-रोमेश जोशी-
ज्योतिषी पंडित सुदर्शन भट घर पर ही थे और कोई दूसरा ग्राहक भी नहीं था, यह देख मालिनी ने राहत की सांस ली। ग्राहकों के बैठने के लिए बिछी गद्दीे की ओर इशारा करते हुए नौकर ने कहा, बैठो, पंडित जी पांच मिनट में आउत हैं। भट जी फुरसत में मिलें ऐसा बहुत कम होता है। अकसर तो पांच-दस ग्राहकों के निपटने की प्रतीक्षा करते इतनी ऊर्जा चुक जाती है कि अपना क्रम आने पर ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते। मालिनी को याद आया, शादी के लिए बड़ी बेटी दक्षा की जन्म कुंडली मिलाने के लिए तीन दिन चक्कर लगाने पड़े थे। पर आज तो सुबह से बल्कि कल शाम, जब से मंझली यानी पवित्रा बिटिया के लिए यह रिश्ता आया है, सब कुछ कितना स्मूथ होता जा रहा है। घर से निकलते हुए उत्साह से भरी मालिनी कह भी चुकी है, जरूर आज कोई बड़ा ग्रह बदला है, नहीं तो क्या यह जिद्दी, नखराली मेरे साथ चलने को राजी होती?
प्रतीक्षा करते हुए उन्होंने एक बार फिर संतुष्ट मुस्कान के साथ अक्षता बिटिया की ओर देखा। बदले में अक्षता भी मुस्कुरा दी।
कल शाम जब मृणालिनी दीदी रिश्ते के लिए लड़के की जन्मकुंडली लेकर आई, तब एकाएक मालिनी तनाव में आ गई थी। लगा एक बार फिर शुरू हो जाएगी दक्षा की बेमेल निरूपित शादी को लेकर परेशान कर देने वाली, रुला देने वाली बहस। पवित्रा और अक्षता ही नहीं, कॉलेज में पहुंचने के बाद से तो अक्षांश भी ऐसी बहसों में भाग लेने लगा है। वह भी बिल्कुल अक्षता की तरह बेबाक बोलता है। पिछले हफ्ते ही कह रहा था, मां सालगिरह वगैरह की पार्टी में जीजा जी को अवॉइड कर दिया करो ना! एकदम मिस्फिट लगते हैं।
मालिनी आज भी नहीं स्वीकार पाती कि दक्षा की शादी तय करते हुए उनसे कोई गलती हुई। चार साल पहले पति के अकस्मात निधन के बाद आर्थिक समस्या उतनी नहीं थी, जितना यह भय कि तीन-तीन बेटियां तेजी से जवान हो रही हैं, कहीं किसी ने कोई गलत कदम उठा लिया तो? ऐसे में संपन्न परिवार के हितेश का रिश्ता वह अस्वीकार न कर सकी।
पारिवारिक संपदा तो थी, किंतु स्वयं हितेश केवल उच्च श्रेणी शिक्षक था और दक्षा ने डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा दी थी। देखने में भी हितेश दक्षा से कुछ उन्नीस था। यह अलग बात है कि शादी के बाद दोनों के व्यक्तित्व में अठारह-बीस का अंतर आ गया और दक्षा के डिप्टी कलेक्टर बन जाने के बाद तो यह अंतर और बढ़-चढ़कर दिखाई देने लगा।
उन दिनों समय-समय घर में बवाल उठ खड़ा होता। डाइनिंग टेबल पर पवित्रा पूछ बैठती, क्या मम्मा, दीदी की शादी के लिए आप दो साल रुक नहीं सकती थी? बस, तेईस-चैबीस की तो थी।
और अक्षता कहती, डिप्टी कलेक्टर बन जाने देती तो कोई भी कलेक्टर पसन्द कर लेता उन्हें।
जन्मपत्री के साथ थोड़ी-सी अक्ल और शक्ल का भी मिलान करने का नियम होना चाहिए।
बहुत बोलने लगे हो तुम लोग! चुप करो। कहकर कभी तो मालिनी स्थिति पर काबू पा लेती, लेकिन कई बार गुस्से से खाना छोड़कर उठ जाती और घंटों रोती या मुंह फुलाए घूमती। बेमेल शादी के कारण बच्चों में उठी असन्तोष की इस ज्वाला में घी डाल देती, बीच-बीच में अवकाश पर या दौरे पर आई खुद दक्षा। शेष तीनों बच्चों की तुलना में अनुशासित होते हुए भी बातों-बातों में बोल जाती, साथ चलते हैं तो लोगों को यही लगता है, जैसे जाति का प्रमाणपत्र मांगने वालों में से एक हैं।
नए कलेक्टर आए हैं ना आशुतोष कुमार, उनके सामने शर्म से पानी हो गई मैं तो। वे इनको किसी ठेकेदार का मुनीम समझ बैठे।
दौरे पर साथ ले जाती हूं तो ध्यान रखना पड़ता है इनका। सर्किट हाउस में घुसने से इनको रोक दिया, तो इनसे कहते भी नहीं बना कि मैं इनकी पत्नी हूं।
