रांची। झारखंड के नागपुरी लेखक, साहित्यकार और गायक रामप्रवेश सिंह ने नागपुरी भाषा के व्यवसायीकरण पर चिंता जताई है। मंगलवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्होंने नागपुरी भाषा को झारखंड की सांस्कृतिक पहचान बताया और कहा कि इसे निस्वार्थ भाव से संवारा जाना चाहिए।
रामप्रवेश सिंह ने कहा कि पहले नागपुरी भाषा को संजोने और आगे बढ़ाने में अनेक कलाकारों ने अपना जीवन निस्वार्थ भाव से समर्पित किया, लेकिन अब इसे कई लोगों ने व्यवसाय का माध्यम बना दिया है। यह गलत है। इससे समाज दिग्भ्रमित है। आनेवाली पीढ़ी के बीच भी गलत संदेश जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग नागपुरी को सहेजने में जीवन व्यतीत कर दिया, जबकि कुछ लोग इसे पूरी तरह अपने लाभ के रूप में स्तेमाल कर रहे हैं। आधुनिक दौर में नागपुरी भाषा को जिस दिशा में ले जाया जा रहा है, वह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि पहले गांव-देहात के हर कोने में मांदर-ढोलक की मधुर तान गूंजती थी, हर नागपुरिया के कंठ में गीत बसते थे।
रामप्रवेश सिंह ने कहा कि यह भाषा संस्कृति-सभ्यता की पहचान थी। लेकिन आज स्वार्थ और राजनीतिक दखलंदाजी के कारण नागपुरी भाषा का स्वरूप बदल गया है। कई बार उच्च शिक्षित परिवारों के बच्चे बिना स्नातक (ग्रेजुएशन) के स्नातकोत्तर (एम.ए.) नागपुरी में दाखिला लेकर नौकरी के लिए डिग्री हासिल करते हैं, जबकि असली नागपुरी भाषा जानने वालों को रोजगार में अवसर नहीं मिल पाते।
उन्होंने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) परीक्षा में नागपुरी विषय में कम नंबर मिलने की शिकायतों का उदाहरण देते हुए कहा कि इस विषय को पढ़ाने वाले कोचिंग संस्थान भी केवल आर्थिक लाभ के लिए काम कर रहे हैं, जिससे नागपुरी के विद्यार्थी पिछड़ रहे हैं।
रामप्रवेश सिंह ने जोर देकर कहा कि नागपुरी भाषा झारखंड की सांस्कृतिक पहचान है और इसे व्यवसाय नहीं, बल्कि निस्वार्थ भाव से संवारा जाना चाहिए। यदि झारखंडी कहलाना है, तो भाषा के प्रति अपनी अंतरात्मा को जागृत करना होगा, क्योंकि केवल पैसे महल बनाते हैं, लेकिन सम्मान और इतिहास केवल भाषा ही दे सकती है।
उन्होंने अपील की है कि नागपुरी भाषा की मिठास को आधुनिकता के नाम पर बिगाड़ने वाले इस गलत प्रवृत्ति को रोका जाए और भाषा-संस्कृति को बचाने के लिए सभी समाजिक एवं साहित्यिक वर्ग एकजुट हों।
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