तुम तो डूबे हो सनम, हमको भी ले डूबोगे?

-निर्मल रानी-

इन दिनों देश के कई राज्य विशेषकर दो सबसे बड़े राज्य बिहार व उत्तर प्रदेश भारी बारिश व इसके बाद उपजे बाढ़ व ख़तरनाक जलभराव जैसे हालात का सामना कर रहे हैं। सब से दयनीय हालत बिहार की राजधानी पटना के शहरी क्षेत्र की है जहाँ कि सूचनाओं के अनुसार 80 प्रतिशत पटना शहर जलमग्न हो गया है। बिहार की राजधानी पटना समेत राज्य के अनेक ज़िलों में आसमान से बरसी बारिश रुपी आफ़त और बाढ़ का क़हर जारी है। कई इलाक़े पानी में डूबे हुए हैं और बरसात की वजह से लोगों की ज़िन्दिगी बदतर हो गई है। लोग अपने घरों में क़ैद हैं। आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है। आम लोगों की तो बात ही क्या करें स्वयं राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी अपने पूरे परिवार सहित पटना के राजेंद्र नगर में स्थित अपने घर में तीन दिन तक जलभराव में फंसे रहे। 3 दिन बाद बचाव कार्यों में लगे एनडीआरएफ़ के कर्मचारियों ने उन्हें व उनके परिवार के सदस्यों को सुरक्षित बाहर निकला। ख़बरों के मुताबिक़ बाढ़ के बीच घर में फंसे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के परिवार को भी इन हालात में काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस दौरान उनके घर न पानी था और न बिजली। ज़ाहिर है जब उपमुख्यमंत्री व उनके परिवार का यह हाल है तो आम लोगों विशेषकर ग़रीब लोगों पर क्या गुज़र रही होगी इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। बिहार की राजधानी पटना समेत राज्य के ज़्यादातर इलाक़ों में आसमान से बरसी आफ़त और बाढ़ का क़हर जारी है। कई इलाक़े पानी में डूबे हुए हैं। बरसात की वजह से लोगों की ज़िंदिगी बदतर हो गई है। लोग अपने घर में क़ैद हैं। चारों तरफ़ पानी ही पानी फैला होने से लोग काफ़ी परेशान हैं। बारिश और बाढ़ की आफ़त में लोगों का घर से निकलना मुश्किल है। यू पी व बिहार दोनों राज्यों में इसी बाढ़ व जलभराव में अब तक लगभग दो सौ लोगों के मारे जाने की ख़बरें हैं। बलिया जैसे कई शहरों में तो मकानों की पूरी निचली मंज़िल ही डूबने की ख़बर है। सरकार की ओर से पर्याप्त राहत व बचाव कार्य न होने की वजह से लोग अपनी जान बचाने के लिए ट्यूब और गैस सिलिंडर का उपयोग करते देखे गए। प्रभावित क्षेत्रों में पीने के पानी, राशन, दवा आदि सभी चीज़ों की भारी कमी महसूस की गई। इन जलमग्न हुए तथा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को इस बात का भी भय सता रहा है कि ठहरे हुए पानी की वजह से बाद में दुर्गन्ध फैलेगी जिससे डेंगू, मलेरिया तथा दूसरी महामारी फैलने की भी संभावना है। इन ज़मीनी हक़ीक़तों के साथ साथ दुनिया में ‘न्यू इंडिया’ का ढिंढोरा पीटने का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। देश के लोगों को यह बताया जा रहा है कि दुनिया भारत की तरफ़ बड़ी उम्मीदों से देख रही है, ‘यह युद्ध नहीं बल्कि बुध की धरती है’, ऐसे ऐसे क़ाफ़िये गढ़े जा रहे हैं। शब्दों की तुकबंदियों से ही देश के लोगों को बहलाने व फुसलाने की कोशिश की जा रही है। मगर शहरों का जलमग्न होना और इससे प्रभावित लोगों का बेमौत मरना, प्रभवित लोगों की भूख, प्यास, उनकी दवाओं का अभाव यहाँ तक कि शौच तक न जा पाने की स्थिति कथित ‘न्यू इण्डिया’ की कुछ और ही हक़ीक़त बयान कर रही है। यू पी में जो ‘सांस्कृतिक’ राष्ट्रवादी इन हालात से निपटने के लिए उठाए जाने वाले सरकारी