(व्यंग्य) पानी की एक बूढ़ी टंकी

-विजी श्रीवास्तव-

मैं, शहर के एक पुराने महल्ले की बूढ़ी हो चुकी पानी की टंकी हूं। मेरी उम्र की एक टंकी कुछ ही दिन गुजरे, गिर गई थी, तबसे मुझे भी उम्र दराज घोषित कर, तोड़ने के लिये छोड़ दिया गया है। जमाना देख लिया, अब बहुत दिनों से चला-चली के इन्तजार में खड़ी हूं। वैसे, जैसे फांसी की सजा पाया कोई कैदी, सालों से दिन गिन रहा हो कि कोई जल्लाद अब तो आये। लेकिन, इतना तो मुझे भी पता है कि हिन्दुस्तान में किसिम-किसिम के जल्लाद भले ही इफराद हों, पर सब अपना फर्ज मौके-मौके ही अदा करते हैं। चाहें तो एन्काउन्टर स्पेस्अिलिस्ट यह काम बड़े मजे से कर लें। लेकिन वो जानते हैं कि इससे न तो उन्हें प्रमोशन मिलेगा और न ही इन्क्रीमेंट। अब खाली, हाथों की खुजली मिटाने के लिये कौन सुबह-सुबह जल्दी उठे।

क्योंकि फांसी देने का रिवाज भी तो बड़े भिन्सारे ही किया जाता है। यही बात है कि मारने वालों की क्राईसिस से कितने ही बेचारे, जैल के अंदर मर-खप जाते हैं पर उनकी पारी ही नहीं आ पाती। सरकार भी यह अच्छी तरह समझती है, इसलिये एप्लीकेशन लगाने पर बड़े आराम से, फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल देती है।

अब आप यह न कहना कि-देखो, है तो सड़ी सी पानी की टंकी पर बातें सुनलो-दुनियां जहान की। का करें भैया, बुर्जुगों की जाति, जिन्दगी भर घौंटत रेहत हैं और आखिरी टेम में बकत रेहत हैं।

ओव्हर हेड टैंक हूं न, इसलिये आदमियों की नीचता मुझे आसानी से दिखाई पड़ जाती है। जो लोग कहते हैं, अब मेरी कोई उपयोगिता नहीं है, उन्हें मैं क्या बताऊं-मेरे ऐन नीचे ही, सुबह से पखाना करने वालों की भीड़, पूरी शानो-शौकत से आ बैठती है। त्रेता युग से प्रेरित कुछ के लिये तो बीड़ी की आड़ ही काफी होती है। दोपहर में पेशाब घर और रात में अभिसार परिसर के रूप में मेरा उपयोग होता है। शराबी, सटोरिये, मवेशी और मवेशी किस्म के लोगों के लिये मैं सस्ती, सुन्दर, टिकाऊ आश्रय स्थली हूं। वे यहां आकर मौक्ष प्राप्त करने का सा अनुभव करते हैं। मेरी दोस्ती, आस-पास की ऊंची हवैली के रोशनदानों से भी है। वे मुझे अंदर की पूरी बातें बता देते हैं। पर ऊंचे समझे जाने वाले कई लोगों का स्तर क्या बताऊं, मैं तो सोच कर ही जमीन में गड़ी जाती हूं।

मैं, यहां अकेली खड़ी हूं, पर मेरे सी कितनी और भी शहर में हैं। चलने से मोहताज हूं न इसलिये कइयों को यहां से खड़े-खड़े ही देख लेती हूं। अच्छा ही तो है, शहर के लोग अपनों से भी नजदीकियां कहां पसन्द करते हैं।

एक बात बताऊं, कभी-कभी मुझे लगता है कि आप सबकी तरह मेरा अपना भी एक परिवार है। अब इसे परिवार कहो या कुटुम्ब बोल दो। यह आप जैसे लोगों के आशीर्वाद से ही हुआ है। लेकिन हॉ, इससे मेरे चरित्र पर उॅगली मत उठा देना। पहले पूरी बात सुनलो। मुझे जब गढ़ा गया, तो इंजीनियर साहब ने मेरे में से हिस्सा लेकर अपने घर भी एक ऊंची पानी की टंकी बनवाली। उनके घर पानी की टंकी जिस सब इंजीनियर ने बनवाई, उसके अंश से सब इंजीनियर के नये घर में अंडर ग्राउंड टेंक बन गया। यह काम जिस टाइम कीपर की देख-रेख में हुआ, उसने अपने घर नल लगवा लिया। नल लगवाने का जिम्मा जिस बाबू को दिया गया था, वह घर लौटते समय पैसे बचाकर एक बाल्टी ही खरीद ले गया। इस प्रकार जाने-अनजाने मुझे भी वंश परम्परा का हिस्सा बनना पड़ा।