दक्षा ऐसे सारे किस्सों को मजे ले-लेकर सुनाती, लेकिन मालिनी जानती है, शब्द बाणों का इशारा वे ही हैं। अपने से केवल दो साल छोटी पवित्रा को तो वह चुपके से अन्तरंग प्रसंग भी सुना जाती, जो उसके जाने के बाद बिल्कुल एकान्त में पवित्रा द्वारा ऐसी जुगुप्सा मिलाकर सुनाए जाते कि मालिनी को लगने लगता उन्होंने अपनी प्यारी बिटिया को रौरव या कुम्भीपाक नर्क में धकेल दिया है। अकसर होने वाली तनावपूर्ण बहस और बीच-बीच में दक्षा के अनुशासित तानों से तंग आकर आखिर एक दिन मालिनी ने कह ही दिया, देखो दक्षा, हममें जितनी क्षमता थी, जितनी समझ थी, जो हमें तुम्हारे लिए उचित लगा, वैसा हमने कर दिया। मां हूं, तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं। जो भी किया, तुम्हारी भलाई के लिए किया। फिर भी अगर तुम्हें लगता है कि हमने कुछ गलत कर दिया है, तो हम हाथ जोड़कर माफी चाहते हैं और तुमसे विनती करते हैं कि इस पति से किसी भी तरह तलाक ले लो और अपनी पसन्द से दूसरी शादी कर लो।
अब कह रही हो, तुरंत मुंह बंद कर देने वाला जवाब मिला, अब कह रही हो, जब मैंने मां बनने का निश्चय कर लिया है।
तनाव और तानों के इसी सिलसिले में अक्षता ने आप्त वाक्य गढ़ा, भारतीय नारी की विडम्बना देखो, प्रेम विवाह करेगी, तो झगड़ा होने पर भले ही तलाक दे दे, लेकिन मां-बाप ने चाहे कैसे भी बेमेल लड़के के साथ लटका दिया हो, तलाक नहीं देगी, नहीं देगी, जिन्दगी भर ढोती रहेगी।
और अक्षांश ने तत्काल प्रश्न किया, अच्छा बताओ, दक्षा दीदी की सन्तान खुद को मास्टर की औलाद कहेगी या डिप्टी कलेक्टर की?
तीन-चार साल गुजरते बेमेल पति वाली बहस की फ्रीक्वेंसी कुछ कम जरूर हुई पर समाप्त नहीं, जब भी विषय उठ जाता तनाव उतना ही बल्कि उससे भी ज्यादा उपजता, क्योंकि इस बीच कम्पनी सेक्रेटरी की नौकरी पा चुकी अक्षता ने पवित्रा को कॉलसेण्टर की नौकरी छोड़ने को मजबूर किया और सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में जुटाने के साथ घोषणा कर दी, आईएएस बनने के बाद ही पवित्रा दीदी शादी करेंगी। किसी को इसकी चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।
पवित्रा के लिए रिश्ते तो दक्षा की शादी के बाद से ही आ रहे थे, लेकिन तनाव और तानों के मारे मालिनी टालती रही। फिर जब मां बन जाने और ऑफिस की जिम्मेदारियां बढ़ जाने के कारण दक्षा का आना-जाना बेहद कम हो गया, तो मालिनी ने यदाकदा रिश्तेदारों और सहेलियों के आने पर कहना शुरू किया, अब तो बस पवित्रा और अक्षता के हाथ पीले कर दूं, फिर इस अक्षांश की शादी करके, इसकी पत्नी को सब सौंपकर भगवत भजन में मन लगाने की इच्छा है।
भगवान के भजन की इच्छा के साथ तीन शादियों वाले इस पैकेज पर बच्चों की ओर से जब कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली, तब जाकर मालिनी ने मृणालिनी दीदी के प्रस्ताव पर लड़के के रंगरूप, कामकाज की पूरी जानकारी लेने के बाद ही सबसे पहले जन्मकुण्डली मिलान की शर्त रखी थी। लड़के के पिता किसान थे और लड़का खुद का बिजनेस कर रहा था। कमाई बहुत अच्छी थी और देखने में भी कम नहीं था। जन्मकुण्डली आ जाने पर भी जब तीनों बच्चों में से किसी ने कोई सवाल नहीं किया बल्कि प्रतिक्रिया ही नहीं दी, तो मालिनी को महसूस होना स्वाभाविक ही था कि जरूर कोई बड़ा ग्रह परिवर्तन हुआ है।
इस बार बहुत दिन बाद आना हुआ? नमस्कार करते हुए ज्योतिषी सुदर्शन भट ने प्रश्न किया और मालिनी ने कहा, आने की इच्छा तो कई बार हुई, मगर आपके यहां की भीड़ की कल्पना करके…।
आप तो पहले फोन करके समय ले लिया कीजिए। कहिए, क्या सेवा है? कहते हुए भटजी ने अक्षता पर उड़ती सी नजर डाली।
