संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ 115 पन्नों का झूठ का पुलिंदा रखा, तो भारत ने भी उसके तार्किक जवाब दिए। मानवाधिकार परिषद की ही अपनी कुछ पुरानी रपटें हैं, जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, उनके इस्लामीकरण के खुलासे करती हैं। ऐसी ही एक रपट में पाकिस्तान की तत्कालीन सर्वोच्च अदालत का भी उल्लेख है। रपटों के पूर्वाग्रह हो सकते हैं या उनके तथ्यों की भिन्न व्याख्या की जा सकती है, लेकिन पाकिस्तान के ही वजीर-ए-आजम इमरान खान की सियासी पार्टी-पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के पूर्व विधायक बलदेव कुमार सिंह ने भारत में आकर जो रहस्योद्घाटन किए हैं, यदि मानवाधिकार परिषद उन पर विमर्श करे, तो पाकिस्तान को उन देशों की जमात में रखा जा सकता है, जिसमें सोमालिया, सूडान, अफगानिस्तान, इराक, म्यांमार और कांगो आदि देश हैं। इन देशों को अल्पसंख्यकों के मद्देनजर ‘जहन्नुम’ करार दिया जाता है। कमोबेश हिंदू, सिख, ईसाई आबादी के लिए पाकिस्तान जहन्नुम, नरक, दोजख सभी कुछ है। मुस्लिम आबादी अहमदियों को भी इस्लाम से बहिष्कृत किया जा रहा है। बहरहाल पूर्व विधायक बलदेव सिंह सिर्फ तीन महीने के वीजा पर भारत आए हैं और इन दिनों पंजाब के खन्ना शहर में हैं। उन्होंने भारत में ही राजनीतिक शरण की गुहार लगाई है। उनकी पत्नी और बेटा-बेटी भी साथ आए हैं और पाकिस्तान नहीं लौटना चाहते। इस सिख परिवार के मुताबिक, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक, नाबालिग लड़कियों को अगवा किया जा रहा है, उन्हें जबरन इस्लाम कबूल कराया जाता है, उनके आतंकियों के साथ जबरन निकाह कराए जाते हैं। सिर्फ यही नहीं अल्पसंख्यक समुदायों की हत्याएं तक कराई जा रही हैं। उन पर जुल्म-ओ-सितम की इंतहा है। पाकिस्तान में हिंदुओं के मात्र 26 मंदिर ही बचे हैं, जिनमें पूजा-पाठ किया जाता है। शेष मंदिरों को या तो नष्ट कर दिया गया है अथवा वहां सन्नाटे पसरे हैं। आज के पाकिस्तान में सिखों की आबादी करीब 20,000 ही है, जबकि हिंदू-ईसाई की आबादी 28-28 लाख के करीब है। जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान अलग देश बना, तब हिंदू आबादी करीब 24 फीसदी थी, लेकिन अब घटकर 1.5 फीसदी रह गई है और उसे भी खत्म करने की साजिशें जारी हैं। सिख आबादी तो मात्र 0.001 फीसदी तक ही सिमट कर रह गई है। 1947 का यथार्थ यह भी था कि तब कराची में हिंदू करीब 51 फीसदी थे, लेकिन आज वहीं 2 फीसदी बचे हैं। दरअसल हिंदू और सिख धीरे-धीरे भारत की ओर पलायन कर रहे हैं। बलदेव की गुहार है कि जो बुनियादी तौर पर भारतीय जड़ों के लोग हैं, कमोबेश उन्हें भारत में शरण दी जाए, क्योंकि इमरान हुकूमत, फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई उन्हें मारने पर आमादा हैं। हालांकि पाकिस्तान की यह कूटनीति भी रही है कि सिखों की भारत के प्रति निष्ठा टूटे और वे पाकिस्तान के लिए लड़ें। इसी कूटनीति के तहत खालिस्तान के बचे-खुचे भगोड़ों को उकसाया जा रहा है और पंजाब में हमलों के लिए उन्हें तैयार भी किया जा रहा है। लेकिन यह कूटनीति ना’पाक’ ही साबित हुई और सिख औसत तौर पर भारत के पक्षधर ही बने रहे। विडंबना यह है कि पाकिस्तान के गुरुद्वारों में ग्रंथियों की नियुक्ति भी आईएसआई करती है। त्रासदी यह है कि पाकिस्तान की स्कूली किताबों में हिंदुओं को ‘काफिर’ करार दिया गया है, लिहाजा बच्चे उसी नफरत को पढ़ते हुए बड़े होते हैं। हिंदू-सिखों के ऐसे जहन्नुम में गुरु नानक से जुड़े धार्मिक स्थल करतारपुर का कारिडोर बनाया जा रहा है। कई राजनयिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय सिख आईएसआई के ‘रडार’ पर रहेंगे। उन्हें दर्शनार्थी होने के बावजूद उत्पीडि़त किया जा सकता है और सिखों को खुफियागिरि को भी बाध्य किया जा सकता है। जिस देश में अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी खतरे में है, वहां करतारपुर सरीखे मानवीय और आध्यात्मिक प्रयास सफल कैसे हो सकते हैं? बहरहाल मानवाधिकार के स्तर पर पाकिस्तान पूरी तरह बेनकाब है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के मंच पर व्यापक विमर्श होगा, लेकिन कोई निर्णय भी लिया जाना चाहिए, ताकि पाकिस्तान की हरकतों पर लगाम लगाई जा सके।
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