए काम करती चली आ रही है बँटवारे के टाइम भारत में रहे मुसलमान जमीअत और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के संयुक्त प्रयास की वजह से ही भारत में रहे थे आज के हालात की वजह से जमीअत पर इस बात का भी दबाव देखा व समझा जा रहा है कि हम आपकी वजह से यहाँ रहे और देखो हमारे साथ क्या हो रहा है ये प्रेशर भी जमीअत पर देखा जा रहा है इस मुलाक़ात को कराने में भाजपा के पूरे भारत के ट्रेनिंग कैंपों के प्रभारी और पहले आरएसएस में बड़े जिम्मेदार पदों पर आसीन रहे आरएसएस के सुनील पाण्डेय ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की| सुनील पाण्डेय ने हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी तक पहुँचने के लिए देवबन्द के पंडित अश्वनी मुदगल एडवोकेट का इस्तेमाल किया जिनका वहाँ के अधिकतर मुस्लिम घरों काफ़ी अच्छी घुसपैठ समझी जाती है और संघ में भी काफ़ी मजबूत पकड़ है उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री अब महाराष्ट्र के राज्यपाल नियुक्त किए गए भगत सिंह कोश्यारी के नज़दीकी पंडित अश्वनी मुदगल एडवोकेट ने जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी तक आरएसएस का संदेश पहुँचाने में सुनील पाण्डेय की मदद की कि आरएसएस के चीफ मोहन भागवत आपसे मिलना चाहते है यह सिलसिला तक़रीबन ढाई साल से चल रहा था जो अब जाकर संभव हो सका है। ढाई साल पहले देवबन्द में सुनील पाण्डेय की मुलाक़ात हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी से हुई थी इस मुलाक़ात की रूप रेखा तभी से तैयार हो गई थी।हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी की मोहन भागवत से मुलाक़ात को सकारात्मक रूप से देखा जा रहा है क्योंकि मुल्क के हालात ठीक नही है इस लिए सुलह की कोशिशें आख़री उम्मीद तक करनी चाहिए लेकिन उसमें कोई किन्तु परन्तु नही होना चाहिए सिर्फ़ लिल्लाहाहियत मक़सद होना अनिवार्य है और हजरत मौलाना सैयद अरशद मदनी की नियत पर कम से कम शक बिलकुल नही किया जा सकता है, हाँ अगर ये मुलाक़ात अन्य कोई और मौलाना करते तो उनपर हज़ार बार शक होता,और होना भी चाहिए था हर किसी पर यक़ीन नही किया जा सकता है जहाँ तक हज़रत मौलाना की बात है जबसे हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने जमीअत की कमान सँभाली है तब से जमीअत की कारगुज़ारी में ज़मीन आसमान का फर्ख महसूस किया जा सकता है ऐसा लोगों का मानना है इनसे पहले की जमीअत की पहचान साम्प्रदायिक दंगों तक सीमित थी बाक़ी कुछ काम नही होता था लेकिन आज की जमीअत पूरी मज़बूती से काम कर रही है यह एक कड़वा सच है जिसे हमें मानना ही पड़ेगा हर किसी पर एतबार नही किया जा सकता है हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी के द्वारा किए जा रहे मुल्क और मिल्लत के लिए तमाम कामो और कोशिशों के बाद उनकी नियत पर शक की गुंजाइश नही के बराबर है, और अगर ऐसा हुआ तो फिर किसी पर भरोसा नही किया जा सकता है जिस नज़रिये से ये मुलाक़ात बताई जा रही है यह एक अच्छी कोशिश है मौलाना को उनकी कोशिशों में उन्हें कामयाबी मिले ऐसी संभावनाएँ तलाशी जा रही है।

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