कुण्डली मिलानी हैं। आपको याद होगा, बड़ी बेटी दक्षा की कुण्डली भी आपने ही मिलाई थी।
हां-हां, कैसा चल रहा है उसका? एक बार फिर अक्षता पर नजर डालते हुए भटजी ने पूछा और मालिनी ने ध्यान दिया कि बाजू में बैठी अक्षता लगातार दूसरी ओर देखे जा रही है। शायद भटजी को उसने नमस्ते भी नहीं किया। अंगुली चुभाकर उसे शिष्टाचार की याद दिलाने का प्रयास करते हुए मालिनी ने कहा, अब तो काफी ठीक चल रहा है, लेकिन शुरू-शुरू में…।
सब ठीक हो जाएगा। फिक्र ना करें। नई-नई शादी में…बर्तन तो खड़कते ही हैं। सूत्रवाक्य द्वारा मालिनी को आश्वस्त करते हुए पूर्ण व्यावसायिकता के साथ जन्मपत्रिका देखने की जल्दी जताते हुए कहा, लाइए।
सुनकर मालिनी ने अक्षता की ओर हाथ बढ़ाया और अक्षता ने थैली से निकालकर कम्प्यूटर से बनी दो कुण्डलियां भटजी के सामने रख दीं। ज्योतिषीजी ने एक कुण्डली के पन्ने पलटने शुरू किए। अस्फुट स्वर में कुछ गणनाएं करते रहे, फिर बोले, सुदर्शन है, गजकेसरी, बुधादित्य योग है। स्वयं के व्यवसाय में उन्नति, वैवाहिक योग भी उत्तम हैं।
कुछ देर बाद उन्होंने दूसरी कुण्डली खोली, गणनाएं की, फिर बोले, लक्ष्मी योग हो तो ऐसा। विरासत के भी अच्छे योग हैं, पति की जायदाद भी अच्छी खासी होगी और कन्या ही उसे सम्हालेगी। दोनों कुंडलियों में राशि मैत्री भी है। अरे, लेकिन आयु में भारी अंतर है। परस्पर प्रेम का मामला है क्या? आजकल ऐसे विवाह काफी हो रहे हैं।
पांच साल का अंतर तो चलता है पंडित जी। दक्षा और उसके पति में तो…। मालिनी ने तर्क करना चाहा, लेकिन कुछ असहज होकर भटजी ने बीच में टोका, पांच का नहीं, इनमें तो बाइस साल का अंतर है।
चैंककर उन्होंने एक बार फिर से जन्मपत्री का पहला पृष्ठ खोलते हुए कहा, यह किसकी कुंडली दे दी आपने?
उन्होंने पहले पृष्ठ पर लिखा नाम पढ़ा और बोले, मालिनी जी, यह तो आपकी जन्मकुंडली है।
मालिनी ने कुछ नाराजगी के साथ अक्षता की ओर देखा। घर से निकलते हुए थैली में कुंडलियां उसी ने तो रखी थीं और अक्षता ने अत्यंत िवनम्र और संयत स्वर में कहा, जी हां पंडित जी, आपको ममा की जन्म कुंडली से ही इस कुंडली का मिलान करना है। इन्हीं को शादी करने का शौक चढ़ा है।
क्या बकती है? मैं मैं…। आपा खोने ही वाली थी कि मालिनी को स्मरण हो आया कि वे शहर के प्रख्यात ज्योतिषी के सामने बैठी है। मालिनी के गुस्से की ओर जरा भी ध्यान न देकर अक्षता ने संयत स्वर में ही आगे कहा, क्या आपने पवित्रा दीदी की मर्जी का पता लगाया? उनसे पूछा कि वे अभी शादी करना भी चाहती है या नहीं? मरजी के बिना इतना बड़ा निर्णय कैसे कर सकती हैं आप? आपकी बहुत ही इच्छा हो रही है, तो आप कर लीजिए शादी, इस अनजान लड़के से।
उठ खड़े हुए तीनों। मालिनी ने माफी मांगते हुए कहना चाहा कि पवित्रा की कुंडली के साथ वह कल फिर आएगी, शायद उन्होंने यह भी कहा कि यह सब वे जो कर रही हैं, बेटियों के भले के लिए ही तो कर रही हैं, लेकिन अक्षता के व्यवहार के कारण वे गुस्से से कांपने लगी थीं।
मां से ऐसी मसखरी नहीं करते। गद्दी छोड़ते हुए पंडित सुदर्शन भट ने आग ठंडी करने का प्रयास किया, तो अक्षता ने सौजन्य के साथ झुककर नमस्कार करते हुए उत्तर दिया, आदरणीय, आप भी इस तथ्य को समझ लें। जन्म कुंडली मिलाने से पहले यदि इस देश के ज्योतिषी कम से कम यह जान लिया करें कि लड़का और लड़की अभी शादी करना भी चाहते हैं या नहीं, तो इस देश के हजारों-लाखों बेमेल और पति-पत्नी के जीवन को जहर बना देने वाले विवाह रुक सकते हैं।
भटजी निरुत्तर थे।
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