कुलभूषण पर फैसला, भारत की बड़ी जीत

-रमेश ठाकुर–

भारत के विशेष प्रयासों के चलते इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी आईसीजे ने पाकिस्तान के चुंगल में कैद हमारे पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है। फैसले के बाद सवा सौ करोड़ भारतीयों ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए केंद्र सरकार के प्रयासों की जमकर सराहना की। इसे भारत की बड़ी न्यायिक और कूटनीतिक जीत बताया जा रहा है। आईसीजे के फैसले के बाद पाकिस्तान एक बार फिर कुलभूषण जाधव मामले में औंधे मुंह गिरकर दुनिया के सामने अपनी गलत हरकतों के चलते बेनकाब हुआ है। उसकी समूचे संसार में थू-थू हो रही है। इससे वह एक बार फिर अलग-थलग पड़ गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिका इस मकसद के साथ पहुंचने वाले हैं कि उनको वहां से कुछ कर्ज मिलेगा, लेकिन जाधव मामले को लेकर अमेरिका ने भी अब पाकिस्तान को आंखें दिखानी शुरू कर दी है। पूर्व के मुकाबले अब अमेरिका का भी पाकिस्तान के प्रति नजरिया बदल चुका है। कुल मिलाकर पाकिस्तान इस वक्त चारों तरफ से घिर चुका है। फिर भी अपनी हरकतों से बात नहीं आ रहा। हेग स्थित इंटरनेशनल न्यायालय के निर्णय के बाद पाकिस्तानी सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी चेहरा एक्सपोज हो गया है। सेना और आईएसआई के दबाव में ही सरकार ने जाधव को कुछ साल पहले कैद किया था। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश सलाहकार सरताज अजीज ने भी माना था कि कुलभूषण जाधव के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। उन्हें सिर्फ उनके बयान के आधार पर कैद किया हुआ है। भारत शुरू से कहता रहा है कि जाधव उनका पूर्व अधिकारी है और इस वक्त एक सामान्य नागरिक है। लेकिन पाकिस्तान इस बात पर अडिग है कि जाधव भारत द्वारा पाकिस्तान भेजा गया जासूस है। सच्चाई यह है कि जाधव नौकरी पूरी करने के बाद कई देशों में अपना व्यापार करते थे। इस कारण उनका वहां आना-जाना हुआ करता था। बुधवार को जब हेग कोर्ट में मामले को लेकर जिरह हुई तो पाकिस्तान से भेजे गए न्यायाधीश टीएस गिलानी ने अपने तर्क में कहा कि जाधव को बलूचिस्तान में आतंकी वारदात की साजिश रचते रंगे हाथ अरेस्ट किया गया था। जबकि भारत कहता है कि उसे ईरान से अगवा किया गया था। पाकिस्तानी जज टीएस गिलानी के अलावा बाकी पंद्रह जजों का तर्क भारत के पक्ष में रहा। आईसीजे कोर्ट का फैसला आने से पहले तक हिंदुस्तान की जनता इस उम्मीद में थी कि शायद जाधव पर चलने वाला केस रद्द किया जाएगा और उन्हें रिहा करने का फरमान सुनाया जाएगा। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो निराशा भी हुई। दरअसल, आईसीजे ने फांसी पर रोक के अस्थाई आदेश तो पांच माह पहले ही दे दिए थे, अब उस आदेश को स्थाई किया गया है। इसका मतलब यही है कि जाधव को जीवनदान भले ही मिल चुका है लेकिन शिकंजा अभी ढीला नहीं हुआ है। हालांकि जाधव मामले को लेकर दोबारा से समीक्षा करने को पाकिस्तान से कहा गया है। उससे तसल्ली तो मिलती है, पर भय पहले जैसा बरकरार है। भारत की तरफ से भेजे गए न्यायाधीश दलबीर भंडारी ने जाधव मामले में सभी तथ्य पीठ के समक्ष पेश किए। जाधव के वकील हरीश साल्वे ने भी मजबूती से अपनी बात रखी। सवाल उठता है कि पूरे मामले में गठित पीठ में 16 जज शामिल किए गए, जिसमें पंद्रह जजों ने जाधव के पक्ष में अपनी राय रखी, मात्र पाकिस्तानी जज टीएस गिलानी अपना बेसुरा राग गाते रहे। जब सभी सबूतों की सच्चाई भारत के पक्ष में है तो दोबारा से जांच कराने की क्या जरूरत? इस लिहाज से जाधव की तुरंत रिहाई की जानी चाहिए। जबकि, उल्टा पाकिस्तान पर जाधव को बेमतलब टार्चर करने और वियना संधि अनुच्छेद-36 का उल्लंघन करने पर केस चलाना चाहिए। यह बात साफ हो चुकी है कि जाधव को लेकर पाकिस्तान ने किसी भी कानून का पालन नहीं किया। पाकिस्तान में कुलभूषण जाधव जिन यातनाओं का सामना कर रहे हैं उससे शक है कि कहीं जाधव के साथ भी सरबजीत सिंह जैसी कहानी न दोहरा दी जाए। सरबजीत सिंह की जब रिहाई की सुगबुगाहट होने लगी थी, तब उसको बड़ी चालाकी से जेल में मरवा दिया गया। ऐसी अनहोनी कहीं जाधव के साथ न हो, इसकी आशंका बनी हुई है। जाधव को बचाने के लिए भारत सरकार हर संभव कोशिश कर रही है। इस दिशा में हेग कोर्ट से पहला पड़ाव तो पार कर लिया है, अब अगला पड़ाव उन्हें सकुशल रिहा कराने का होगा। केस की पैरवी करने वाले देश के वरिष्ठतम वकील हरीश साल्वे ने मेहनताना के नाम पर मात्र एक रुपया लिया है, जबकि अन्य केसों की लाखों में फीस लेते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुलभूषण जाधव को आजाद कराने के लिए देश किस कदर बेकरार है। अब देशवासियों को इंतजार बस उस घड़ी का है जब जाधव के संबंध में रिहाई की खबर उनको सुनने को मिलेगी। 

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