सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प्रदर्शनकारी छात्रों पर पुलिस कार्रवाई के मामले में हाईकोर्ट जाएं

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस कार्रवाई के खिलाफ संबंधित हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि इलाका बहुत बड़ा है। इसलिए कोई एक कोर्ट के लिए सभी साक्ष्यों को देख पाना मुश्किल है। इसलिए आप हाईकोर्ट जाइए। सुनवाई के दौरान दिल्ली और यूपी पुलिस के कई आला अधिकारी सुप्रीम कोर्ट में मौजूद थे। दिल्ली पुलिस की ओर से प्रवीर रंजन, देवेश श्रीवास्तव और अलीगढ़ में हुई हिंसा के दौरान घायल हुए प्रीतेन्दर भी कोर्ट में मौजूद थे।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील निजाम पाशा ने कहा कि देशभर में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है, जो बढ़ता ही जा रहा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देशभर में इस कानून के विरोध में छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं। छात्र शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे। हिंसा करने वाले छात्र नहीं थे। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि तब बस में किसने आग लगाई?निजाम पाशा ने कहा कि इसकी पुलिस को जांच करनी चाहिए। ये भी पता लगाना चाहिए कि हिंसा किसने की। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि बसों में प्रदर्शनकारियों ने आग लगाई। इसकी तस्वीरें भी कई जगह दिखाई गई हैं। तब निजाम पाशा ने कहा कि सोशल मीडिया में ऐसे भी वीडियो आ रहे हैं कि पुलिस ने वाहनों को तोड़ा और उनमें आग लगाई।

ये जांच का विषय है।चीफ जस्टिस ने कहा कि अलग अलग-अलग जगहों पर हुई घटनाओं में विभिन्न अथॉरिटी ने अलग-अलग कदम उठाए हैं। सुनवाई के दौरान वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पुलिस ने छात्रों को बेरहमी से पीटने के साथ साथ उन पर एफआईआर भी दर्ज की है। उनके करियर का सवाल है। उन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। इंदिरा जयसिंह ने कहा कि छात्रों पर दर्ज केस में उनकी गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। यह स्थापित कानून है कि यूनिवर्सिटी प्राइवेट प्रॉपर्टी होती है। वहां पुलिस को छात्रों की पिटाई करने का अधिकार नहीं था। पुलिस वहां पर केवल वाइस चांसलर की अनुमति से ही जा सकती थी। पुलिस ने छात्रों को बेरहमी से पीटा। कई छात्र गंभीर रूप से घायल हुए हैं।

उन्हें तुरंत उपचार की नि:शुल्क सुविधा मिलनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस मसले में पक्षपाती नहीं हैं लेकिन जब कोई कानून तोड़ता है तो पुलिस क्या करेगी? कोई पत्थर मार रहा है, बस जला रहा है। हम पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से कैसे रोक सकते हैं।सुनवाई के दौरान वकील कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि जामिया की घटना इसलिए हुई कि स्टूडेंट्स ने संसद मार्च किया, जिसे रोकने के लिए पुलिस ने बुरी तरह लाठीचार्ज किया, इसलिए कुछ ने पत्थर उठाया होगा। कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि जामिया ही नहीं, यूपी पुलिस ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी बर्बरतापूर्ण छात्रों की पिटाई की है।

वहां 50 के करीब छात्र घायल हैं। कई छात्र आईसीयू में हैं। कोर्ट को एक रिटायर्ड जज की कमेटी गठित कर उसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भेज कर जांच रिपोर्ट तलब करनी चाहिए।सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि छात्रों के हमले में 31 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। किसी भी छात्र की कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। यहां पर यूपी पुलिस और दिल्ली पुलिस दोनों की तरफ से आला अधिकारी मौजूद हैं। आप इनसे पूछ सकते हैं। दिल्ली पुलिस ने कहा कि जामिया में केवल दो छात्र घायल हुए हैं। तब इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 100 से अधिक छात्र घायल हुए हैं।

इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पुलिस के लाठीचार्ज में घायल छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पुलिस कह रही है कि किसी को गिरफ्तार नहीं किया। पुलिस गलत तथ्य दे रही है। तब तुषार मेहता ने कहा कि ये रामलीला मैदान नहीं है और न ही पोलिटिकल स्टेज। ये कोर्ट है। यहां तथ्य चलते हैं। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल देने से इनकार किया और याचिकाकर्ताओं को सम्बंधित हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया।

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