कुपोषण घटा पर मोटापे का संकट बढ़ा

  • डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

से शुभ संकेत ही माना जाना चाहिए कि देश में कुपोषितों की संख्या में तेजी से कमी आई है। हालांकि बढ़ता मोटापा नए संकट की ओर इशारा कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की हालिया रिपोर्ट में यह कहा गया है कि दुनिया के देशों में रोटी का संकट बढ़ा है। दुनिया में करीब 82 करोड़ दस लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं। एशिया और अफ्रीका में ही ज्यादा लोग भुखमरी के शिकार हैं। इसमें भी दक्षिण एशिया की स्थिति अधिक चिंतनीय मानी जा रही है। एशिया में जहां 11 प्रतिशत का आंकड़ा भुखमरी का है तो दक्षिण एशिया में यह आंकड़ा 17 प्रतिशत पहुंच जाता है। ऐसे में अपने देश में कुपोषण के आंकड़े में कमी आना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि देश में लोगों को अब पोषित भोजन मिलने लगा है। विश्व खाद्य सुरक्षा एवं पोषण स्थिति-2019  बताती है कि गत तीन सालों में दुनिया के देशों में रोटी का संकट बढ़ा है। हालांकि खाद्यान्नों के उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है, पर खाद्यान्नों की बर्बादी भी कम नहीं हो रही। एशियाई देशों में जिसमें भारत भी शामिल है समुचित रखरखाव व वैज्ञानिक भण्डारण की पर्याप्त सुविधा नहीं होने से लाखों टन अनाज बर्बाद हो जाता है। खेत-खलिहानों में, मण्डियों में, रेलवे के प्लेटफार्मों में अनाज की बर्बादी आम है। हालांकि भारत में इसमें सुधार आया है। 1987 के मुकाबले में देश में गरीबी दर में भी उल्लेखनीय कमी आई है। देश में गरीबी 1987 की 48.9 प्रतिशत से घटकर 21.2 प्रतिशत रह गई है। देश में कुपोषण से बचाने के लिए सरकारों द्वारा बहुआयामी प्रयास किए गए हैं। इनमें स्कूलों में मिड डे मिल, आंगनबाड़ी कार्यक्रम, गांवों में ही स्वास्थ्य जागरूकता कार्यकर्ता और चिकित्सा सुविधाओं में सुधार और विस्तार से स्थिति में बदलाव आया है। सरकार द्वारा सुरक्षित प्रसव, ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियानों के साथ ही विभिन्न कार्यक्रमों से गरीबी रेखा में कमी और कुपोषण की दर में कमी आना रहा है। भले ही ड्रापआउट रोकने के नाम पर मिड डे मिल योजना चली हो पर निश्चित रुप से खासतौर से ग्रामीण व अभावग्रस्त क्षेत्रों में यह योजना बच्चों को कुपोषण से बचाने में सफल रही है। इसी तरह से आंगनबाड़ी योजना भी महिला एवं बाल विकास में बेहद लाभकारी रही है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2004-06 में 25 करोड़ कुपोषण के शिकार थे जो घटकर 19 करोड़ रह गए हैं। इसे शुभ संकेत माना जाना चाहिए। कुपोषण से अलग अब जो नई समस्या हमारे देश में ही नहीं अपितु दुनिया के बहुत से देशों में तेजी से विस्तारित हो रही है वह मोटापा की समस्या है। देश में 18 साल से अधिक वय के 3 करोड़ 28 लाख लोग मोटापा से पीड़ित हैं। हमारा रहन-सहन और बदलती जीवन शैली इसके लिए अधिक जिम्मेदार है। आज पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन की जगह पिज्जा, बर्गर और न जाने क्या- क्या फास्टफूड मिल रहे हैं। बस दो मिनट के चक्कर में बच्चों के स्वास्थ्य से सीधे-सीधे खिलवाड़ हो रहा है। विज्ञापनों की मायावी दुनिया भी बच्चों या महिलाओं पर केन्द्रीत होने से बच्चे नई-नई चीजों पर आकर्षित हो जाते हैं। दूसरा कारण संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार है। पति-पत्नी के नौकरीपेशा होने के कारण घर से बाहर या इंस्टेट खाने पर जोर अधिक रहने लगा है। इसका परिणाम सामने है। तेजी से मोटापा बढ़ता जा रहा है। इसके चलते कोलस्ट्रोल व अन्य की बढ़ोतरी के कारण एक समय धनाढ़्यों के लिए आरक्षित बीमारियों से आम आदमी और युवा ग्रसित होने लगे हैं। हृदय रोग आम होता जा रहा है। डिप्रेशन आम बात है। ऐसे में खान-पान के तरीके में बदलाव लाना ही होगा। मोटापे की बीमारी के चलते आज जिम का अच्छा खासा बाजार तैयार हो गया है। लोग जिम जाकर मोटापे से राहत पाने और फिट रहने के टिप्स लेने लगे हैं। मोटापा घटाने की दवाओं के विज्ञापन आम होते जा रहे हैं। निश्चित रुप से यह अच्छी बात है कि देश में कुपोषण से शिकार लोगों की कमी आती जा रही है। लेकिन हमें अब योग के साथ-साथ लोगों के खान-पान की तरफ भी ध्यान देना होगा, ताकि कुपोषण से बचते-बचते मोटापा के शिकार न हो जाएं। इसके लिए सरकार और गैरसरकारी संगठनों को अभियान चलाकर लोगों को शिक्षित करना होगा कि वे संतुलित, पोषक तत्वों से भरपूर पर गरिष्ठ भोजन से परहेज करें। नहीं तो कुपोषण से बचकर यदि मोटापे के शिकार होते हैं तो फिर इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है। जाने- अनजाने हम मोटापा के चलते अनेक ब्याधियों से ग्रसित हो जाएंगे। देश में चिकित्सालयों में बढ़ती भीड़ इस तरफ इशारा भी कर रही है। ऐसे में सरकार व गैरसरकारी संगठनों को इसके लिए जागरूकता बनानी होगी। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब मोटापा बड़ी समस्या के रुप में आ जाएगा। इसमें दो राय नहीं कि यह सब समय रहते करना होगा।

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