35-ए मुक्त होगा कश्मीर

-सईद अहमद-

यह कोई निश्चित नहीं, सवालिया स्थिति है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35-ए का मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है। जब तक उसका निर्णय नहीं आ जाता, तब तक कश्मीर यथावत है, लेकिन अतिरिक्त जवानों की तैनाती ने यह मुद्दा और भी भड़का दिया है। एक खास तबका बौखलाया हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने शिष्टाचार की तमाम हदें लांघते हुए यहां तक ‘जहर’ उगला है कि जो हाथ 35-ए के साथ छेड़छाड़ करेंगे, तो वह बारूद को छूने जैसा होगा। छेड़छाड़ करने वाले हाथ ही नहीं जलेंगे, बल्कि पूरा जिस्म जलकर राख हो जाएगा। यह किस राजनीति की भाषा है? महबूबा इतनी पराकाष्ठा तक क्यों पहुंची हैं? एक और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तो अपेक्षाकृत शांत हैं। महबूबा की पार्टी पीडीपी का अस्तित्व दक्षिण कश्मीर के चार-पांच जिलों तक ही सीमित है और वहां का सियासी, अलगाववादी और पाकपरस्त तबका ही 35-ए पर चिंघाड़ रहा है। पहले महबूबा ने कहा था कि यदि अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म किया गया, तो कश्मीर में भारत का तिरंगा उठाने वाला हाथ भी नहीं मिलेगा। ऐसी सियासी धमकियों के मायने क्या हैं? दरअसल कश्मीर राज्य का यथार्थ यह है कि जम्मू और लद्दाख क्षेत्र 35-ए को समाप्त करने के पक्षधर हैं। पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष भीम सिंह ने एक नेशनल टीवी चैनल पर साफ बयान दिया है कि उन्हें 35-ए नहीं चाहिए। खत्म करो इसे। यह अनुच्छेद संवैधानिक तौर पर स्थायी व्यवस्था नहीं है। मई, 1954 में भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के एक आदेश के जरिए यह व्यवस्था लागू की गई। तत्कालीन नेहरू कैबिनेट की सिफारिश पर इसे संविधान में जोड़ा गया, लेकिन वह अस्थायी व्यवस्था थी। संसद से उसे पारित नहीं कराया गया। संसद के जरिए ही कोई प्रावधान संविधान में शामिल किया जा सकता है। बहरहाल कश्मीर घाटी के एक तबके ने 35-ए को अपना विशेषाधिकार मान रखा है। अनुच्छेद 35-ए कश्मीर को शेष भारत से अलग एक विशेष पहचान देता है, लिहाजा घाटी के ज्यादातर लोग अच्छे वक्त में भी कश्मीर को भारत से अलग मानते हैं। वे अपने को ‘भारतीय’ आज भी नहीं मानते, जबकि कश्मीर की रोटी, संसाधन, विकास, बुनियादी ढांचा, सियासत और सांसदी आदि सब कुछ भारत सरकार के सौजन्य से ही नसीब है। कश्मीर की जमात शेष भारत से इतनी अलग है कि बाहर के नागरिक स्थायी निवासी नहीं बन सकते। अपना घर-संपत्ति नहीं खरीद सकते। सरकारी नौकरी के लिए भारतीय ‘अयोग्य’ मान लिए गए हैं और सरकारी योजनाओं में भी गैर-कश्मीरी का कोई विशेषाधिकार नहीं है। भारत के भीतर ही औसत नागरिक खुद को ‘विदेशी’ मानने को बाध्य है। एक ही गणतंत्र और एक ही राष्ट्र में दो-दो अलग व्यवस्थाएं क्यों हैं? दरअसल सुरक्षा बलों के 10,000 अतिरिक्त जवान तैनात करने के भी मायने ये नहीं हैं कि कश्मीर में 370 और 35-ए खत्म करना तय है। गृह मंत्रालय की अधिसूचना और कश्मीर के पुलिस महानिदेशक के जरिए अब यह साफ हो गया है कि पहले से तैनात 200 कंपनियों के जवानों को ‘रिलीव’ किया जाना था, ताकि वे अपनी बटालियन में लौट सकें और टे्रनिंग का अनिवार्य अभ्यास कर सकें। हालांकि जम्मू-कश्मीर में सेना और पुलिस के अलावा सुरक्षा बलों के 40,000 से ज्यादा जवान तैनात और सक्रिय हैं। बेशक आतंकवाद विरोधी ग्रिड को मजबूत करना और कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करना भी गृह मंत्रालय का लक्ष्य है, लेकिन 35-ए पर ही फोकस नहीं है। खुफिया रपटें ऐसी भी हैं कि 15 अगस्त के आसपास पाकपरस्त आतंकी बड़ा हमला करने की साजिश बुन रहे हैं। उसके मद्देनजर भी तैनाती व्यापक की जा रही है, लेकिन घाटी में एक तबका ऐसा है, जो खौफ-दहशत पैदा कर रहा है और दूसरा तबका आम कश्मीरी का है, जो इतना डरा हुआ है कि घर की अनिवार्य चीजों की खरीदारी कर रहा है। सरकार ने एहतियातन कई कदम उठाए हैं। मसलन हर पुलिस स्टेशन में सेटेलाइट फोन और बुलडोजर की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं। दंगा नियंत्रण उपकरणों और गैस बंदूकों की तैयारी के बाबत भी पूछा गया है। लिहाजा हालात सामान्य नहीं लगते। यदि सर्वोच्च न्यायालय ने 35-ए को खत्म करने का आदेश दे दिया, तो उसके बाद कश्मीर में जो उपद्रव और हिंसा फैल सकते हैं, सरकार उन हालात को काबू करने में भी एहतियात बरतना चाहती है, लिहाजा और भी जवान कश्मीर में बुलाए जा सकते हैं।

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