क़दमों का गुणगान कर रहे हैं वही बिहार की आपदा से ठीक से न निपट पाने के लिए मुख्यमंत्री नितीश कुमार के प्रयासों को नाकाफ़ी बता रहे हैं। गोया आपदा में भी राजनीति किये जाने के अवसर नहीं छोड़े जा रहे हैं। परन्तु इन सब बातों से अलग इन हालात के पैदा होने की जो वास्तविक कारण हैं उनपर कोई चर्चा ही नहीं की जा रही है। क्या इन हालात के वास्तविक कारणों से मुंह फेर लेने से समस्या का निदान हो सकता है ? या ऐसा करने से यह समस्या प्रत्येक वर्ष और भी भयावह होती जाएगी ? दरअसल विकास के नाम पर बढ़ता शहरीकरण इस समस्या का एक प्रमुख कारण है। शहरीकरण का अर्थ है धरती के एक बड़े कच्चे हिस्से का पक्का, सीमेंटेड या पत्थरयुक्त किया जाना। जब घास फूस व वृक्ष के जंगल समाप्त कर कंक्रीट के जंगल बसाए जाएंगे तो धरती में समाने वाला बारिश का पानी धरती में कैसे समाएगा ?कच्ची ज़मीन में ही पानी को सोखने की क्षमता होती है। परन्तु बढ़ते शहरीकरण ने धीरे धीरे कच्ची ज़मीनें ख़त्म कर दी हैं नतीजतन बरसात का या बाढ़ का पानी धरती में समां नहीं पाता और बाढ़ या जलभराव की स्थिति पैदा हो जाती है। भ्रष्टाचार और सरकारी लापरवाही भी इसका दूसरा मुख्य कारण है। देश के अधिकांश नाले व नीलियों का निर्माण कार्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा होता है। देश के अधिकांश नाले, नालियां व सीवर प्रणाली या तो क्षतिग्रस्त होते हैं अथवा जाम अर्थात ‘चोक’ हो जाते हैं। इनके निर्माण कार्य में सरकारी तंत्र व ठेकेदार मिल कर जनता के पैसों की बंदर बांट करते हैं। हालांकि यह स्थिति प्रायः वर्ष भर बनी रहती है। परन्तु बारिश के दिनों में जब यही गन्दा, बदबूदार व बीमारियों का वाहक नालों व सीवर का पानी सड़कों व गलियों में फैलता है तथा लोगों के घरों में वापस जाता है उस समय असहाय जनता विचलित हो जाती है। इसी दौरान इस विषय पर नाममात्र ख़बरें भी सुनाई देती हैं परन्तु बाद में मीडिया इन वास्तविकताओं से मुंह फेरकर पूरे वर्ष फिर वही नेहरू विरोध, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, पाकिस्तान व मुस्लिम विरोधी बहस में हम भारतवासियों को उलझाए रखता है। देशवासियों को इस विषय पर बड़ी ही गंभीरता से चिंतन करने की ज़रुरत है कि आख़िर मीडिया की, हमारे नेताओं की व हमारी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिये? अमेरिका में प्रधानमंत्री को देश में कथित रूप से 50 करोड़ शौचालय बनाने हेतु बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा गोलकीपर्स ग्लोबल गोल्स पुरस्कार से नवाज़ा गया। परन्तु इस पुरस्कार प्राप्ति के मात्र एक सप्ताह बाद ही बाढ़ प्रभावित व जलभराव वाले क्षेत्रों में यह शौचालय कहाँ हैं और किस तरह काम कर रहे हैं यह पूछने वाला कोई नहीं। राजनेताओं को अपने देश की जनता पर दया करनी चाहिए। क़दम क़दम पर टैक्स का भुगतान करने वाली आम जनता यदि बाढ़ व महामारी जैसी त्रासदी झेलने को आज भी मजबूर है तो इसकी वजह हमारे शासकों की नाकामी ही है। उनकी योजनाएं, नीयत, नीति सब कुछ संदिग्ध होने के कारण जनता को इतने बुरे दिन देखने पड़ते हैं। जनता की यह दुर्दशा वास्तव में नेताओं की छवि को जनता की नज़रों में पूरी तरह धूमिल कर चुकी है। ऐसे में यदि जनता इन नेताओं से यह पूछ भी ले कि ‘तुम तो डूबे हो सनम, हमको भी ले डूबोगे’? तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है?

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