माकपा के साथ चुनावी गठबंधन पर कांग्रेस में मतभेद, कई नेताओं ने की मुखालफत

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में अपना अस्तित्व बचा कर रखने के लिए मशक्कत कर रही कांग्रेस में माकपा के साथ चुनावी गठबंधन के नाम पर दो फाड़ नजर आ रही है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने पहले ही गठबंधन के पक्ष में राय दे चुके हैं। उन्होंने कहा था कि  भले ही लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा के साथ गठबंधन नहीं हो सका लेकिन अगले साल होने वाले कोलकाता नगर निगम और उसके बाद विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया जाएगा। उन्होंने इसका प्रस्ताव केंद्रीय नेतृत्व को भी भेजा  है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस में इसके खिलाफ आवाज उठने लगी है। खबर है कि पार्टी के अधिकतर शीर्ष नेता एकला चलो की राह पर चलते हुए राज्य में नगर निगम और विधानसभा का चुनाव अकेले लड़ने के पक्ष में हैं। इस वजह से पार्टी  में माकपा से गठबंधन पर मतभेद उत्पन्न हो गया है। सोमेन मित्रा और उनके समर्थक गुट का कहना है कि अगर माकपा के साथ गठबंधन होता है तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भी सीटें बढ़ेंगी और माकपा को भी फायदा होगा। हालांकि जो गुट गठबंधन के पक्ष में नहीं है उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में प्रतिकूल परिस्थिति थी तब भी कांग्रेस ने अकेले लड़कर राज्य में 2 सीटों पर कब्जा जमा कर रखा है जबकि वाम मोर्चा खाता भी नहीं खोल सकी। अगर नगर निगम और विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस अकेले लड़ेगी तो भले ही सीटें कम मिलें लेकिन संगठन के तौर पर पार्टी मजबूत बनेगी जो उसके बाद होने वाले लोकसभा और अन्य चुनाव के लिहाज से पार्टी के लिए काफी फायदेमंद होगा। इसके अलावा माकपा को समर्थन देकर उसकी सीटें बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। दरअसल हालिया संसद सत्र के आखिरी दिन कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा में तृणमूल के मुख्य सचेतक और हुगली जिले के श्रीरामपुर से सांसद कल्याण बनर्जी के साथ करीब एक घंटे तक अलग से बैठक की थी। खबर है उस दौरान दोनों ही  नेताओं के बीच गठबंधन पर चर्चा हुई थी। राहुल गांधी ने बंगाल में भाजपा को रोकने के लिए तृणमूल और कांग्रेस को मिलकर लड़ने का प्रस्ताव दिया था। कल्याण बनर्जी ने भी इसका समर्थन किया था और साफ किया था कि अंतिम फैसला तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी लेंगी। इस बारे में जब सोमेन मित्रा से पूछा गया था तब उन्होंने स्पष्ट किया था कि उन्हें इस बैठक के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सोमेन ने तब भी प्रदेश में माकपा के साथ ही गठबंधन की बात दोहराई थी। अब प्रदेश कांग्रेस के कुछ  नेताओं ने सोमेन मित्रा के फैसले की मुखालफत  शुरू कर दी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने साफ किया है कि पश्चिम बंगाल में गठबंधन पर अंतिम फैसला पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निर्देशानुसार ही लिया जाएगा। पार्टी नेता दीपा दासमुंशी ने कहा है कि अगर माकपा के साथ गठबंधन होता है तो जमीनी तौर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच गलत संदेश जाएगा। इससे उनका आत्मविश्वास भी टूटेगा।  शंकर मालाकार, नेपाल महतो जैसे कांग्रेस विधायकों ने भी दीपा दास मुंशी के इस तर्क का समर्थन किया है। इसकी वजह से सोमेन मित्रा का पक्ष कमजोर होता जा रहा है। हालांकि  सोमेन मित्रा को पार्टी  सांसद प्रदीप भट्टाचार्य का समर्थन मिला है। इधर वाममोर्चा चेयरमैन विमान बोस और सूर्यकांत मिश्रा जैसे  शीर्ष माकपा नेताओं ने भी गठबंधन का समर्थन किया है और कई दौर की बैठकें भी पूरी कर चुके हैं। दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भी माकपा और कांग्रेस ने एक दूसरे से गठबंधन करने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। इसका नुकसान यह हुआ कि माकपा ने राज्य में 42 में से 41 सीटों पर उम्मीदवार दिया और 40 सीटों पर जमानत खो बैठी। कांग्रेस 2014 में जीती हुई 4 सीटों में से दो सीट गंवा कर दो पर सिमट गई। जबकि राज्य की 42 में से 18 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने कब्जा जमा लिया और तृणमूल कांग्रेस 22 सीटों पर सिमट कर रह गई।

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