कहानी : इंवेस्टमेंट

-प्रियंका कौशल-

अगर तुम इसी तरह तैयार होते रहे, तो आज पक्का मेरी ट्रेन छूट जाएगी। सुधा ने अमित से झल्लाते हुए कहा। अच्छा ही तो है कि तुम्हारी ट्रेन छूट जाए। दो दिन तुम्हारे बगैर रहना तो नहीं पडेगा। अमित ने प्रतिउत्तर दिया। ओफ्फो, आज तुम्हें और बच्चों को क्या हो गया है। बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाकर आई हूं और अब तुम..अरे मैं तो मजाक कर रहा था। आओ बैठो गाड़ी में, नहीं तो सचमुच तुम्हारी ट्रेन छूट जाएगी। अमित ने सुधा की तरफ प्यार से देखा। दोनों स्टेशन पहुंचे। गाड़ी आ चुकी थी, उद्घोषक ट्रेन की जानकारी दे रहा था। सुधा जल्दी-जल्दी अपने कोच में पहुंचकर बैठ गई। अमित को कुछ जरूरी निर्देश ट्रेन में बैठे-बैठे ही दिए मसलन खाना समय पर खा लेना। बच्चों के साथ देर तक मस्ती मत करना वगैरह। अमित मुस्कुराकर सुनते रहे और फिर धीरे-धीरे ट्रेन सरकने लगी।

सुधा एक मल्टीनेशनल बैंक में बड़े पद पर है। उसके पति अमित भी बैंकर हैं। दो प्यारे से बच्चे और खुशियों से भरा परिवार। आज सुधा भोपाल जा रही है। बैंक की उच्चस्तरीय बैठक है। ट्रेन में बैठते से ही ना जाने क्यों मन अतीत की गलियों में तफरीह करने लगता है। सुधा भी बैठे-बैठे पुरानी यादों में खो गई। अमित और उसकी मुलाकात ऐसे ही एक फंक्शन में हुई थी। पहले दोस्ती हुई फिर प्यार। दोनों के परिवारों ने उन्हें विवाह की सहर्ष स्वीकृति दे दी थी। दोनों ही पक्ष के लोग इस संबंध से खुश थे। वाकई सुधा ने अमित को जीवनसाथी के रूप में चुनकर सही निर्णय लिया था। खुशनुमा अतीत में खोई सुधा एकदम से वर्तमान में आ गई। ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी थी। लोग गाड़ी में चढ़-उतर रहे थे। सुधा के सामने की खाली बर्थ पर भी तीन पुरुष आकर बैठ गए। वे किसी कंपनी के एक्युक्यूटिव टाइप लग रहे थे। तीनों बतियाते हुए गाड़ी में चढ़े और बैठने के बाद भी उनकी गप्प चलती रही। उनमें से एक की आवाज सुधा को जानी-पहचानी सी लगी। उसने देखा ये तो शेखर है। बेतरतीब से सफेदी ओढे बाल, झुलसा हुआ चेहरा, साधारण वेषभूषा। उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानों सारे जमाने का दुख उसके ही हिस्से में हो। शेखर को देखकर सुधा थोड़ा अचकचा सी गई। लेकिन शेखर ने उसे देखकर कोई रिएक्शन नहीं दिया। क्या वो उसे पहचान नहीं पा रहा। नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। वो मुझे कैसे भूल सकता है। शायद मुझे देखकर झेंप गया है और अनजान बनने की कोशिश कर रहा है। सुधा ने सोचा।

