धनवार सीट पर राज्य की नजर, बाबूलाल मरांडी लड़ रहे चुनाव

गिरिडीह । झारखंड के गिरिडीह की राजधनवार विधानसभा सीट पर पूरे झारखंड की नजर है। देश के मानचित्र में वर्ष 2000 में झारखंड का उदय हुआ, तो भाजपा कुनबे से पहले मुख्यमंत्री बनने का गौरव बाबूलाल मंराडी को हासिल हुआ था। 23 महीनों तक राज्य की कमान मरांडी के हाथ में रही।

इस दौरान कुछ अपवादों को छोड़कर राज्य की पहली सरकार ने प्रदेश के विकास की बुनियाद का मजबूत खाका खींचा, लेकिन मरांडी ने 2006 में भाजपा छोड़कर अपनी नई पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) का गठन  किया  और 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन कर चुनाव लड़ा। मंराडी के खाते 11 सीटें आयी। 2014 के चुनाव में 73 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किये और आठ सीटों पर जीत हुई। खुद मंराडी को गिरिडीह और धनवार में शर्मनाक पराजय का सामना करना पड़ा। लेकिन 2014 के चुनाव में पार्टी को लगभग दस फीसद  ( 9. 99  ) वोट मिले। माना जा रहा है कि इन्ही 10 फीसदी मतों को आधार मानकर इस दफे मंराड़ी अपने दम पर सभी 81 सीर्टों पर चुनाव लड़ रहे है। मरांडी खुद दूसरी बार धनवार सीट से चुनाव समर में है।

2014 के चुनाव में धनवार में मंराडी के खाते में 39,922 मत गये थे। लेकिन इसबार पूरे दम खम से चुनाव मैदान में डटे हैं। उन्हे भरोसा है कि धनवार की जनता उनके खोये जनाधार को वापस करने का आशीर्वाद देगी। धनवार की जनता मरांडी को विधानसभा भेजेगी या नहीं, इसका खुलासा 23 दिसम्बर को मतों की गिनती से स्पष्ट होगा। किन्तु धनवार सीट पर इसलिए सियासत की नजर है क्योंकि अगर राज्यभर में जैसा जानकारों का अनुमान है कि सक्रिय दलों के बीच वोटों का बंटवारा हुआ तो आजसू और झाविमो जैसे दलों की सरकार गठन में महती भूमिका  होगी।

धनवार के चुनावी आकड़े बताते हैं कि शुरु से ही यहां के मतदाता काफी जागरूक  रहे है। 1952 से लेकर 2014 तक के चुनाव में 10 बार अगड़ी जाति के नेता जीतते रहे हैं। शेष चार बार अन्य की जीत हुई है और शायद इन्ही कारणों से कांग्रेस की तरह भाजपा आलाकमान भी धनवार सीट को अगड़ी जाति की सीट के रूप में मानती रही  है। जबकि क्षेत्र के जानकारों की माने तो समय बदला और इवीएम से चुनाव होने के  के बाद तो पुराने मिथक लगातार टूटते रहे है। भाजपा समर्थक भी पिछ्ले दो चुनाव से पिछड़ी जाति के नेता को टिकट देने की मांग करते रहे हैं। लेकिन भाजपा ने एक बार फिर लक्ष्मण प्रसाद सिंह को टिकट दिया है। भाकपा माले से निर्वतमान विधायक राजकुमार यादव चुनाव मैदान में है। यूपीए गठबंधन से झामुमो के पूर्व विधायक निजामुद्दीन अंसारी और झाविमो से खुद बाबूलाल मरांडी सहित कुल 14 उम्मीदवार चुनाव समर में हैं।.

इनमें एआइएमआईएम, सपा सहित निर्दलियों में अनूप सोंथालिया भी शामिल हैं, जो इलाके के प्रख्यात समाजसेवी रामस्वरूप सौंथालिया के पुत्र है।  सभी के अपने अपने जीत के दावे है। लेकिन जानकारों  की माने तो दरअसल धनवार विधानसभा क्षेत्र मुख्यतः चार भागों में बटा है। गांवा, तिसरी, धनवार बाजार और धनवार ग्रामीण। इस बार जो माहौल नजर आ रहा है वह पिछले 2014 चुनाव जैसा ही है। गांवा में भाकपा माले तिसरी में झाविमो धनवार बाजार और धनवार ग्रामीण में भाजपा, झामुमो और निर्दलीय अनूप सौंथालिया की चर्चा सर्वाधिक है।

 चुनावी मुकाबले की चर्चा पर जानकारो का मानना है कि झाविमो, झामुमो, भाजपा, भाकपा माले और निर्दलीय अनूप सौंथालिया कुल पांच उम्मीदवारों में से तीन के बीच  होना तय है। ये तीन कौन होगे, इसका खुलासा भी वोटों की गिनती से होगा। यहां तीसरे चरण में 12 दिसम्बर को मतदान होना है। पूरे विधानसभा क्षेत्र में 69 पंचायतो में कुल 03 लाख 75 हजार 7519 मतदाता हैं। जिसके तहत गांवा में 17 पंचायत, तिसरी में 13 पंचायत शेष धनवार सदर और ग्रामीण में 39 पंचायतें शामिल है।

विगत तीन चुनाव में  धनवार विधानसमा के चुनावी आंकड़े

2014 विधानसभा चुनाव

विजयी राजकुमार यादव (भाकपा माले) 50063

रनर बाबूलाल मंराडी  (झाविमो) 39922

लक्ष्मण प्रसाद सिंह  (भाजपा) 31659

2009 विधानसभा चुनाव

विजयी निजामुद्धीन अंसारी  (झाविमो)  50392

रनर राजकुमार यादव (भाकपा माले) 45419

रवीन्द्र कुमार राय (भाजपा)  27290

विधानसभा चुनाव 2005 

विजयी रवीन्द्र कुमार राय  (भाजपा) 42357

रनर राजकुमार यादव (भाकपा माले) 39023

निजामुद्दीन अंसारी (झामुमो) 38754

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