
रांची। झारखंड के 2011 बैच के एक ऐसे आईएएस अधिकारी जो आज पहचान के मोहताज नहीं है, प्रशासनिक कार्यशैली के साथ सामाजिक क्षेत्र में अपने कर्तव्यों के निर्वाहन से एक अमिट छाप छोड़ी है। आज हम बात करेंगे आईएएस राहुल सिन्हा की, उनकी अनूठी समाजिक कार्यशैली आज पूरे राज्य में चर्चा का विषय बनी हुई है। खासकर के बेटियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर व सशक्त बनाने की दिशा में उठाए गए कदम का सचमुच कोई सानी नहीं हैं। झारखंड के दुमका देवघर, गिरिडीह के बाद अब राजधानी रांची के उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी के ओहदे पर विराजमान राहुल कुमार सिन्हा अपनी ईमानदार छवि और कर्तव्यों के निर्वहन की वजह से जनता के चहेते अधिकारियों में से एक है।
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बेटियों को शिक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में इनका योगदान आज पूरे समाज के लिए अनुकरणीय हैं। वहीं दूसरी कड़ी में महिला बाल सुधार सह संप्रेषण गृह की बेटियों व महिलाओं को समाज से जोड़ने की दिशा में ये लगातार कार्य कर रहे हैं। जिलों में पदस्थापन के दौरान इन जगहों पर रहने वाली महिलाओं की उन्नति, विकास और सशक्तिकरणको लेकर सकारात्मक आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों के माध्यम से महिलाओं के पूर्ण विकास के लिए वातावरण बनाया है, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता को साकार करने में समर्थ हो सके। बेटियों एवं महिलाओं के लिए कई ऐसे कई सार्थक प्रयास के कारण आज झारखंड राज्य में राहुल कुमार सिन्हा की पहचान एक कुशल प्रशासक के रूप में जानी जाती है।
इसके अलावा झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र की कमान सम्भालते ही इन्होंने सबसे पहले घटते लिंगानुपात को चैलेंज के रूप में लिया ऐसे क्षेत्रों में कस्बों, गाँव, शहर में बेटियों और महिलाओं को उन्नति के राह में घटते लिंगानुपात को रोकने के उद्देश्य से PC&PNDT एक्ट में सख्ती की साथ ही इस समस्या के निराकरण के लिए भय, प्रीत व जागरूकता के माध्यम से इसका व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया, ताकि अभियान को सरकारी कार्यक्रम न समझकर इसे सामाजिक मुहिम बनाते हुए आम नागरिक अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। आगे इन्होंने कन्या भ्रूण हत्या को सुधारने के उद्देश्य से कई कड़े कदम उठाए और कड़ी कार्रवाई कर समाज को एक बेहतर संदेश देने का काम किया है। इसके अलावा एक मुहिम शुरू कर सरकारी स्कूलों व कस्तुरबा गांधी विद्यालय में पढ़ रही बच्चों बच्चियों को शुरूआत से हीं कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, महिला सशक्तिकरण, महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उदेश्य से कार्यशाला एवं परिचर्चा का आयोजन कर बच्चियों के माध्यम से उनके अभिभावकों को जागरूक किया, ताकि आने वाली पीढ़ी इस कुप्रथा को समाज से खत्म करने में सक्षम बन सकें। बेटियों के सशक्तिकरण की बातचीत पर राहुल सिन्हा बताते हैं कि हमारे समाज में महिला सशक्तिकरण को लेकर जारी चर्चाओं के बीच आज भी महिलाओं की परेशानियों और उसका उचित समाधान ढूंढने की दिशा में कार्य करना अपने आप में संतुष्टि प्रदान करता है। आज भी महिलायें उतनी सुरक्षित और सम्मानित नहीं दिखतीं, जितने अधिकार और अवसर उन्हें संविधान द्वारा प्रदत हैं। वो आज भी पीड़ित प्रताड़ित, भयभीत हैं और अपने अस्तित्व को लेकर आशंकित भी। यह अलग बात है कि महिला दिवस की धूम भारत में भी ज्यादा रहती है। इन सबके बावजूद आज भी महिलाओं को समाज में का समस्याओं का सामना पड़ता है। ऐसे में सरकारी प्रयासों के साथ आमजनों को इस मुहिम से जोड़ते हुए बेटियों को शिक्षित, सशक्त, आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य की गति को बल मिलता गया और कारवां बनता चला गया।
बेटियों के माता-पिता को पत्र लिखकर मुहिम से जोड़ा
राहुल कुमार सिन्हा ने एक मुहिम चला कर घटते लिंगानुपात पर ब्रेक लगया उन्होंने सभी बेटियों के पालक माता-पिता को पत्र लिखकर कहा कि “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना पर बात शुरू करने के पूर्व सभी माता-पिता को हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। बेटियां हमारी भारतीय संस्कृति में देवी तुल्य पूज्यनीय हैं। वैदिक संस्कृति में इस बात की स्वीकृति है- “यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता” अर्थात जहाँ नारी, बेटियां, स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवताओं को वास होता है। आपने बेटी को जन्म पालन- पोषण, सुरक्षा, शिक्षा और संस्कार देकर इस समाज और देश में अप्रतिम योगदान दिया है। साथ ही आप सभी बेटियों के सर्वांगीण विकास और विकास के सर्वोत्तम शिखर में बेटियों का स्थान दिलाने, उसकी सुरक्षा, सम्मान, प्रतिष्ठा और प्रोत्साहन देकर अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी निभानी होगी।
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बेटियों के उज्जवल भविष्य के लिए राज्य और केन्द्र सरकार तत्पर है। झारखण्ड सरकार बेटियों के सर्वोत्तम हितार्थ आप सबके साथ है। सरकार ने बेटियों के लिए कई योजनाएं चला रही है। समाजिक शोषण, उत्पीड़न एवं घेरलू हिंसा से पीड़ित बेटियों के लिए जिले में समुचित सुरक्षा व्यवस्था है, जिसके लिए हेल्पलाईन नम्बर उपलब्ध है। घरेलू हिंसा से बचाव के लिए जिले के सभी बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, संरक्षरण पदाधिकारी के रूप में घोषित है। उपर्युक्त योजनाओं का प्रयोग कर बेटियों की सुरक्षा, शिक्षा, विवाह एवं रोजगार उपलब्ध कराया जाए। आप यदि थोड़ा सजगता, जागरूकता और तत्परता दिखाएं तो बेटियां किसी के लिए भार नहीं बनेगी वह परिवार के खुशहाली का आधार बनेगी।
21वीं सदी की बेटियां किसी मायने में बेटों से कम नहीं है। विश्व मानस पटल पर अमिट छाप छोड़नेवाली बेटियों की गौरव गाथा से पूरी समसामायिकी भरी पड़ी है। जैसे कल्पना चावला (अंतरिक्ष यात्री), सानिया मिर्जा (टेनिस), पीटी उषा (धाविका) साक्षी मालिक (महिला कुश्ती) दीपा कर्मकार (जिम्नास्टिक), एमसी मैरीकॉम (मुक्केबाजी), चंदा कोचर (प्रबंधन), आदि स्वनाम धन्य पिता की आदर्श सुपुत्रियां है। इसलिए आप से अनुरोध है कि आप बेटियों को बराबरी का हक हौसला और अवसर देने के लिए आगे आएं। देशी कहावत है- “बेटा पहले एक घर बनतो, बेटी पढ़ले संसार बनतो”।
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