भ्रष्ट नौकरशाहों पर सरकार का चाबुक

-रमेश ठाकुर-

बदलाव प्रकृति का नियम है। भ्रष्ट नौकरशाहों ने शायद ही कभी सोचा हो कि उनकी मौजमस्ती और आजादी के दिनों पर डाका पड़ेगा। कोई आकर करारी चोट मारेगा। लेकिन अब ऐसी परिकल्पना सच में परिवर्तित हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रत्यक्ष रूप से अफसरशाहों से भिड़ गए हैं। मंत्रालयों में सालों से पैर जमाए बैठे अधिकारियों में इस वक्त खलबली मची हुई है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस अंदाज से भ्रष्ट नौकरशाहों को एक झटके में बाहर का रास्ता दिखाया, उससे साफ हो गया है कि पहले कार्यकाल में सफलतापूर्वक स्वच्छ भारत अभियान चलाने के बाद सरकार के दूसरे कार्यकाल में नौकरशाहों के काम में पूरी तरह से पारदर्शिता लाई जाएगी। कुछ अफसरों को घूस लेने की ऐसी आदत पड़ चुकी है कि ईमानदारी से काम करना ही नहीं चाहते। लेकिन अब माहौल पहले से जुदा है। दिल्ली में बैठा हर बड़ा अधिकारी सहमा हुआ है। नौकरशाह अभी तक ‘खाओ और खिलाओ’ की नीति पर काम करते आए थे। लेकिन अब दोनों पर चाबुक चल गया है। अंग्रेजी शासनकाल से बेलगाम नौकरशाही के लिए चिरप्रतीक्षित चलाया गया यह सफाई अभियान न केवल समयानुकूल बल्कि स्वागतयोग्य भी है। दिल्ली में इस वक्त संसद सत्र चल रहा है। केंद्र सरकार ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने काम को किसी भी रूकावट के बिना जारी रखें। दशकों बाद ऐसा नजारा देखने को मिला है, जब नौकरों में कुछ ईमानदारी देखने को मिल रही हो। तमीज से बात भी करते हैं और काम भी। केंद्र सरकार ने विगत दिनों वित्त विभाग के दर्जनभर के करीब वरिष्ठ अधिकारियों को चलता किया था। उसके बाद अब राजस्व सेवा के पंद्रह मोस्ट सीनियर अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से सेवानिवृत कर दिया। प्रधानमंत्री ने यह फैसला सेवा के सामान्य वित्त नियमानुसार अनुच्छेद 56-जे के तहत लिया, जिस पर कोई विरोध भी नहीं कर सकता। भ्रष्ट अधिकारियों को सेवा से बेदखल करना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार होता है। मौजूदा जिन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है, वह सभी मुख्यत: अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड से ताल्लुक रखते थे। तल्ख सच्चाई है कि हिंदुस्तान अगर अब भी पिछड़ा है, तो उसके जिम्मेदार राजनेताओं से कहीं ज्यादा नौकरशाह हैं। आजादी के सात दशकों बाद भी देश को पिछड़ा और गरीब रखने के लिए इसी नौकरशाही का एक बड़ा तबका सर्वाधिक जिम्मेवार है। यह ठीक है कि कुछ भ्रष्ट तत्वों के चलते पूरी नौकरशाही को भ्रष्ट नहीं कहा जा सकता, परंतु हर सरकारी विभाग में छिपी काली भेड़ों को पहचानना और उनके खिलाफ इसी तरह सख्त कार्रवाई करना अत्यंत जरूरी है। नौकरशाहों के काम में पानी की तरह पारदर्शिता लाने के लिए प्रधानमंत्री ने जो बीड़ा उठाया है उसकी हर तरफ प्रशंसा हो रही है। बताया जाता है कि केंद्र सरकार ने बड़े अफसरों की एक और सूची तैयार की है जो पचास साल पार कर चुके हैं। साथ ही अब वह सरकार की अपेक्षा के मुताबिक काम नहीं कर रहे हैं। उनको भी देर-सबेर चलता किया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में ऐसे अधिकारी छिपे हैं जिन पर घूसखोरी, कालेधन को सफेद करना, आय से अधिक संपत्ति, किसी कंपनी को गलत फायदा पहुंचाना जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। कुछ तो पहले से ही सीबीआई के शिकंजे में हैं। समय की मांग है कि नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार से अब आम लोगों राहत मिलनी चाहिए। अच्छी बात है कि सरकार ने जनता की इस परेशानी को न केवल समझा बल्कि इस दिशा में काम करना भी शुरू कर दिया है। दिल्ली के बड़े अधिकारियों में अब इसी बात की खलबली है कि कैसे बचा जाए। यूपीए सरकार में विकास परियोजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार हुआ था। योजनाओं का आधा पैसा भी सही से नहीं लग पाया। सब नेताओं और अधिकारियों की जेबों में चला गया। उस वक्त के ज्यादातर अफसर इस समय भी मौजूद हैं। लेकिन उन सभी अफसरों पर प्रधानमंत्री की नजर बनी हुई है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए आधुनिक उपाय किए जाने की जरूरत है। विकास परियोजनाओं के संपूर्ण होने पर ही नहीं, बल्कि बीच-बीच में भी इनकी समीक्षा करनी होगी। हर चरण के लिए जिम्मेवारी तय करनी होगी। केवल इतना ही नहीं, बड़ी परियोजनाओं में जनभागीदारी को भी शामिल करना चाहिए। जहां पर भी बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हों उससे सर्वाधिक प्रभावित तो स्थानीय निवासी ही होते हैं। तो फिर इन परियोजनाओं के निर्माण व क्रियान्वयन में वहां की जनता को कैसे अलग रखा जा सकता है? घूसखोरी रोकने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि विकास की सभी परियोजनाओं में स्थानीय जनप्रतिनिधियों, पंचायतों तथा प्रभावशाली समूहों को शामिल करना चाहिए। हर विभागों में व्याप्त अनावश्यक कानूनों व प्रशासनिक बाधाओं को समाप्त करना होगा जिसकी आड़ में कुछ अधिकारियों को भ्रष्ट आचरण करने का मौका मिलता है। इसके अलावा भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के लिए एक मजबूत शिकायत विभाग भी बनाए जाने की जरूरत है, जो निष्पक्ष तौर पर काम कर सके। भ्रष्टाचार अपने देश की बड़ी समस्या रही है। नि :संदेह देश का पिछड़ापन तभी दूर होगा, जब करप्शन पर नकेल डाली जाएगी। भ्रष्टाचार नजले की तरह है जो ऊपर से नीचे बहता है। उसी दिशा में केंद्र सरकार ने ऊपर से सफाई अभियान चला दिया है। आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही इसका असर पूरी व्यवस्था पर भी पड़ता दिखेगा। यह सिलसिला अगर जारी रहा तो निश्चित रूप से देश के माथे से गरीबी, पिछड़ेपन का दाग धुल जाएगा। जारी संसद सत्र में करप्शन को लेकर कुछ बिल जाए जाने हैं। लेकिन अंदेशा अभी से होने लगा है कि इस मसले पर विपक्ष हंगामा काटेगा। हंगामा काटने की एक वजह यह भी है कि भ्रष्ट अफसरों के तार किसी न किसी नेता से जुड़े हैं। जाहिर है, जब अफसर नपेगा, तो उनके आका भी फंसेंगे। लेकिन इन सबकी परवाह किए बिना केंद्र सरकार अपने कदम आगे बढ़ा रही है।

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