जरूरतमंदों की मदद करना सिखाता है रमजान

रमजान का पवित्र महीना शुरू होने के साथ ही मुस्लिम बहुल इलाकों में खुदा की इबादतों का रुहानी दौर शवाब पर है। रमजान की आमद से शहर से लेकर देहात तक के सभी मुस्लिम इलाकों में पुरनुर रुहानी मंजर जर्रे-जर्रे में दिख रहा है। मस्जिदों में नमाज अता करने वाले नमाजियों की तादाद बढ़ गयी है। कहा जा सकता है इस्लाम धर्म में इबादत का मूल उद्देश्य मनुष्य के जीवन को भक्तिमय बनाना और आदर्श जीवन का मार्ग दिखाना है। इंसान के शरीर और आत्मा को पवित्र बनाती है। रोजा इस्लाम की अनिवार्य इबादतों में से एक महत्वपूर्ण इबादत है। रमजान का महीना धैर्य, सहानुभूति और संवेदना का महीना है। रोजा मनुष्य को बुरे कर्मों से रोकने के लिए मानो एक ढाल का काम करता है।

इस संदर्भ में हजरत मोहम्मद (स.) ने कहा है रोजा एक ढाल है, अर्थात जीवन संघर्ष में एक रक्षक है।्य अल्लाह के नबी (स.) ने यह भी कहा कि पांच ऐसी चीजें हैं, जिसके कारण तुम्हारा रोजा अर्थहीन हो जाता है। इनमें झूठ, गीबत (निंदा), चुगली करना, झूठी कसम खाना और वासना की नजर से पराई स्त्री को देखना शामिल है। देखा जाय तो इस्लाम में रमजान का महीना दुनियाभर के मुसलमानों के लिए अदब और अकीदत का महीना है। यह महीना कई मायने में इंसान को बेहतर बनाने और उसमे खामियों को कम करके खूबियां बढ़ाने का एक बड़ा जरिया है। इस पाक माह में कोई भी रोजेदार छोटी-छोटी बुराइयों से बचने की कोशिश करता है और कमजोर लोगों की बेहतरी के लिए कोशिश करता है। इफ्तार के जरिए भाईचारे को बढ़ावा दिया जाता है तो जकात के जरिए लोग जरूरतमंदों की मदद करते हैं।

मजहबी दायरे से बाहर देखें तो रमजान इंसान को बेहतर बनाने का बड़ा जरिया है। इस माह में लोग अच्छाई की ओर बढने और बुराई से दूर भागने की कोशिश करते हैं। यही कोशिश उन्हें बतौर इंसार बेहतर बनाती है। आमतौर पर लोग इस माह में ईद से पहले जकात निकालते हैं। इससे जरूरतमंदों को मदद मिलती है। रमजान में कोशिश रहती है कि लोगों की ज्यादा से ज्यादा मदद की जाए। इस माह में सवाब का दायरा भी 70 गुना अधिक हो जाता है। लोगों की किसी न किसी सूरत में मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। रमजान में रोजेदार दिन में कई बुनियादी बातों का एहतराम करता है। मसलन, वह खाने-पीने और बुराइयों से दूर रहने के साथ-साथ इबादत पर जोर देता है।

मतलब रमजान सिर्फ खाने-पीने से दूर रहने का नाम नहीं है। इसमें तमाम बुराइयों से दूर रहकर अच्छाइयों की ओर रुख बनाए रखना पड़ता है। नबी करीम ने इसी पहलू को सबसे अहम बताया है। रमजान में इंसान सब्र करता है और उसके भीतर चीजों को सहने की ताकत बढ़ती है। बेहतर इंसान बनना और लोगों को बेहतरी और जनकल्याण के लिए प्रेरित करना रमजान का असली संदेश है। यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है। रमजान के महीने में कुरान नाजिल हुआ था। माना जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है। मुसलमानों के लिए रमजान महीने की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इन्हीं दिनों पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जरिए अल्लाह की अहम किताब कुरान शरीफ (नाजिल) जमीन पर उतरी थी। इसलिए मुसलमान ज्यादातर वक्त इबादत-तिलावत (नमाज पढना और कुरान पढने) में गुजारते हैं।

