उच्च सदन ने हमेशा सत्ता को निरंकुश होने से रोके रखा : पीएम मोदी

नई दिल्ली। राज्यसभा का 250वां सत्र सोमवार से शुरू हो गया है। इस मौके पर पीएम मोदी ने सदन को संबोधित किया। सत्र के पहले दिन सदन ने अरुण जेटली, राम जेठमलानी, जगन्नाथ मिश्र, लिबरा एवं गुरुदास दासगुप्ता के निधन पर शोक व्यक्त किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी ।

पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान देश के विकास में राज्यसभा के योगदान को याद करते हुए कहा कि उच्च सदन ने हमेशा सत्ता को निरंकुश होने से रोके रखा है। राज्यसभा को, देश को दिशा दिखाने वाला दूरदर्शी बताया। राज्यसभा से अहम कानूनों के पास होने की बात करते हुए पीएम ने तीन तलाक, आर्टिकल 370 का भी जिक्र किया।

बता दें कि सत्र के पहले दिन राज्यसभा में कार्यरत मार्शलों के यूनिफार्म का रंग बदल दिया गया है। पहले मार्शलों के यूनिफार्म का रंग मटमैला था। अब इनका रंग गहरा नीला कर दिया गया है। पहले चेंबर अटेंडेंट और मार्शलों के यूनिफार्म का रंग एक ही था।

उच्च सदन राज्यसभा के 67 सालों के इतिहास में राज्यसभा ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस मौके पर राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने लोकसभा के 67 सालों के सफर पर एक पुस्तक ‘राज्यसभा द जर्नी सिंस 1952‘ जारी की है। इस पुस्तक में राज्यसभा की कामयाबियों को दर्शाया गया है।जानकारी के अनुसार राज्यसभा का पहला सत्र 1952 में हुआ था। उस समय 15 महिलाएं राज्यसभा सदस्य थीं, जबकि कुल 2016 सदस्य थे। अब 2019 में राज्य सभा के 69 साल पूरे होने पर महिला सदस्यों की संख्या दोगुनी भी नहीं हो सकी है। वर्तमान में 26 महिला सदस्य हैं जो कि मात्र 10.83 प्रतिशत की वृद्धि है। यह संख्या 2014 में सदस्य रहीं 31 महिलाओं से कम है। 67 वर्षों के दौरान 3817 विधेयक पारित हुए, 208 महिलाएं व 137 मनोनीत सदस्य, 2282 सदस्य बने अब तक राज्यसभा सदस्य

पीएम मोदी ने भाषण के दौरान कहा कि 250वां सत्र यह अपने आप में समय व्यतीत हुआ ऐसा नहीं है। एक विचार यात्रा रही। समय बदलता गया, परिस्थितियां बदलती गई और इस सदन ने बदली हुई परिस्थितियों को आत्मसात करते हुए अपने को ढालने का प्रयास किया।

भारत की विकास यात्रा में निचले सदन से जमीन से जुड़ी चीजों का प्रतिबिंब झलकता है तो उच्च सदन से दूर दृष्टि का अनुभव होता है। हमारे प्रथम उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने राज्यसभा में कहा था, हमारे विचार, हमारा व्यवहार और हमारी सोच ही दो सदनों वाली हमारी संसदीय प्रणाली के औचित्य को साबित करेंगी। संविधान का हिस्सा बनी इस द्विसदनीय व्यवस्था की परीक्षा हमारे कार्यों से होगी।

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