इंदिरा गांधी मुर्दाबाद का लगाया नारा तो 17 माह काटी जेल

भदोही। आपातकाल देश की राजनीति का वह बदनुमा दाग है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इंदिरा गांधी ने राजनीतिक विरोधियों का दमन करने और सत्ता की बागडोर अपने कब्जे में रखने के लिए 25 जून की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की थी। लोकतंत्र रक्षक सेनानी लोलारखनाथ उपाध्याय इसे इतिहास का काला अध्याय और कलंक बताते हैं। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी के खिलाफ नारा लगाने पर मुझे 17 माह और दस दिन की  जेल काटनी पड़ी थी। 

इंदिरा गांधी ने आपातकाल की सुबह विरोधियों को जेल भेजा
लोकतंत्र रक्षक सेनानी लोलारख उपाध्याय भदोही जिले के सुरियावां ब्लाक के पट्टीबेजांव गांव के संभ्रात परिवार से संबंधित हैं। वह लोकतांत्रिक जनता दल के प्रदेश प्रभारी हैं और शरद यादव के बेहद करीबी हैं। उपाध्याय के जेहन में 44 साल की याद आज भी ताजा है। वह कहते हैं कि देश में इंदिरा सरकार के खिलाफ जय प्रकाशनारायण यानी जेपी आंदोलन तेज हो चला था। देश में सत्ता विरोधी लहर चल पड़ी थी जिसकी वजह से सत्ता जाने के भय से इंदिरा गांधी डर गयी थीं। इसी दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गांधी के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर उनके निर्वाचन को गलत ठहरा दिया था जिसके बाद इंदिरा सरकार के खिलाफ मुहिम और तेज हो गयी थी। सत्ता खोने के भय और अपने राजनीतिक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए 25 जून की आधी रात उन्होंने देश में आपातकाल लागू कर दिया। सुबह होते ही सरकार विरोधियों की गिरफ्तारी होने लगी जिसमें अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर जार्ज फर्नाडिस तक कई बड़े नेता शामिल थे। 
रेलमंत्री कमलापति की सभा में लगाया इंदिरा गांधी मुर्दाबाद का नारा 
उपाध्याय ने बताया कि उस दिन 11 जुलाई 1975 की तारीख थी। उस दिन हमारा हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम आया था। हम नागरिक इंटर कालेज जघंई से परिणाम देख कर लौट रहे थे। अच्छे अंकों से पास होने की खुशी थी। उस दिन दुर्गागंज बाजार में तत्कालीन रेलमंत्री पंडित कमलापति त्रिपाठी की सभा चल रही थी जबकि इंदिरा सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन उग्र स्वरुप धारण कर चुका था। पंडित जी की सभा मुझे रास नहीं आयी, क्योंकि हम जैसे युवा जेपी आंदोलन से जुड़े थे। लिहाजा हमने उस सभा में ‘इंदिरा गांधी मुर्दाबाद’, ‘जयप्रकाश नारायण जिंदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए जिसकी वजह से वहां मौजूद पुलिस ने हमें हथकड़ी लगा दी और दुर्गांगंज पुलिस चौकी लाया गया। उस वक्त मेरी उम्र नाबालिग थी। मुझे चौकी इंचार्ज ने कई थप्पड़ भी मारे। जिसका प्रतिवाद करते हुए पुलिस से सवाल किया कि मुझे क्यों यहां लाया गया, मैं कोई चोर उचक्का तो नहीं हूं। जिस पर तमतमाए चौकी इंजार्ज ने कई थप्पड़ और जड़ दिए। बाद में मुझे सुरियावां थाना लाया गया जहां थानाध्यक्ष ने मुझे लाठी-डंडे से पीटा। फिर हमारे पिता शिव शंकर उपाध्याय और और उनके मित्र रामनगर गांव के ग्राम प्रधान शोभनाथ पांडेय समेत सभी आठ कांग्रेसी नेताओं ने पुलिस को हलफनामा भी दिया कि इन्होंने प्रधानमंत्री के खिलाफ मुर्दाबाद का नारा नहीं लगाया है। इन्हें छोड़ दिया जाय लेकिन थानाध्यक्ष अड़ गया और बोला कि यह इंदिरा गांधी जिंदाबाद और जेपी मुर्दाबाद के नारे लगाए और कान पकड़ कर मांगी मांगे तभी रिहाई हो पाएगी।

थानाध्यक्ष ने कहा, इंदिरा गांधी जिंदाबाद बोलो तो छोड़ दूंगा
उपाध्याय ने कहा कि थानाध्यक्ष की यह बात सुनते ही मैं आग बबूला हो गया और इंदिरा गांधी मुर्दाबाद, जयप्रकाश जिंदाबाद के नारे लगाने लगा। इसके बाद तानाशाही नहीं चलेगी, यह सरकार निकम्मी है जैसे कई नारे लगाए और थाने में रात आठ बजे तक हंगामा किया जिस पर पुलिस आग बबूला हो गई और मुझे सुबह ज्ञानपुर उपकारागार भेज दिया गया। जहां मैं चार माह जेल में रहा, फिर वहां से वाराणसी जेल भेजा गया जहां दस माह काटा। इसके बाद आजमगढ़ जेल भेजा गया जहां 17 माह और दस दिन की जेल काटने के बाद मेरी रिहाई हुई। 
लोलारख उपाध्याय कहते हैं कि देश पर थोपा गया आपातकाल इंदिरा सरकार का सबसे गलत और अलोकतांत्रिक फैसला था। यह अभिव्यक्ति और प्रेस की आजादी पर हमला था। अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिया था। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए यह कलंक है। भारतीय राजनीतिक इतिहास में आपातकाल कांग्रेस और इंदिरा गांधी सरकार पर लगा ऐसा दाग है जो धुलने वाला नहीं है। मुलायम सिंह यादव ने लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को पेंशन देकर सम्मानित किया जबकि भाजपा की योगी सरकार ने उसे बढ़ाया। सरकारों को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए ऐसी स्थिति से बचना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था का गला नहीं घोंटना चाहिए।

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