-सीमा पासी-
यह बात तो सही नहीं है कि प्रियंका गांधी ने अभी सक्रिय राजनीति में आना तय किया है वो बहुत पहले से राजनीति में ही है लेकिन वो केवल चुनावों के समय ही अपनी माता और भाई के लिये चुनाव प्रचार करती थी। पहले उन्होंने कांग्रेस में औपचारिक रूप से कोई पद ग्रहण नहीं किया था लेकिन पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों में उनकी भागीदारी रही है। अभी तक राहुल गांधी भी बेमन से राजनीति करते हुए प्रतीत होते थे लेकिन अब वो राजनीति को गम्भीरता से ले रहे हैं। इसके पीछे यह कारण भी हो सकता है कि कांग्रेस उनकी पारिवारिक सम्पत्ति की तरह है जो उन्हें विरासत में मिली है और अब इसकी देखभाल करना उनकी मजबूरी बन चुका है। 2014 के बाद से कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता आ रहा था और सोनिया जी की सेहत भी गिरती दिखाई दे रही है, ऐसे में राहुल के पास कोई और चारा बचा नहीं है। राजनीति और मीडिया में लोग उनकी क्षमता को पहचान चुके हैं, इसलिये कांग्रेस पार्टी के नेताओं की तरफ से सोनिया जी पर प्रियंका गांधी को कांग्रेस में लाने के लिये दबाव बढ़ता जा रहा था और इसी का नतीजा है कि प्रियंका जी को विधिवत रूप से कांग्रेस में महासचिव का पद दे दिया गया है। कांग्रेस के नेता जानते हैं कि प्रियंका राहुल से ज्यादा बेहतर नेता साबित हो सकती है। ऐसा भी नहीं है कि सोनिया जी यह बात नहीं जानती थी बल्कि सबसे बेहतर तो वही जानती हैं कि प्रियंका और राहुल में क्या अन्तर है। लेकिन पुत्रमोह में उन्होंने अभी तक प्रियंका को राजनीति से दूर रखा है क्योंकि वो जानती हैं कि यदि प्रियंका राजनीति में आती है तो अपनी योग्यता के बलपर वो कांग्रेस पर काबिज हो सकती है और राहुल किनारे लग सकते हैं क्योंकि राजनीति में सत्ता के दो केन्द्र ज्यादा दिन तक चलते नहीं है। यह ठीक है कि प्रियंका कांग्रेस का तुरूप का इक्का है लेकिन अब राजनीति का खेल वहाँ पहुँच चुका है जहाँ यह ज्यादा काम आने वाला नहीं है। यह भी ठीक है कि प्रियंका में बेहतर नेता के गुण दिखाई देते हैं लेकिन उन्हें यह साबित करना होगा कि वो एक बेहतर राजनेता हैं। कुछ लोगों के लिये वो इन्दिरा जी का प्रतिरूप हो सकती हैं लेकिन नई पीढ़ी तो इन्दिरा जी को जानती भी नहीं है इसलिये कांग्रेस के लिये उनको इन्दिरा जी की छवि की तरह पेश करना ज्यादा फायदेमन्द नहीं होने वाला है। अब सवाल उठता है कि कांग्रेस ने इस वक्त ही क्यों उन्हें इन चुनावों में उतारने का फैसला किया ? वास्तव में इस समय कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और प्रियंका उसका अखिरी हथियार हैं और जब सबसे मुश्किल समय आता है तो आदमी अपने आखिरी हथियार का इस्तेमाल ही करता है। विडम्बना यह है कि इस काम में कांग्रेस से कुछ देरी हो चुकी है। राहुल गांधी को विपक्षी दल लगभग नकार चुके हैं और यह बहुत पहले से होता आ रहा है लेकिन सोनिया जी इसे अभी तक अनदेखा करती रही है। जबसे सपा-बसपा ने कांग्रेस को बाहर रखकर गठबन्धन किया तब से कांग्रेस में एक बैचेनी दिखायी दे रही थी और इसी बैचेनी का नतीजा हैं कि प्रियंका गांधी विधिवत रूप से कांग्रेस में शामिल हो गई हैं। प्रियंका गांधी के आगमन से सबसे पहला फायदा तो कांग्रेस को यह हुआ है कि इसका निराश कार्यकर्त्ता उत्साह से भर गया है क्योंकि कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं की प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने की बहुत पुरानी मांग कांग्रेस ने मान ली है। इस सच को कांग्रेसी मन ही मन जानते हैं