मुसलमान रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता हैं इस महीने के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग सूरज निकलने से पहले और डूबने तक की अवधि के दौरान खाने-पीने दूर रहते हैं। माहे रमजान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है। जिस तरह मौसमे बहार में हर तरफ सब्जा ही सब्जा नजर आता है। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल नजर आते हैं। इसी तरह रमजान में भी नेकियों पर बहार आई होती है। जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है, वह भी रमजान में इबादतगुजार बन जाता है। यह सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नात है। यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का महीना है। इस महीने में रोजादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं।

पैगम्बर मोहम्मद सल्ल से आपके किसी सहाबी (साथी) ने पूछा-अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो तो एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए। यह महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना है। रमजान के ताल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और हम पढ़ते और सुनते रहते हैं लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं। ईमानदारी के साथ हम अपना जायजा लें कि क्या वाकई हम लोग मोहताजों और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी करनी चाहिए? सिर्फ सदकए फित्र देकर हम यह समझते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है। जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है तो हमारी जेबों से सिर्फ चंद रुपए निकलते हैं, लेकिन जब हम अपनी शॉपिंग के लिए बाजार जाते हैं वहां हजारों खर्च कर देते हैं। कोई जरूरतमंद अगर हमारे पास आता है तो उस वक्त हमको अपनी कई जरूरतें याद आ जाती हैं। यह लेना है, वह लेना है, घर में इस चीज की कमी है। बस हमारी ख्वाहिशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं।

अगर इस महीने में हम अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कुछ कम कर लें और यही रकम जरूरतमंदों को दें तो यह हमारे लिए बेहत अज्र और सिले का बाइस होगा। क्योंकि इस महीने में की गई एक नेकी का अज्र कई गुना बढ़ाकर अल्लाह की तरफ से अता होता हैं, मोहम्मद सल्ल ने फरमाया है जो शख्स नमाज के रोजे ईमान और एहतेसाब (अपने जायजे के साथ) रखे उसके सब पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे। रोजा हमें जब्ते नफ्स (खुद पर काबू रखने) की तरबियत देता है। हममें परहेजगारी पैदा करता है। लेकिन अब जैसे ही माहे रमजान आने वाला होता है, लोगों के जहन में तरह-तरह के चटपटे और मजेदार खाने का तसव्वुर आ जाता है।

इस्लाम के सभी अनुयाइयों को इस महीने में रोजा, नमा, फितरा आदि करने की सलाह है। रमजान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को अशरा कहते हैं जिसका मतलब अरबी में 10 है। इस तरह इसी महीने में पूरी कुरान नालि हुई जो इस्लाम की पाक किताब है। कुरान के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है। रोजा सिर्फ भूखे, प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि अश्लील या गलत काम से बचना है। इसका मतलब हमें हमारे शारीरिक और मानसिक दोनों के कामों को नियंत्रण में रखना है। इस मुबारक महीने में किसी तरह के झगडे या गुस्से से ना सिर्फ मना फरमाया गया है बल्कि किसी से गिला शिकवा है तो उससे माफी मांग कर समाज में एकता कायम करने की सलाह दी गई है। इसके साथ एक तय रकम या सामान गरीबों में बांटने की हिदायत है जो समाज के गरीब लोगों के लिए बहुत ही मददगार है। वैसे भी इस्लाम धर्म में अच्छा इंसान बनने के लिए पहले मुसलमान बनना आवश्यक है और मुसलमान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों का अमल में लाना आवश्यक है।

पहला ईमान, दूसरा नमाज, तीसरा रोजा, चैथा हज और पांचवा जकात। इस्लाम के ये पांचों कर्तव्य इंसान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोजा यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोजेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है। जब मुसलमान रोजा रखता है, उसके हृदय में भूखे व्यक्ति के लिए हमदर्दी पैदा होती है। रमजान में पुण्य के कामों का सबाव सत्तर गुना बढ़ा दिया जाता है। जकात इसी महीने में अदा की जाती है।रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। इसका अभ्यास यानी पूरे एक महीना कराया जाता है ताकि इंसान पूरे साल तमाम बुराइयों से बचे। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया कि रोजा तुम्हारे ऊपर इसलिए फर्ज किया है, ताकि तुम खुदा से डरने वाले बनो और खुदा से डरने का मतलब यह है कि इंसान अपने अंदर विनम्रता तथा कोमलता पैदा करे?

This post has already been read 94961 times!

Sharing this

Related posts