बैनर : थंडर रोड पिक्चर्स
निर्माता : मीन-ली तान, माइक गबरॉय, केंट कुबेना, जो थॉमस, बेसिल इवांक, गैरी हैमिलटन, जूली रेयान आदि
निर्देशक : अन्थोनी मरास
छायांकन : नीक रेमी मैथ्यू
पटकथा : अन्थोनी मरास, जॉन कोली
संपादन : पीटर मैकनल्टी, अन्थोनी मरास
संगीत : वोल्कर बर्टलमन
कलाकार : देव पटेल, आर्मी हेम्मर, नाज़नीन बोनियादी, टिल्डा कोभन-हार्वी, अनुपम खेर, जेसन आइजक आदि
रेटिंग : 5/5 26
मुंबई। नवंबर 2008 दहशत और आतंक के इतिहास का काला दिन है जब मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, होटल ताज, आदि कई जगहों पर आतंकी हमला हुआ था और कई जाने गयीं थीं। कहते हैं जाके पांव न फटे विवाई वो क्या जाने पीर पराई। मतलब जब तक अपने ऊपर कोई मुसीबत नहीं आ जाये तब तक दूसरे के दर्द को समझना कठिन होता है। लेकिन अन्थोनी मरास अपनी फिल्म होटल मुम्बई के दौरान आपको उस दर्द, उस आतंक और डर से आपको ओतप्रोत कर देते हैं जिस दर्द को उस काली रात को मुंबई के ताज होटल के कर्मचारियों और ठहरे यात्रियों ने झेला था।कहानी की शुरुवात होती है एक बोट से उतरते कुछ नौजवानों से जो अपने हैंडलर से आदेश पाते ही टुकड़ों में बात कर बताए गए ठिकानों पर पहुंच जाते हैं। गोलियों की तड़ताहत से कई लाशें बिछा देते हैं। लेकिन ‘मुंबई होटल’ सभी जगहों की पड़ताल नहीं कर के केवल होटल ताज को केंद्रित करता है जहां देव पटेल और अनुपम खेर काम करते हैं। उस दिन भी सब कुछ सामान्य रूप में चल रहा होता है। किस गेस्ट का कैसे स्वागत करना है, उन्हें किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं हो इसके लिए निर्देश दिए जाते हैं। एक पांच सितारा होटल की संस्कृति के अनुसार सब कुछ होता है। तभी होटल के अतिथियों के साथ साथ कुछ आतंकी भी होटल में घुस जाते हैं और फिर शुरू हो जाता है आतंक का तांडव। साथ ही अपने को बचने और दूसरों को बचाने की जद्दोजहद। एक ओर असंवेदनशील क्रूर जुनून है तो दूसरी ओर मानवीय डर, और डर पर विजय पाने की अदम्य कोशिश। लेखन, निर्देशन, छायांकन और संपादन जैसे तकनीक और उम्दा अभिनय के श्रेष्ठ संयोजन को इस फ़िल्म में देखा जा सकता है। एक ओर देव पटेल और अनुपम खेर ने चरित्र को जीवंत किया है वहीं आतंकियों के चरित्र में सुहैल नैयर, मनोज मेहरा, दिनेश कुमार, अमृत पाल सिंह, अमनदीप दीप सिंह कपिल कुमार पक्के किलिंग मशीन नजर आते हैं। फ़िल्म लार्जर दैन लाइफ नहीं है। फ़िल्म भी उसी धरातल पर चलती है जिस धरातल पर आम आदमी चलता है। यह फ़िल्म किसी के पक्ष में या विपक्ष में नहीं बनाई गई है। यह कोई उपदेश या संदेश देने की भी कोशिश नहीं करती है। यह फ़िल्म घटना को हूबहू वैसे ही रखने की कोशिश करती है जो घटा था और जो महसूस किया था। फ़िल्म का निर्देशन इतना चुस्त और कल्पनाशील है कि विश्वास करने की इच्छा ही नहीं होती अन्थोनी मरास की पहली फ़िल्म है।
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