इंजीनियरिंग कॅरियर का टेक्निकल पाथ

इंजीनियर का क्रेज भारत में काफी सालों से है। यही कारण है कि भारत में पीसीएम ग्रुप का हर मेधावी स्टूडेंट आईआईटी-जेईई की तैयारी के लिए जी-जान से जुट जाता है। उसका एक ही सपना होता है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रवेश पाना। इस परीक्षा को देने के लिए न्यूनतम योग्यता बारहवीं है, जबकि स्टूडेंट्स अपनी तैयारी दसवीं क्लास से शुरू कर देते हैं। यदि आप भी आईआईटी में प्रवेश चाहते हैं, तो संकल्प लेकर स्ट्रेटेजी बनाइए और पढाई में जुट जाइए। इस शेष बचे समय में उन्हीं दो सब्जेक्टों पर और मजबूत पकड बनाइए जिसमें आपको सबसे ज्यादा कांफिडेंस हो। शेष एक सब्जेक्ट को एवरेज रहने दीजिए। परीक्षा की तिथि 8 अप्रैल, 2012 है। बेहतर होगा परीक्षा तिथि को ध्यान में रखते हुए स्ट्रेटेजी के अनुरूप तैयारी कीजिए।

क्रेज है आईआईटियन का

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के बढते क्रेज का प्रमुख कारण है आईआईटियन का सुपर ब्रेन। यहां से पास आउट प्रतिभाएं सुपर ब्रेन की श्रेणी में आती हैं। कई आईआईटी संस्थान विदेशों के प्रमुख विश्वविद्यालयों से जुडे होते हैं। इसका अनुभव यहां के स्टूडेंट्स को मिलता है। इस तरह के स्टूडेंट्स इस संस्थान में प्रवेश कठिन परीक्षा पास करके पाते हैं। इसी कारण आईआईटी-जेईई एग्जाम में वही सफल होता है, जो वाकई सुपर मेधावी होता है। यहां से निकलने वाले स्टूडेंट्स आईआईएम और आईएएस की परीक्षा में भी काफी संख्या में सफल होते हैं।

किस तरह के स्टूडेंट्स हैं योग्य

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रवेश के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स से इंटरमीडिएट परीक्षा 60 प्रतिशत नंबरों के साथ उत्तीर्ण होना जरूरी है। इसके अलावा वह स्टूडेंट्स भी जेईई की परीक्षा में बैठ सकते हैं, जो इंटरमीडिएट की परीक्षा देने वाले हैं। लेकिन यह शर्त है कि प्रवेश तभी मिलेगा, जब 60 प्रतिशत नंबरों के साथ स्टूडेंट्स ने इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली हो। जेईई परीक्षा में स्टूडेंट मात्र दो बार बैठ सकता है। याद रखें यदि गैपिंग हो गई तो परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगे। आईआईटी जेईई में दो प्रश्नपत्र दो पालियों में होंगे और प्रश्नों का ट्रेंड ऑब्जेक्टिव होगा। प्रत्येक प्रश्नपत्र के लिए तीन घंटे की अवधि निर्धारित की गई है। प्रश्न का गलत जवाब देने पर निगेटिव मार्किग का भी प्रावधान है।

कैसे लगाएं स्किल्स का पता

विशेषज्ञों के अनुसार आईआईटी में स्टूडेंट पढाई करने के योग्य है कि नहीं, इस तथ्य का पता सातवीं क्लास से लगाया जा सकता है। स्टूडेंट में स्किल्स पहचान कर तैयारी कराने के लिए कई कोचिंग संस्थान नेशनल लेवॅल पर परीक्षाएं आयोजित करते हैं। इसके माध्यम से स्टूडेंट का आईक्यू, साइंस और मैथ्स में पकड का आकलन किया जाता है।

इंट्री के लिए आदर्श समय

बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद ही आप आईआईटी प्रवेश परीक्षा देने के योग्य होते हैं, लेकिन इसकी परीक्षा इतनी कठिन होती है कि स्टूडेंट्स सातवीं से ही इसके बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। कई कोचिंग संस्थान इसकी तैयारी भी कराते हैं। इसकी बेहतर तैयारी के लिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता परीक्षा नेशनल टैलेंट सर्च एग्जामिनेशन की तैयारी कराते हैं। इस परीक्षा के माध्यम से स्टूडेंट्स की तैयारी और समझ काफी विकसित हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैसे तो स्टूडेंट्स को छठी क्लास से ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, लेकिन इस समय स्टूडेंट्स की अपेक्षा गार्जियन और टीचर को अधिक मेहनत करने की जरूरत है। इस समय स्टूडेंट्स की पढाई इस तरह की होनी चाहिए, जिससे वह किसी भी चीज को अलग तरीके से सोच सके। उदाहरण के लिए यदि मैथ्स का प्रश्न है, तो उसे सॉल्व करने के लिए फार्मूले को खोजना चाहिए। इस क्लास के स्टूडेंट की तैयारी का मुख्य मकसद आईआईटी-जेईई पर रखकर पूरा फोकस एनटीएसई पर रखना चाहिए। किसी भी प्रॉब्लम को एनालिटिकल तरीके से सोचने और प्रॉब्लम सॉल्विंग कैपिसिटी की ओर रुझान लाना इस समय काफी महत्वपूर्ण होता है।