फिर एक बार सुधा का मन अतीत की तरफ भागने लगा। किसी ऐसे अध्याय की तरफ, जिसे वो बरसों पहले भूला चुकी है। जिसे वो कभी याद भी नहीं करना चाहती। लेकिन यकायक एक-एक दृश्य उसकी आंखों के सामने घूमने लगे। सुधा की शेखर से मुलाकात उसकी एक सहेली निशा के घर पर हुई थी। सुधा एक दिन निशा के घर पहुंची तो उसके भाई का एक दोस्त भी वहां मौजूद था, नाम था शेखर। पता नहीं चला कब सुधा और शेखर भी अच्छे दोस्त बन गए। एक दिन शेखर ने निशा के सामने ही सुधा से अपने प्यार का इजहार कर दिया। फिर क्या था, सुधा शेखर के प्यार में ऐसे डूबी की समय का पता ना चला। सुधा जो कहती, शेखर उसे करके ही दम लेता। निशा का ग्रेज्युएशन पूरा हो गया। उसे एक बैंक में नौकरी भी मिल गई। अब शेखर का असली चेहरा सामने आने लगा। अपनी पहली सैलरी पाने के बाद उस दिन सुधा कितनी उत्साहित थी। कितने प्लान बनाए थे उसने। मम्मी के लिए साड़ी, पापा के लिए नया चश्मा, भाई-बहनों के लिए ढेर सारी शॉपिंग। लेकिन शेखर ने उसे एक पाई नहीं खर्च करने दी। सुधा की सैलरी पर वो ऐसे हक जमाता, जैसे सुधा उसकी गुलाम हो। सुधा को अपने घरवालों पर भी एक रुपया खर्च नहीं करने देता। जब सुधा ने इसका प्रतिरोध किया तो असल बात सामने आ गई। पहले तो तुम मुझपर खुद के पैसे खर्च करने में भी नहीं हिचकते थे, लेकिन अब मुझे मेरी कमाई भी खर्च नहीं करने दे रहे हो, क्यों? सुधा ने प्रश्न किया। वो तो मैं तुम पर इंवेस्ट कर रहा था, अब तो मेरे इंवेस्टमेंट का फल मिलना शुरु हुआ है और तुम उसे व्यर्थ गंवाने के सपने देख रही हो। शेखर का जबाव सुनकर सुधा सन्न रह गई। अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है, और तुम…। सुधा अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाई। शेखर चिल्लाकर बोला, सुनो सुधा..शादी तो तुम्हें मुझसे ही करनी होगी। मैंने इतने साल तुम्हारे साथ यूं ही नहीं जाया किए हैं। मैंने तुम्हारी तरक्की के लिए अपना समय और पैसा भी खर्च किया है। वो प्यार नहीं, निवेश था। अब जीवनभर तुम उसका रिटर्न तो देना ही होगा। और हां..मुझसे पीछा छुडाने के बारे में सोचना भी मत। मेरे पास बहुत कुछ है, जो तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर सकता है, समझी।

सुधा के सारे सपने एक झटके में बिखर गए। जिस शेखर को वो इतना प्यार करती थी, उसे देवतातुल्य समझने लगी थी। उसका असली चेहरा ये है। खैर, निशा ने भी तय कर लिया कि वो किसी हालत में शेखर के सामने हथियार नहीं डालेगी। जो होगा, देखा जाएगा। बस उसने उससे दूरी बनाना शुरु कर दिया। शेखर बहुत छटपटाया, निशा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी की। लेकिन सुधा डरी नहीं। अंततः शेखऱ भी समझ गया कि “मुर्गी” हाथ से निकल गई है। शेखर से पीछा छुडाने के बाद सुधा ने सोचा कि काश लड़कियां समझदार बन जाएं। शादी-ब्याह के मामले में घर के बड़ों की सलाह जरूर लें। कभी-कभी हमारा मन हमें उन रास्तों की तरफ ले जाने लगता है, जो शुरु में सुखदायी लगते हैं, लेकिन उनका अंत दुखद हो सकता है। लेकिन ये बात वो ही समझ सकते हैं, जिन्होंने इस पीड़ा को भोगा हो। नहीं तो आजकल की लड़कियां आधुनिकता के नाम पर अपना शोषण ही ज्यादा करवा रही हैं। उनका सारे बंधन तोड़ देने का एटीट्यूड कभी-कभी उन्हें बड़े संकट में धकेल देता है। बिलकुल हमें अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी मिलनी चाहिए, लेकिन जब हम परिपक्व हो जाएं। बाली उमर का प्यार कभी-कभी धोखा भी हो सकता है।

अरे किसी ने ट्रेन की चेन खींच दी है। ट्रेन में हो रहे शोर से सुधा वर्तमान में लौट आई। देखा तो शेखर जा चुका था। शायद उसी ने ट्रेन की चेन खींच दी थी।

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