रामगढ़ । देश के विख्यात सिद्धपीठ मां छिन्नमस्तिका दरबार नवरात्र को लेकर सज-धज कर तैयार हो गया है। कोलकाता के कारीगरों ने रजरप्पा मंदिर को आकर्षक तरीके से सजाया है। इस वर्ष कारीगरों ने इस मंदिर को सागर में चलती हुई नाव का रूप दिया दिया है। मंदिर को सजाने में 100 किलो से अधिक फूलों का इस्तेमाल किया गया है। यह फूल भी कोलकाता से ही मंगाए गए हैंमंगलवार को रजरप्पा न्यास समिति के सचिव लोकेश पंडा ने बताया कि यहां आने वाले साधकों और श्रद्धालुओं के स्वागत की तैयारी कर ली गई है। वैसे तो साधक 29 सितंबर से ही रजरप्पा में अपना डेरा जमा चुके हैं। मंदिर की सजावट पूरी हो चुकी है और आज से यहां विशेष पूजन का भी आयोजन किया जाएगा। साधना और हवन के लिए लिए झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडीसा, छत्तीसगढ़ सहित देश के कई कोने से साधु, संत और साधक यहां पहुंच चुके हैं। छिन्नमस्तिका मंदिर को असम में कामाख्या मंदिर के बाद दूसरे तीर्थस्थल के रूप में भी माना जाता है। मंदिर के अंदर जो देवी काली की प्रतिमा है, उसमें उनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एकबार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं। स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं। सहेलियों ने माता से कहा, हे माता, जब बच्चों को भूख लगती है तो मां अपने हर काम भूलकर उसे भोजन कराती है। आप ऐसा क्यों नहीं करतीं। यह बात सुनते ही मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं। सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने अपनी सहेलियों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।
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