(व्यंग्य) : सुन बे अल्पजीवी प्याज

-अशोक गौतम-

एक हैं लोकतंत्र के नव्वाब/कल सरकारी गोदाम से/अंधेरे में कानून की आंख बचा चुराकर लाए दो किलो सड़ा स्वदेशी प्याज! नव्वाब होकर सबको खरीदा बता उसे डाइनिंग टेबल पर सजाए/गुलाब जामुन, कलाकंद पतीसा, लड्डू, पेड़े डस्टबिन गिराए/प्याज की रखवाली को जैड सुरक्षा कर्मी मंगवाए/उस वक्त नव्वाब का डाइनिंग टेबल इंद्र का डाइनिंग टेबल लग रहा था। डाइनिंग टेबल पर प्याज सजते ही/उनकी मायूस अप्सराएं सुंदर बनीं/मोहल्ले में फैली चोरे प्याज की बदबू घनी। विदेशी प्याज/अजीब दुर्गंध में बसी सुगंध/प्याज की बास प्याज हीन पूरे मोहल्ले में फैली मंद-मंद/चहकती दाल/मचलता साग/सलाद की प्लेट प्याज को देख लगी गाने एक से बढ़कर एक राग। आया पड़ोसी/देखा नव्वाब साहब के डाइनिंग टेबुल पर वायसराय सा अकड़ा चुराकर लाया प्याज/तो खिला गुलाब सा सरकारी गोदाम से चुराकर लाया प्याज/पड़ोसी पर गजब का पड़ा उस वक्त उसका रौब औ दाब/कि तभी कान की खाज खुरकते सिर झुकाए प्याज के सामने सिर झुका बोला मोती चूर का लड्डू/अबेए सुन बे अल्पजीवी प्याज! भूल मत जो पाए सरकार की गलती से ये रेट, खुशबू ए रंग ओ ताज! आखिर कब तक डालेगा तू जनता के मुहं में तेजाब/चूसा किसान का तूने अपशिष्ट/कल का गंगू तेली आज चिड़ा रहा दिखा अपनी प्राइस लिस्ट! कहां-कहां तू फेंका नहीं गया सरेआम/आज कर रखी तूने सड़क से लेकर संसद परेशान/बड़ा चौड़ा होकर तू आज फिर रहा/कल तक तू सड़ता था/क्या हुआ जो आज राजा तक तुझे देख सड़ रहा/मचल मत जो तेरे बिना औरतों ने किचन जाना छोड़ दिया लाला/गरीबों को छोड़ जो तू आज अमीरों का बन गया साला। ये बाजार है प्याज! यहां देर नहीं लगती उतरते रेट का अफारा। तेरी क्या हस्ती है/अपने बीते कल को याद कर जरा सोच तू/कुल मिलाकर दुर्गंध से ही भरा है पोच तू/तेरे रेट जो गिरे अभी/मेरा मुंह चिड़ाने लायक न रहेगा फिर कभी। स्टॉकिस्ट करते रहे मजे से तेरी जमाखोरी/सरकार जिनके आगे सदा खड़ी रहे कर जोड़ी। महंगाई में त्यागा है उन्होंने प्याज लहसुन/देख उनकी तरह मैं तुझे भी त्याग दूंगा, और फिर बन जाऊंगा कोई मंत्री। जब भी सधा है सुन ध्यान से/पेट रोटी से सधा है/ऐसे में जो तेरे नखरे उठाए/आदमी होकर भी वह निरा गधा है। ले, हो गया मैं और वैष्णव/अब मन जितना करे उतना इतरा/मैं दो सौ के पार हो गया! अपने दाम के तू चाहे जितने ढोल बजा। ले, छोड़ दिया तुझको तड़के में पाना/ले, छोड़ दिया तुझको सलाद में सजाना/ले, छोड़ दिया गरीब ने तुझे रोटी के साथ खाना/बोल अब किसको चिड़ाएगा तू लल्ला! जो सिर बैठाते, औंधे गिराते/हम ही हैं वो मल्लाह! देखना लेना कल तुझे पूछने वाला कोई न होगा/फिर कैसे सहेगा तू अपने अहंकार का ये बोझा/घूमता तू आज जो यों गर्दन अकड़ा/पर मान ले तू नहीं, उपभोक्ता ही है बड़ा। अरे पगले! यो रुलाएगा तू कब तक/देख तो, मेरी बीवी घूमी प्यार से/मुस्कुराती बोली बाल से/देख रे दाल संग भर-भर के छाछ/हम खांएगे मजे से, पर खाएंगे तो बस न प्याज! ले तेरा सारा रौब औ दाब रफ्फू चक्कर/अब तू फटे बोरे में सड़ता रह सिमटकर। तेरे बिना भी हम मस्त रहेंगे और आबाद! तू तो है बस जीभ का स्वाद/तुझे नहीं खाने से क्या मैं मर जाऊंगा/या कि हो जाऊंगा अमर/झूठे संतों की तरह/जा हम नहीं अब तेरे फॉलोवर। मसाले चटखारों के लिए अभी और भी सस्ते हैं! चल बे प्याज! तू क्या रुलाएगा हमें/हम तो पानी के साथ रोटी खाकर भी हंसते हैं।

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