आईआईटी का फाउंडेशन

यह आईआईटी-जेईई का फाउंडेशन है। इसमें नवीं-दसवीं की पढाई के साथ आईआईटी में प्रवेश की बारीकियों का ज्ञान कराना जरूरी होता है। स्टूडेंट को दसवीं और नवीं की एनसीईआरटी पुस्तकों से पीसीएम से संबंधित सवाल हल करने की विधियां बताई जाना जरूरी है। इस टेस्ट के माध्यम से स्टूडेंट्स के जुनून का पता चलता है। इसके साथ ही उसके सोचने का ढंग, प्रॉब्लम सॉल्विंग कैपिसिटी और क्रिएटिव सोच जानने की कोशिश की जाती है। इस क्लास के स्टूडेंट्स में इस तरह के गुण काफी डेवलप हो जाते हैं और वह अन्य स्टूडेंट्स से अलग दिखने लगते हैं। यह तभी संभव हो सकता है, जब तैयारी के लिए उचित रणनीति बनाई जाए।

आईआईटी का फाइनल राउंड

यह समय परीक्षार्थी के लिए सबसे क्रूशियल होता है, क्योंकि स्टूडेंट्स को एक साथ दो तरह की परीक्षा देनी पडती हैं। पहली और सबसे अहम परीक्षा बारहवीं बोर्ड की होती है, जिसमें कम से कम प्रथम श्रेणी से पास करने का प्रेशर होता है। इस परीक्षा में थोडी सी भी लापरवाही आपको आईआईटी परीक्षा देने से वंचित कर सकती है। वहीं उन्हें एक महीने के बाद आईआईटी की परीक्षा भी देनी पडती है। दोनों परीक्षाओं की अलग तैयारी संभव नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, बोर्ड और कम्पीटिशन के सिलेबस को मर्ज कर आईआईटी-जेईई की तैयारी बेस्ट स्ट्रेटेजी है। इससे स्टूडेंट को बोर्ड और कम्पीटिशन देने में प्रॉब्लम नहीं होगी। इस दौरान स्टूडेंट को एनसीईआरटी बुक की गहन स्टडी करनी चाहिए। इसके बाद आईआईटी के पिछले दस वषरें के प्रश्नों को सॉल्व करना चाहिए। सॉल्व करने के दौरान ही स्टूडेंट्स की प्रॉब्लम सॉल्विंग कैपिसिटी बढती है और पढने और सोचने का अलग नजरिया विकसित होता है।

हॉट इंजीनियरिंग सेक्टर…

ब्रांच का चयन महत्वपूर्ण होता है। ब्रांच चयन करते समय स्टूडेंट्स को विषय का ज्ञान एवं उससे संबंधित नौकरियों के अवसर पर जरूर ध्यान देना चाहिए। संस्थान देखकर ब्रांच बदलना उचित नहीं है…

कंप्यूटर साइंस

आज कंप्यूटर का जमाना है। कंप्यूटर की सहायता से आज जो कुछ हो रहा है, वह इंजीनियरों का ही तो कमाल है, जो इसके डिजाइन, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर पर बडी बारीकी से काम करते हैं और तब जाकर कहीं एक ऐसी प्रणाली बन पाती है, जिसके सहारे काम आसान हो जाते हैं।

इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स

इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट, मशीनरी, टेलिकम्युनिकेशन सिस्टम, रेडियो, टीवी इत्यादि के डिजाइन, निर्माण व चलाने में इनकी भूमिका होती है। इनके बिना ऐसा नहीं हो पाएगा कि इस क्षेत्र में बेहतर से बेहतर उपकरण बनाए जाएं। यदि आपकी रुचि इस क्षेत्र में है, तो आप वरीयता दे सकते हैं।

मैकेनिकल

आज जितनी भी मशीनरियां हैं और जिनके बिना अब काम करना कठिन लगने लगता है, वे सब मैकेनिकल इंजीनियर्स की डिजाइन क्षमता, निर्माण, प्रचालन व रख-रखाव संबंधी कौशल की बदौलत हैं। यही कारण है कि इनकी मांग हर जगह है।

सिविल

सिविल इंजीनियरिंग की ही बदौलत हमारी सडकें हैं, जिन पर तेजी से चलते हुए हम विकास कर रहे हैं। इमारतें हैं, जिनमें रहने से लेकर कार्यालयों का मामला जुडा है। पुल हैं जिनके बिना नदी-नाले-पहाड-समंदर कुछ भी पार करना असंभव होता। कहने का आशय यह है कि इस ट्रेड से डिग्री लेने के बाद नौकरी की कमी नहीं रहती है।

केमिकल

किसके मेल से क्या बन जाएगा, यह तो केमिकल इंजीनियर ही बता सकता है। दवाइयां, फूड प्रोसेसिंग, पेंट, टेक्सटाइल, खाद, सौन्दर्य प्रसाधन, साबुन, तेल जैसे कायरें से जुडी कंपनियों में इनकी जरूरत होती है, ताकि वे शोध से रसायनों को उपयोगी व गैर-हानिकारक बना सकें।

पेट्रोलियम

तेल भंडारों की खोज करना, तेल को निकालना, रिफाइनरी तक सुरक्षित पहुंचाना इस शाखा में आता है।

ऑटोमोबाइल

छोटी कार नैनो की बढती लोकप्रियता और भारत में मध्यवर्गीय लोगों के विशाल बाजार को देखते हुए कई ऑटोमोबाइल कंपनियों ने भी छोटी कार बनाने की घोषणा की है। इससे ऑटोमोबाइल इंजीनियरों की मांग देश-विदेश में काफी बढ गई हैं। यदि आप टेक्निकल क्षेत्र में जॉब चाहते हैं, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनकर करियर को एक नई दिशा दे सकते हैं।

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