संविधान में बताई हुई आर्थिक स्वतंत्रता नहीं आई : डॉ मोहन भागवत

नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि डॉ आंबेडकर ने संविधान में राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है, लेकिन अब तक देश में आर्थिक स्वतंत्रता नहीं आ सकी है। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए जरूरी है कि हम कृषि, उद्योग और व्यापार को केन्द्र में रखते हुए समग्र आर्थिक विकास की योजना बनाए। सरसंघचालक ने यह बातें नागपुर के सुरेश भट सभागार में लघु उद्योग भारती के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह के उद्घाटन अवसर पर कहीं। डॉ भागवत ने कहा कि संविधान ने हमें राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है, लेकिन समाज में अब भी आर्थिक स्वतंत्रता कहीं दिखाई नहीं देती। लगभग 200 वर्ष पूर्व दुनिया में कहीं भी कंपनी कि अवधारणा नहीं थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने के बाद लोगों को कंपनी कि अवधारणा की जानकारी मिली। इतिहास में थोड़ा पीछे जाकर देखें तो पता चलता है कि जब कंपनिया नहीं बनी थीं तब भी पूरी दुनिया में लोग एक-दूसरे से स्थान व्यापार करते थे। यदि उस जमाने की आज के दौर से तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि दुनिया के 25 से 30 घरानों के हाथों में आर्थिक सत्ता सिमटी हुई है। सरसंघचालक ने कहा कि जब तक लघु-मध्यम, सूक्ष्म उद्योग को बढ़ावा नहीं दिया जाता तब तक आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती। आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करनी है तो कृषि, उद्योग और व्यापर इन तीनों को केन्द्र में रखते हुए समग्र आर्थिक विकास की योजना बनानी पड़ेगी।

प्रतिपक्ष अपना काम ठीक से करे

सरसंघचालक ने कहा कि सरकार और सत्ता में हमारी सोच पर चलने वाले लोग बैठे हैं, लेकिन कई बार हमारी अपेक्षा के अनुसार सरकार के कदम नहीं होते। कोई भी परिवर्तन एक झटके में नहीं होता। किसी भी परिवर्तन के लिए हमें संयम बनाए रखना होगा। समाज और देशहित में निर्णय लेना सत्तापक्ष का काम होता है। वहीं उन निर्णयों का कार्यान्वयन ठीक से कराने के लिए सत्ता पक्ष को मजबूर करना प्रतिपक्ष का काम होता है। हालांकि वर्तमान में प्रतिपक्ष(जो अब विरोधी पक्ष कहलाता है) अपना काम ठीक से नहीं कर रहा।

आचरण में जीवन दर्शन दिखाई दे

इस अवसर पर उपस्थित लघु उद्योग भारती के कार्यकर्ताओं से मुखातिब होते हुए डॉ भागवत ने कहा कि हमारे आचरण में जीवन दर्शन की झलक दिखाई देनी चाहिए। इसके लिए कार्यकर्ताओं का प्रबोधन करना होगा। समाज और देश का हित सबसे ऊंचा होता है, यह हमारे आचरण से साफ दिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह मजदूर संघ “देशहित में करेंगे काम, काम का लेंगे पूरा दाम ” ऐसी घोषणा देता है। इसमें देशहित सबसे पहले दिखाई देता है। ठीक इसी तरह का भाव हमें अपने जीवन में उतारना होगा। सरसंघचालक ने कहा कि क्रांति से हर समय परिवर्तन नहीं आ सकता केवल उथल-पुथल होती है। परिवर्तन के लिए उत्क्रांती और संक्रांती कि जरूरत होती है। यदि स्पष्ट शब्दो में कहा जाए तो केवल अच्छे विचारों से अपेक्षित परिवर्तन नहीं होगा। इसके लिए हमारे ध्येय को ध्यान में रखते हुए अपनी आदत और कृति में बदलाव लाना होगा।

This post has already been read 10053 times!

Sharing this

Related posts