इसी कड़ी में, अपने कन्स्ट्रक्शन के समय की एक बात मुझे आज भी अच्छी तरह याद है। मेरे उदघाट्न के पहले मेरी जांच के लिये आये एक इंजीनियर ने मुझे देखकर कहा था कि- इतनी बड़ी क्षमता की टंकी बनाई है, यह इतने पानी का लोड झेल ही नहीं सकेगी। मुझे बनवाने वाले ने उसे हंसते हुए जवाब दिया था- आप भी कैसी बातें करते हो, इतने पानी का लोड, उसे दे भी कौन रहा है? क्या शहर की टंकियां कभी पूरी भरी जाती हैं? तभी मेरे वार्ड के पार्षद ने उसमें जोड़ा था- यह जो केपॉसिटी लिखी जाती है, यह तो जनता की प्यास को दर्शाता है। और भई, अगर जनता की प्यास बुझ गई, तो हमारा क्या होगा?आखिर हम लोग जनता की मृगतृष्णा पर ही तो जिन्दा हैं न। इस पर सबने जोरदार ठहाका लगाया था। मैं उनकी बातों से पानी-पानी हो रही थी पर उनके ईमान का पानी बिल्कुल सूखा हुआ था।

बाद में उनकी बात, बिल्कुल सच निकली। मैं कमर से ऊपर कभी नहीं भर पाई। मेरे अंदर रहने वाले चमगादड़, छिपकली, कबूतर, मकड़ियों, पीपल के पेड़ और भूतों को कभी डर नहीं लगा कि वे डूब जायेंगे। उन्हें आदमियों की समझ और करतूतों पर आज भी पूरा भरोसा है। पर मैं, अपना वजूद अब तक कायम रहने के लिये समझ नहीं पा रही हूं कि उन्हें किस बात पर धन्यवाद दूॅ।

मेरे आस-पास तमाम झुग्गियां बन चुकी हैं। मुझे डर लगता है कि कहीं मैं, खुद को सम्हाल नहीं पाई तो क्या होगा? लेकिन ये गरीब लोग, मौत से तब तक नहीं डरते, जब तक कि मौत उनके दरवाजे तक न आ जाये। उनसे ऊपर के लोग सोचते हैं, गरीब ही तो हैं, मर भी गये तो क्या होगा। उनसे ऊपर के लोग सोचते हैं, मरते हैं साले तो मुआवजा भी तो मिल जाता है। उनसे भी ऊपर के लोग सोचते हैं कि कभी हमारी बाई इस टंकी के नीचे आकर मर गई तो झाड़ू-बुहारी, बरतन कौन करेगा?

ये गरीब बड़े काम की चीज होते हैं। मल्टी पर्पज टूल्स। नेताओं के लिये वोट बैंक, काम वालों के लिये आराम का साधन और पान-बीड़ी-शराब के अलावा धरम-करम की दूकानों के सबसे बड़े उपभोक्ता। ये न हों तो कितनी ही दूकानों पर ताले पड़ जायें। इनमें से कुछ ने तो मेरे बनते ही यहां डेरा जमा लिया था। वे आज भी पूरी शान से अपनी गरीबी यहां जी रहे हैं। भारत में पुरानी कहावत है-जहां आदमी का दाना-पानी लिखा हो, वहां उसे जाना पड़ता है। मेरा क्या है, मैं तो उन्हें कई साल से थोड़ा बहुत पानी ही दे सकी हूं। दाने का गुन्ताड़ा वे खुद कैसे भी लगा लेते हैं। मजदूरी करने जाती बुधिया बाई की छोटी लड़की, अपने छोटे से भाई को रोज यहां ले आती है। वह टाट के बोरे का झूला मेरी सीढ़ी से बांधकर, उसमें अपने भाई को सुलाने के लिये अजीब-अजीब से गाने गाती है जो मुझे बड़ा अच्छा लगता है। वो बचपन ही क्या, जो अभी से डराने लगे। कल की चिन्ता उनकी मॉ-बाप ने भी कब की थी, जो वो करें। देश भर में सीढ़ियों पर झूलती कई पीढ़ियां आपको मिल जायेंगी। वे सोचते भी नहीं कि सीढ़ियां चढ़ने के लिये होती हैं और उनके बच्चों को भी इससे ऊपर चढ़ना चाहिये। कई बार तो बच्चा सम्हालने लायक होते ही वे उसके हाथों में दूसरा बच्चा सौंप देते हैं। मैं, सूख चुकी हूं पर इन बातां से भर उठती हूं। उधर मानुष मन है कि तनिक पसीजता नहीं।

आज मैं टूटन के दौर से गुजर रही हूं। मैं आपकी उतनी ही सेवा कर सकी, जितनी मुझसे करवाई गई। जितना मुझे मिला अच्छा-गंदा, मटमैला जैसा भी था, मैंने बिना अपने पास रखे सब बांट दिया। मुझे बोतल के मंहगे जल से कभी जलन नहीं हुई। वो बित्ते भर की बोतल से मेरा क्या मुकाबला हो सकता था। मेरी अपनी सीमाएं थीं और उसकी अपनी।

कीचड़ और केंचुए भी मैंने आपके नलों में पहुॅचाए, ये घटते जल स्तर का संकेत थे। जाने आपने इसे क्या समझा। नर्मदा का जल अब आप तक पहुॅचने को है, बस इसकी इज्जत करना और बेकार मत बहाना नहीं तो वह भी रूठ जायेगी।

इस बूढ़ी जान की एक आखीरी इच्छा भी चाहो तो सुनलो-मैं तो बेजान हूं, डहा दोगे, भुला दोगे तो भी न रोऊंगी। लेकिन, आपके घर की बूढ़ी टंकियां सूख कर भी लबालब भरी हैं, उनको कभी छलकने न देना। बच्चों ने भले ही बेकार घोषित कर दिया हो, प्लीज उन्हें किसी भी तरह टूटने मत देना!

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