कि राहुल लाख कोशिशों के बाद भी कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं को अपने साथ जोड़ नहीं पाये हैं। प्रियंका के आगमन से वोट कितना बढ़ेगा, यह तो आने वाला वक्त बतायेगा लेकिन कार्यकर्त्ताओं की फौज जरूर बढ़ सकती है। दूसरा प्रियंका के आने से फायदा यह हुआ है कि पार्टी में आत्मविश्वास की बढ़ोतरी हुई है। तीसरा बहुत बड़ा फायदा यह होने वाला है कि राहुल और प्रियंका की जोड़ी मोदी के मुकाबले खड़ी होकर अपने आपको मोदी के मुख्य प्रतियोगी के रूप स्थापित कर सकती है। प्रियंका के आने के बाद प्रधानमंत्री के पद पर ममता और मायावती की दावेदारी इसलिये कमजोर हो गई है क्योंकि 2019 के चुनावों में मोदी के बाद राजनीति के केन्द्र बिन्दु राहुल-प्रियंका बन जायेंगे। राहुल का बयान भी महत्वपूर्ण है कि वो प्रियंका को यूपी केवल दो महीनों के लिये नहीं सौंप रहे हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि वो उत्तरप्रदेश तक सीमित नहीं रहने वाली है। राजनीति में सब कुछ सोच समझकर नहीं होता है, कुछ चीज़े वक्त तय करता है। प्रियंका का आगमन यह भी इंगित करता है कि कांग्रेस अब वर्तमान से निकलकर भविष्य की राजनीति की ओर बढ़ रही है, क्योंकि प्रियंका को जिस तरह से यूपी की राजनीति में उतारा गया है, उससे भाजपा से ज्यादा गठबन्धन को नुकसान होगा और ऐसा कांग्रेस भी नही चाहती है लेकिन कांग्रेस का भविष्य यूपी में आगे बढ़े बिना बेहतर नहीं हो सकता। सपा-बसपा के साथ आने से जहाँ कांग्रेस परेशान थी वहीं भाजपा के लिये भी मुश्किल खड़ी हो गई थी क्योंकि भाजपा को लग रहा था कि कमजोर कांग्रेस के रहते उसका सीधा मुकाबला गठबन्धन के साथ होगा जिसमें उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। जबसे प्रियंका का आगमन हुआ है, भाजपा को महसूस होने लगा है कि यूपी में मुकाबला तिकोना बन सकता है जिससे भाजपा को बेहतर परिणाम हासिल होंगे। भाजपा प्रियंका के आगमन से खुद को लापरवाह दिखाने की कोशिश में है और गठबन्धन भी लापरवाही दिखा रहा है लेकिन वो समझ रहा है कि कांग्रेस को गठबन्धन से बाहर रखकर उससे गलती हो चुकी है। प्रियंका न केवल इन चुनावों में बल्कि भविष्य की राजनीति में क्षेत्रीय नेताओं के लिये चुनौती पेश कर सकती है। जहां तक सवाल है 2019 लोकसभा के चुनावों का तो प्रियंका परिस्थितियों में ज्यादा अन्तर पैदा नहीं कर सकती लेकिन वो भाजपा के खिलाफ बनने वाले गठबन्धन में परिस्थितियों को बदलने का माद्दा जरूर रखती है। पूरे देश में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में कुछ उछाल आना तो तय है लेकिन देखना यह है कि यह सीटों में कितना तबदील होता है। प्रियंका कांग्रेस का भविष्य निर्धारित करने वाली हैं। आज के हालात में उन पर वंशवाद का आरोप भी सही नहीं होगा क्योंकि उन्हें गांधी परिवार का होने से कांग्रेस का महासचिव तो बना दिया गया है लेकिन आगे सफर उन्हें अपनी मेहनत से पूरा करना होगा। इस समय कांग्रेस के हाथ में ज्यादा कुछ नहीं है लेकिन तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस वापिसी कर रही है और प्रियंका इसमें कुछ तो अन्तर पैदा करेंगी ही। प्रियंका के आगमन से मुझे उम्मीद है कि कांग्रेस भविष्य में राहुल की बचकानी राजनीति से आगे निकलकर कुछ बेहतर तस्वीर पेश करेगी। अन्त में यही कहना चाहूंगी कि राहुल कुछ भी कहे लेकिन प्रियंका को वो यूपी तक सीमित नहीं कर पायेंगे, 2019 के बाद प्रियंका यूपी की नहीं बल्कि देश की राजनीति करेंगी।
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