जगत्‌गुरू रामानुजार्च श्रीस्वामी अनिरुद्धाचार्य जी महाराज सदुपदेश के माध्यम से किया मार्गदर्शन

Ranchi: श्रीधाम वृंदावन से पधारे श्रीस्वामीजी महाराज आज तीसरे दिन श्रीलक्ष्मी वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) मन्दिर के प्रांगण में 27 नवंबर बुधवार को भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि अगहन का महीना भगवान को अति प्रिय है। इस महीने में भगवान के सेवा का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। यदि भगवान प्रसन्न हो गये तो समझो सब प्रसन्न हो गया और भगवान् प्रसन्न नहीं है तो सबकुछ रहते मानो कुछ भी नही है। सब प्रकार से संपत्ति रहते हुए भी यदि भगवान् के प्रति भक्ति और अनुराग नही है तो सब‌कुछ व्यर्थ ही है। जिसके पास कुछ नही है और भगवान् के प्रति प्रेम है, तो वह सबसे सुखी है। श्रीभगवान् का नित्य दर्शन करने से भगवान की अहैतुकी कृपा मिलती है। समझो भगवान् का दर्शन ही हमारी असल पूंजी है,
श्रीगुरुदेव ने आगे कहा – माता के गर्भ में जीव भक्ति स्वीकार करता है, पर बाहर आते समय शठ नामक वायु उसे विवेक शुन्य कर देता है, तब वह प्राणी इस असार संसार में आकर भ्रमित हो जाता है और इस सुख के खोज में इधर- उधर भटकने लगता है। भगवान की कृपा से ही हमें मनुष्य शरीर मिला है तथा यह भारतवर्ष की पुण्य भूमि पर जन्म हुआ है। जब मनुष्य भगवान के दर्शन करते हैं, उनके चरणों की सेवा करते हैं, संतो की सेवा व प्रणाम करते हैं और गुरुजनों के कृपा का पात्र बनते हैं, तब हमारा जन्म सफल और जीवन धन्य हो जाता है।
इसके बाद महाराजश्री ने कहा – और कोई व्रत करो या ना करो, पर भगवान् की जयन्ती और एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए। सौ एकादशी व्रत के बराबर भगवान की एक जयन्ती का महत्व है और सैकड़ों अश्वमेध यज्ञ करने का फल केवल एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। एकादशी का व्रत और भगवान का दर्शन निष्काम भाव से करना चाहिये । मनुष्य को समर्पण युक्त जीवन यापन करना चाहिये।
विशेष रूप से उपस्थित रहे श्री गोविंद दास जी महाराज, श्री दामोदरदास जी, मंदिर के अर्चक श्री सत्यनारायण गौतम, श्री गोपेश आचार्य ,श्री नारायण दास जी एवं मंदिर संचालन समिति के सर्वश्री राम अवतार नरसरिया नारायण प्रसाद जालान ,रमेश धरनीधरका, घनश्याम दास शर्मा,अनूप अग्रवाल प्रदीप नरसरिया , विनय धरनीधरका कन्हैया लोहिया रामवृक्ष साहू मुरारी लाल शशि भूषण सिंह आदि

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